तेलंगाना में यूरिया की भारी किल्लत, जरूत के मुकाबले बहुत कम है खाद सप्लाई..कब दूर होगी समस्या
तेलंगाना के कृषि मंत्री नागेश्वर राव ने विपक्षी पार्टियों पर आरोप लगाया है कि वे इस संकट को सिर्फ तेलंगाना तक सीमित बता कर राजनीति कर रही हैं, जबकि यह समस्या पूरे देश में है.
तेलंगाना में इस समय खरीफ सीजन के बीच खेतों में यूरिया की भारी कमी हो गई है. इससे किसान परेशान हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, केंद्र सरकार ने खरीफ 2025 के लिए तेलंगाना को 9.8 लाख मीट्रिक टन यूरिया आवंटित किया था, जिसमें से अगस्त तक 8.3 लाख मीट्रिक टन की जरूरत थी. लेकिन अब तक राज्य को सिर्फ 5.42 लाख मीट्रिक टन ही मिला है, यानी करीब 2.88 लाख मीट्रिक टन की कमी है. अधिकारियों का कहना है कि यूरिया की यह कमी सिर्फ तेलंगाना में नहीं, बल्कि कई राज्यों में देखने को मिल रही है. इसकी एक बड़ी वजह है वैश्विक आपूर्ति में बाधाएं और प्राकृतिक गैस की कीमतों में तेज बढ़ोतरी. पश्चिम एशिया में तनाव के चलते सप्लाई चेन भी बुरी तरह प्रभावित हुई है.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इसके अलावा चीन ने हाल के वर्षों में भारत को यूरिया का निर्यात कम कर दिया है. हालांकि कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि अब चीन ने भारत को यूरिया भेजने पर लगे प्रतिबंधों में थोड़ी राहत दी है. तेलंगाना के कृषि मंत्री थुम्माला नागेश्वर राव ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया है कि इतनी जरूरत के बावजूद चीन से यूरिया मंगाने में लापरवाही बरती गई. वहीं, घरेलू यूरिया उत्पादन भी स्थिर नहीं रहा. रामागुंडम फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स लिमिटेड (RFCL) अप्रैल से अगस्त तक कुल 145 तय दिनों में से सिर्फ 78 दिन ही चल पाया, वो भी गैस लीकेज और तकनीकी दिक्कतों की वजह से. ओडिशा का तलचर फर्टिलाइजर प्लांट भी अपनी पूरी क्षमता पर नहीं चल रहा है, जबकि नागार्जुन फर्टिलाइजर्स ने यूरिया का उत्पादन पूरी तरह बंद कर रखा है.
तेलंगाना में सबसे अधिक यूरिया का इस्तेमाल
इस पूरी स्थिति ने किसानों की चिंताओं को बढ़ा दिया है और सियासी पार्टियां एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रही हैं. यूरिया की कमी की समस्या इसलिए और बढ़ गई है क्योंकि किसान इसका जरूरत से अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं. जहां देश में औसतन 100 से 120 किलो यूरिया प्रति एकड़ इस्तेमाल होता है, वहीं तेलंगाना में ये मात्रा करीब 170 किलो तक पहुंच गई है. विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी वजह मिट्टी की उर्वरता में अंतर, फसल पैटर्न और किसानों में जागरूकता की कमी है.
मिट्टी की सेहत हो रही खराब
रायथु स्वराज्य वेदिका के नेता विस्सा किरण कुमार ने कहा कि रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करने के लिए प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना चाहिए. उन्होंने बताया कि 1970 के दशक में एक एकड़ जमीन के लिए एक बोरी यूरिया काफी होती थी, लेकिन अब एक साल में करीब 10 बोरी लगती है, जिससे मिट्टी की सेहत खराब हो रही है. सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे.
118.69 लाख एकड़ में खेती
खरीफ 2025 में खेती का दायरा बढ़ने से यूरिया की मांग और ज्यादा बढ़ गई है. इस साल अब तक 118.69 लाख एकड़ में फसल बोई गई है, जबकि पिछले साल इसी समय तक ये आंकड़ा 91.21 लाख एकड़ था. यानी 27.48 लाख एकड़ की बढ़ोतरी. अधिकारियों के मुताबिक, धान और मक्का जैसी फसलों में यूरिया की खपत ज्यादा होती है. खासतौर पर धान की बुआई में बड़ा उछाल आया है. खरीफ 2024 में जहां 31.6 लाख एकड़ में धान बोया गया था, वहीं इस साल ये आंकड़ा 54.79 लाख एकड़ तक पहुंच गया है. इसकी एक बड़ी वजह है सरकार की तरफ से ‘सुपरफाइन वैरायटी’ धान पर मिलने वाला बोनस भी है.
जी. किशन रेड्डी से दखल देने की अपील
कृषि मंत्री नागेश्वर राव ने विपक्षी पार्टियों पर आरोप लगाया है कि वे इस संकट को सिर्फ तेलंगाना तक सीमित बता कर राजनीति कर रही हैं, जबकि यह समस्या पूरे देश में है. उन्होंने मांग की कि केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी को इस मुद्दे में दखल देना चाहिए, ताकि राज्य को जरूरी यूरिया की आपूर्ति जल्द से जल्द मिले. गुरुवार को मंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जिलों के कृषि अधिकारियों के साथ बैठक की. उन्होंने निर्देश दिया कि यूरिया की सप्लाई समय पर जिलों तक पहुंचे, जमाखोरी न हो और किसानों को लंबी लाइनों में खड़ा न होना पड़े. उन्होंने चेतावनी दी कि यूरिया की आपूर्ति में रुकावट डालने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.