देशभर के किसान पारंपरिक फसलों के साथ-साथ ऐसी फसलों को ओर रूख कर रहे हैं, जो न केवल कम समय में तैयार हो जाएं, बल्कि जिसकी उपज से अधिक लाभ मिल सके और मिट्टी की सेहत को बेहतर बनाए रख सकें. ऐसे में मूंग की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा बनती जा रही है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तहत इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट (IARI), पूसा के कृषि वैज्ञानिकों ने मूंग की नई किस्म पूसा 1641 को विकसित की है.
55 से 60 दिनों में तैयार
मूंग की पूसा 1641 एक उन्नत किस्म है जिसे खास तौर पर गर्मी के मौसम में खेती के लिए तैयार किया गया है. ये किस्म सिर्फ 62 से 64 दिनों में तैयार हो जाती है, यानी किसान रबी की फसल के कटाई के बाद खाली इसे उगाकर दो महीने में अच्छी आमदनी कमा सकते हैं. यह किस्म आईसीएआर के तहत आईएआरआई के माध्यम से 2021 तैयार किया गया है. इस किस्म की खेती हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के किसान बड़े पैमाने पर अपना रहे हैं.
येलो मोजेक वायरस से बचाव में सक्षम
इस किस्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह मूंग की सबसे बड़ी बीमारी मूंग येलो मोजेक वायरस (MYMV) से बचाव में सक्षम है. जिससे किसानों को कीटनाशकों पर खर्च कम करना पड़ता है और फसल भी सुरक्षित रहती है. कम लागत और अच्छी पैदावार की कारण यह किस्म किसानों को एक हेक्टेयर में लाखों रुपये की कमाई देने में सक्षम है.
समय-समय पर मिट्टी की जांच जरूरी
इसके साथ ही फसलों की अच्छी के लिए समय- समय पर मिट्टी की जांच करवाना बेहद जरूरी होता है. क्योंकि इससे मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी और अधिकता का पता चलता है. कई बार मिट्टी में जिंक की कमी हो जाती है, जिसे मिट्टी जांच के नतीजों के आधार पर ठीक किया जा सकता है. वहीं गर्मी के मौसम में मूंग की फसल को कीटों से खतरा ज्यादा होता है. ऐसे में हर 20-25 दिन पर फसल की निगरानी करनी चाहिए और अगर जरूरत हो तो कीटनाशकों का सीमित उपयोग करें.