किसानों की फसलों के अच्छे उत्पादन में सिंचाई का भी अहम योगदान होता है. ऐसे में जरूरी होता है कि किसान अपनी फसलों की सही और नियमित रूप से सिंचाई करें. ताकि पौधों को बढ़ने के लिए जितनी नमी की जरूरत हो वो उन्हें मिलती रहे. लेकिन कई बार भीषण गर्मी और घटते जस स्तर के कारण किसानों को पानी की कमी होती है जिसके कारण वे अपनी फसलों की सिंचाई ढंग से नहीं कर पाते जिस कारण उनकी फसलें सूख कर खराब हो जाती हैं. लेकिन आज किसानों के पास पारंपरिक सिंचाई के अलावा भी सिंचाई की कई आधुनिक तकनीकें हैं जिनके इस्तेमाल से पानी की बचत भी होती है और साथ फसलों को पर्याप्त सिंचाई भी मिलती है. ऐसी ही सिंचाई की एक तकनीक है ड्रिप सिंचाई. इसके इस्तेमाल से फसलों में खरपतवार का प्रभाव भी कम हो जाता है.
क्या है ड्रिप सिंचाई
ड्रिप सिंचाई एक ऐसी तकनीक है जिसकी मदद से पानी धीरे-धीरे सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचता है. इस तकनीक से पानी की इस्तेमाल कम हो जाता है. पौधों को पर्याप्त पानी और जरूर पोषक तत्व दोनों मिल जाते हैं. बता दें कि ड्रिप सिंचाई को बूंद-बूंद सिंचाई भी कही जाता है. इस तकनीक में पानी को प्लास्टिक पाइप या ड्रिप लाइन की मदद से बूंद-बूंद कर सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है. जिससे पानी का इस्तेमाल भी बहुत कम होता है और पौधों के ग्रोथ में भी मदद मिलती है.
इस तकनीक के फायदे क्या हैं
ड्रिप सिंचाई का सबसे बड़ा फायदा है कि इसमें पानी की बचत होती है. तो किसान गर्मी में कम पानी में भी अपनी फसलों को इस तकनीक से पर्याप्त पानी दे सकते हैं. इस तकनीक से पौधों को सही मात्रा में पानी मिलता है जिससे उनकी ग्रोथ में तेजी आती है. क्योंकि इस तकनीक से पानी सीधे जड़ों तक पहुंचता है इसलिए खरपतवार नहीं लगते. बाकि सिंचाई तकनीकों की तुलना में ड्रिप सिंचाई के सिस्टम को लगाना और उसका रखरखाव करना आसान होता है.
ड्रिप सिंचाई के नुकसान
ड्रिप सिंचाई के फायदे तो हैं लेकिन इसके अपने नुकसान भी हैं. जैसे ड्रिप सिंचाई के सिस्टम को लगाना तो आसान है लेकिन इसको लगाने में खर्चा बहुत आता है. खेतों में बिछाए गए पाइप या ड्रिपर्स के जाम होने का खतरा रहते है क्योंकि पानी में मौजूद कण इनमें जमा होकर इन्हें बंद कर सकते हैं. अगर ड्रिपर्स को खेतों में सही से न रखा जाए तो पौधों में पानी का वितरण एक जैसा नहीं होगा. भीषण गर्मी के कारण पाइप या ड्रिपर्स टूट भी सकते हैं.