बेमौसम बारिश हमेशा से केला की फसल के लिए खतरनाक होती रही है. क्योंकि, पौधों में सड़न रोग का खतरा तो बढ़ता ही है और फसल में कीटों और बीमारियों का प्रकोप भी तेज होता है. यह स्थिति किसान का नुकसान कराती है. ऐसे में पौधे की सटीक दूरी, खाद और कीटनाशक की संतुलित मात्रा और अन्य फसलों को खेत में लगाने से नुकसान से बचा जा सकता है और कमाई बढ़ाई जा सकती है.
भारत में केला की खेती प्रमुख रूप से बिहार के हाजीपुर, मधेपुरा, खगड़िया, मध्यप्रदेश का बुरहानपुर समेत दक्षिण के कई राज्यों में होती है. यदि आप केले की खेती करते हैं या फिर करने की सोच रहे हैं तो आपको कुछ सावधानियां बरतनी जरूरी हैं. ताकि फसल को कीटों-बीमारियों से बचाया जा सके. खासकर ऐसे मौसम में जब बेमौसम बारिश और गर्मी का मिश्रण होता है.
बेमौसम बारिश से सड़न रोग का खतरा
केले की फसल के लिए जलवायु और अच्छी जल निकास वाली मिट्टी की जरूरत होती है. इस समय बेमौसम बारिश से कई राज्यों में फसलों में जलभराव देखा जा रहा है. ऐसे में केला किसान अपने बाग में जलनिकासी की व्यवस्था जरूर कर लें. इससे पौधे में होने वाले सड़न रोग के खतरे को दूर किया जा सकेगा.
अच्छे बीजों का चुनाव भी अहम
इसके साथ ही केले की खेती के लिए सबसे पहले हमें रोग मुक्त और अच्छी बीजों का चयन करना होता है ताकि फसल अच्छी क्वालिटी की हो. केले के पौधों को नर्सरी में या खेतों में भी लगाया जाता है. जानकार पौधों को उचित दूरी पर लगाने की सलाह देते हैं. खेतों में नियमित सिंचाई, पौधों की बढ़त के लिए सही मात्रा में खाद का इस्तेमाल करना चाहिए
इन 4 रोगों से देखभाल जरूरी
केले के पौधों को सबसे ज्यादा नुकसान कीटों की वजह से होता है. रोग की बात करें तो केले के पौधे में आमतौर पर ये चार रोग पाए जाते हैं जैसे कि सिंगोट रोग, पनामा रोग, ब्लैक सिंगोट का रोग, केले का एफिड और केले का माइंट. इन रोगों से फसल को बचाने के लिए इन चार समस्याओं अत्यधिक वर्षा, सूखा, ज्यादा तापमान और तूफान से बचाने का बेहतर उपाय किया जाना चाहिए. इसके साथ ही रोग का प्रकोप दिखे तो कीटनाशक समेत अन्य उपाय किसान को करने चाहिए.
संतुलित खाद से बढ़ेगी पौध
कीटों और रोगों से बचाने के लिए मेड़ों पर पेड़ पौधे लगाए जाएं साथ ही साथ पौधों के बीच उचित दूरी के बनाए रखा जाए. इसके अलावा संतुलित खाद का प्रयोग पौधों को रोगों से बचाती है. वहीं रैटूनिंग और इंटरक्रॉपिंग के जरिए भी केला की फसल की जा सकती है. इससे फसल को बीमारियों से बचाने में तो मदद मिलती ही है, बल्कि किसान की कमाई के लिए नई फसलें भी उपलब्ध होती है.