किसान खेत में लगा लें ये पेड़, एक बार रोपाई से 30 साल तक होती है तगड़ी कमाई
यह एक ऐसी फसल है, जो न केवल कम लागत में ज्यादा मुनाफा देती है, बल्कि 30 साल तक लगातार आय का साधन बन सकती है. पलाश का पेड़ भारत के अधिकांश हिस्सों में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है और इसे परसा, ढाक, टेसू या किशक जैसे नामों से भी जाना जाता है.
अगर आप खेती से दीर्घकालिक और स्थायी मुनाफा कमाने की सोच रहे हैं, तो पलाश (Palash Tree Farming) की खेती आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है. यह एक ऐसी फसल है, जो न केवल कम लागत में ज्यादा मुनाफा देती है, बल्कि 30 साल तक लगातार आय का साधन बन सकती है. पलाश का पेड़ भारत के अधिकांश हिस्सों में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है और इसे परसा, ढाक, टेसू या किशक जैसे नामों से भी जाना जाता है. इसके फूल, बीज, पत्ते, लकड़ी, छाल और जड़ तक सब कुछ बाजार में ऊंचे दामों पर बिकता है.
खेती की शुरुआत और सही तैयारी
पलाश की खेती शुरू करने के लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई जरूरी होती है, ताकि मिट्टी भुरभुरी और उपजाऊ बन सके. इसके बाद मिट्टी में गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट जैसे जैविक खाद का प्रयोग करने से पौधों की बढ़वार और मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है. यह पौधा लगभग हर तरह की मिट्टी में उग सकता है, लेकिन दोमट मिट्टी और अच्छे जल निकास वाले क्षेत्र इसके लिए सबसे उपयुक्त माने जाते हैं.
नर्सरी में तैयार पौधों को खेत में रोपने से पहले हल्की सिंचाई कर लेनी चाहिए. पौधों के बीच 10-12 फीट की दूरी रखी जाती है, ताकि उनकी जड़ें और शाखाएं अच्छे से विकसित हो सकें. पलाश की खेती को बहुत अधिक पानी की जरूरत नहीं होती, इसलिए यह उन इलाकों के लिए भी बेहतर विकल्प है जहां बारिश कम होती है.
फूलों से कमाई का सुनहरा मौका
पलाश के पौधे रोपाई के लगभग 3 से 4 साल बाद फूल देना शुरू कर देते हैं. इसके चमकीले नारंगी-लाल फूल बाजार में जैविक रंग बनाने के लिए बड़ी मात्रा में खरीदे जाते हैं. होली के दौरान प्राकृतिक रंगों की मांग बढ़ने से पलाश के फूलों की कीमत आसमान छूने लगती है.
इसके अलावा, आयुर्वेदिक दवाओं में भी इन फूलों का इस्तेमाल त्वचा रोग, सूजन और संक्रमण के इलाज के लिए किया जाता है. कई जगह इन फूलों से पारंपरिक पेय और औषधीय उत्पाद भी तैयार किए जाते हैं.
बीज, पत्ते और लकड़ी की बढ़ती मांग
पलाश के बीजों से निकलने वाला तेल औषधीय दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है. इसका उपयोग आयुर्वेदिक उपचारों में किया जाता है. वहीं, इसकी पत्तियों का उपयोग इको-फ्रेंडली पत्तल बनाने में किया जाता है, जो अब प्लास्टिक के विकल्प के रूप में काफी लोकप्रिय हो रही हैं.
इसकी लकड़ी हल्की और मजबूत होती है, जो फर्नीचर, कागज निर्माण और ईंधन के रूप में खूब काम आती है. ग्रामीण इलाकों में पलाश की लकड़ी का इस्तेमाल पारंपरिक तौर पर घर की गर्मी और खाना पकाने के लिए भी किया जाता है.
किसानों के लिए स्थायी कमाई का जरिया
पलाश की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे एक बार लगाने के बाद 25 से 30 वर्षों तक बार-बार रोपाई की जरूरत नहीं पड़ती. इसका मतलब है कि किसान एक बार मेहनत करके लंबे समय तक नियमित कमाई कर सकते हैं. एक एकड़ जमीन में पलाश की खेती से किसान सालाना लाखों रुपए की आमदनी कमा सकते हैं.
कम पानी और कम देखभाल में पनपने वाली यह फसल सूखा प्रभावित इलाकों के लिए आदर्श है. इसके फूल, बीज, पत्ते और लकड़ी हर हिस्से से आय के स्रोत बनते हैं. यही वजह है कि आज कई किसान पारंपरिक फसलों की जगह पलाश की खेती की ओर रुख कर रहे हैं.