घरेलू से ग्लोबल बाजार तक जूट की गूंज, एक बार कर ली खेती तो हो जायेंगे मालामाल

इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें ज्यादा खर्चा नहीं आता और किसान कम लागत में भी अच्छी आमदनी कर सकते हैं. जूट से रस्सी, बोरे, चटाई, थैले, कालीन और सजावटी सामान जैसे सैकड़ों चीजें बनाई जाती हैं. यही वजह है कि बाजार में इसकी खेती की हमेशा डिमांड बनी रहती है.

Kisan India
नई दिल्ली | Updated On: 10 Sep, 2025 | 12:53 PM

अगर आप किसान हैं और खेती से ज्यादा मुनाफा कमाने का सपना देख रहे हैं, तो जूट की खेती आपके लिए बेहतरीन विकल्प साबित हो सकती है. जूट को ‘सुनहरा रेशा’ कहा जाता है, क्योंकि इससे बने उत्पादों की मांग हमेशा बनी रहती है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें ज्यादा खर्चा नहीं आता और किसान कम लागत में भी अच्छी आमदनी कर सकते हैं. जूट से रस्सी, बोरे, चटाई, थैले, कालीन और सजावटी सामान जैसे सैकड़ों चीजें बनाई जाती हैं. यही वजह है कि बाजार में इसकी खेती की हमेशा डिमांड बनी रहती है.

मिट्टी और जलवायु

जूट की खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है. मिट्टी का pH स्तर 5.0 से 7.0 के बीच होना चाहिए. यह फसल गर्म और नमी वाली जलवायु में बहुत तेजी से बढ़ती है. मानसून के समय जूट बोना सबसे सही रहता है, क्योंकि इस दौरान प्राकृतिक नमी बनी रहती है और किसानों को सिंचाई पर ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता. जिन इलाकों में नमी रहती है, वहां बिना सिंचाई के भी जूट की अच्छी पैदावार हो जाती है.

खेती की विधि

जूट की बुवाई आमतौर पर मार्च से मई के बीच की जाती है. बीजों को 3 से 4 सेंटीमीटर की गहराई में बोया जाता है. बेहतर विकास के लिए कतारों के बीच 20-25 सेमी और पौधों के बीच 5-7 सेमी की दूरी रखना जरूरी है. एक हेक्टेयर खेत में लगभग 5-7 किलो बीज पर्याप्त होता है.

जहां बारिश ज्यादा होती है, वहां अतिरिक्त सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन सूखे क्षेत्रों में एक-दो बार सिंचाई करनी पड़ सकती है. जूट की फसल 120 से 150 दिनों में तैयार हो जाती है. जैसे ही पौधों में फूल आने लगें, कटाई कर लेनी चाहिए. सही समय पर कटाई करने से 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन मिलता है, जिससे किसानों को अच्छी कमाई होती है.

प्रमुख किस्में

जूट की दो मुख्य किस्में हैं

कोरा जूट (Tossa Jute): यह ज्यादा उगाई जाती है और इसका रेशा मजबूत होता है.

देशी जूट (White Jute): यह स्थानीय जरूरतों के लिए उगाया जाता है और छोटे पैमाने पर उपयोगी होता है.

दोनों ही किस्में किसानों को अच्छा मुनाफा देती हैं और बाजार में इनकी मांग हमेशा बनी रहती है.

मांग और उपयोग

आज के समय में जूट की मांग और भी बढ़ गई है क्योंकि यह पर्यावरण के अनुकूल है और प्लास्टिक का एक बेहतरीन विकल्प बन चुका है. जूट से बने बैग, बोरे, रस्सियां, ग्रीन बैग, कालीन और फर्नीचर सजाने वाली चीजें बाजार में खूब बिकती हैं. कागज उद्योग में भी इसका इस्तेमाल बढ़ रहा है. घरेलू बाजार के साथ-साथ विदेशी बाजार में भी जूट उत्पादों की भारी मांग है, जिससे किसानों को निर्यात से भी लाभ हो सकता है.

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Published: 10 Sep, 2025 | 12:52 PM

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