चने की खेती करने वाले किसानों के लिए फसल में लगने वाले फंगल (फफूंद) रोग एक बड़ी चुनौती बन सकते हैं. अगर इन रोगों का समय रहते इलाज न किया जाए, तो पैदावार पर सीधा असर पड़ता है और किसान को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. लेकिन अच्छी बात यह है कि कुछ आसान उपायों को अपनाकर इन रोगों से बचाव किया जा सकता है. आइए जानते हैं कि चने की फसल को फंगल रोगों से कैसे सुरक्षित रखा जाए.
फसल चक्र बदलें, मिट्टी को दें आराम
हर साल एक ही खेत में चने की फसल बोने से मिट्टी में फंगल बीमारियां जमा हो जाती हैं. इससे फसल पर बार-बार संक्रमण का खतरा बना रहता है. ऐसे में चने के बाद किसी दूसरी फसल जैसे ज्वार, बाजरा या सूरजमुखी को उगाना अच्छा रहता है. इससे मिट्टी में मौजूद रोगाणु खत्म होते हैं और अगली बार चने की फसल ज्यादा स्वस्थ रहती है.
खेत में सफाई है जरूरी
फसल कटाई के बाद खेत में बचे पुराने और सड़े-गले पौधों के हिस्सों को हटाना बहुत जरूरी है. ये बीमारियों के फैलने का मुख्य कारण होते हैं. इसलिए खेत को साफ-सुथरा रखें और संक्रमित पौधों को खेत से बाहर निकालकर जला दें या जमीन में गाड़ दें.
बीज का उपचार करना न भूलें
फसल की शुरुआत अगर अच्छे बीज से हो तो आगे के कई खतरे पहले ही टल सकते हैं. चने के बीजों को बोने से पहले किसी अच्छे फफूंदनाशक (fungicide) से उपचारित करना चाहिए. इससे बीज से फैलने वाले रोगों से बचाव होता है और अंकुरण भी अच्छा होता है.
जरूरत पर करें फफूंदनाशक का छिड़काव
अगर फसल में पत्तों पर धब्बे, पीला पड़ना या मुरझाने जैसे लक्षण दिखें, तो तुरंत फफूंदनाशक का छिड़काव करें. बाजार में उपलब्ध मान्य दवाओं का इस्तेमाल करें और छिड़काव का समय और मात्रा कृषि विशेषज्ञ की सलाह से तय करें.
सिंचाई का रखें खास ध्यान
अक्सर देखा गया है कि ज्यादा पानी देने से फफूंद तेजी से फैलती है. इसलिए खेत में जरूरत से ज्यादा नमी न बनने दें. हल्की और संतुलित सिंचाई करें ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे, लेकिन पानी जमा न हो.
पौधों को रखें सेहतमंद
अगर पौधे मजबूत होंगे, तो बीमारियों से भी लड़ सकेंगे. इसके लिए पौधों को सही मात्रा में खाद दें और पोषक तत्वों की कमी न होने दें. जैविक खाद और सूक्ष्म पोषक तत्वों का संतुलित उपयोग फसल को स्वस्थ बनाए रखता है.
नजर बनाए रखें फसल पर
फसल पर नियमित नजर रखना बेहद जरूरी है. पत्तों पर दाग-धब्बे, मुरझाना, रंग बदलना जैसे लक्षण दिखाई दें तो तुरंत कार्रवाई करें. शुरुआत में ही रोग पहचान लेने से इलाज आसान हो जाता है और फसल बच जाती है.