Farming Tips: रबी सीजन शुरू होते ही खेतों में चना बोने की तैयारियां जोरों पर हैं. चना (Gram) देश की प्रमुख दलहनी फसलों में से एक है, जो किसानों को अच्छी आमदनी दे सकती है. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि बुवाई से पहले कुछ वैज्ञानिक तरीकों को अपनाया जाए. विशेषज्ञों का कहना है कि बीजों और मिट्टी का सही उपचार करने से न केवल फसल रोगमुक्त रहती है, बल्कि उत्पादन में 20 से 25 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी भी होती है.
उपयुक्त मिट्टी और बुवाई का समय चुनें
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, चने की खेती के लिए ऐसी भूमि सबसे अच्छी मानी जाती है जिसमें जल निकास की व्यवस्था हो और लवणता या क्षारीयता न हो. दोमट या मध्यम काली मिट्टी में इसकी पैदावार अधिक होती है. चने की बुवाई का सबसे उचित समय नवंबर के पहले या दूसरे सप्ताह तक माना जाता है, क्योंकि इस दौरान तापमान और नमी दोनों फसल के अनुकूल रहते हैं.
बीज उपचार से बचाएं फसल को रोगों से
चना की फसल में जड़ गलन, उकठा और सूखा जड़ गलन जैसे रोग आमतौर पर देखे जाते हैं. इनसे बचाव के लिए बुवाई से पहले बीजोपचार करना जरूरी है. किसान 1 किलो बीज में 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम और 2.5 ग्राम थाइरम मिलाकर बीजों को अच्छी तरह उपचारित करें. इसके विकल्प के रूप में ट्राईकोडर्मा पाउडर का भी प्रयोग किया जा सकता है. इससे फसल रोगों से सुरक्षित रहती है और अंकुरण भी अच्छा होता है.
भूमि उपचार से बढ़ाएं मिट्टी की ताकत
बीजोपचार के साथ ही भूमि उपचार भी बहुत उपयोगी है. इसके लिए किसान 2.5 किलो ट्राईकोडर्मा को 100 किलो नम गोबर की खाद में मिलाकर 10–12 दिन तक छाया में रखें. इसके बाद इस मिश्रण को खेत की मिट्टी में बुवाई के समय मिलाएं. इससे मिट्टी में लाभकारी जीवाणु बढ़ते हैं जो पौधों की जड़ों की रक्षा करते हैं और मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखते हैं.
कीट नियंत्रण के आसान उपाय
चना की फसल में दीमक और कटवर्म जैसे कीट अक्सर बीज और पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं. इससे बचाव के लिए आखिरी जुताई से पहले क्विनालफॉस 1.5% चूर्ण की 25 किलो मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करना चाहिए. वहीं बीजों को फिप्रोनिल या इमीडाक्लोप्रिड जैसे कीटनाशक से उपचारित करने पर कीटों से बेहतर सुरक्षा मिलती है.
जैव उर्वरकों का करें उपयोग
फसल को पोषक तत्वों की संतुलित आपूर्ति देने के लिए जैव उर्वरक बहुत कारगर साबित होते हैं. चने के बीजों को राइजोबियम और पीएसबी जैसे तरल जैव उर्वरकों से उपचारित करने से जड़ों में सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ती है. ये जीवाणु न केवल मिट्टी की उर्वरता बढ़ाते हैं बल्कि पौधों को अधिक पोषण भी देते हैं.
संतुलित खाद और सिंचाई से बढ़ेगी पैदावार
चना की अधिक उपज के लिए सिंचित क्षेत्रों में प्रति हेक्टेयर 20 किलो नत्रजन और 40 किलो फास्फोरस, जबकि असिंचित क्षेत्रों में 10 किलो नत्रजन और 25 किलो फास्फोरस डालना चाहिए. बुवाई के बाद पहली हल्की सिंचाई से बीज अंकुरण अच्छा होता है.
किसानों के लिए सलाह
चना की खेती में वैज्ञानिक तरीकों को अपनाकर किसान न केवल अपनी पैदावार बढ़ा सकते हैं बल्कि लागत भी कम कर सकते हैं. बुवाई से पहले बीज, मिट्टी और खाद का सही चयन करना बेहद जरूरी है. कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर अमल करके किसान इस रबी सीजन में दोगुनी पैदावार और मुनाफा दोनों हासिल कर सकते हैं.