गर्मियों में अगर कोई फल लोगों का सबसे ज्यादा दिल जीतता है तो वह है मीठी चेरी. गहरे लाल रंग और रसदार स्वाद वाली यह चेरी न सिर्फ बच्चों और बड़ों की पसंद है बल्कि इसे स्वास्थ्य के लिए भी बेहद फायदेमंद माना जाता है. लेकिन अब किसानों और कारोबारियों की एक बड़ी चेतावनी सामने आई है, अगर हालात ऐसे ही रहे तो आने वाले समय में यह फल आम उपभोक्ताओं की थाली से दूर हो सकता है.
उत्पादन घटा, कीमतें बढ़ीं
दरअसल, इस साल यूक्रेन जैसे बड़े उत्पादक देश में चेरी का सीजन उम्मीद से पहले ही खत्म हो गया. कारोबारियों की रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस बार वहां चेरी का उत्पादन पिछले साल की तुलना में काफी कम रहा. इतना ही नहीं, सीजन भी लगभग एक हफ्ता पहले समाप्त हो गया. नतीजा यह हुआ कि थोक बाजार में चेरी की कीमतें 3.59 से 5.26 डॉलर प्रति किलो तक पहुंच गईं, जो पिछले साल की तुलना में करीब 45% अधिक हैं. यानी फसल कम हुई और जो उपलब्ध हुई, वह महंगे दामों पर बिक रही है.
मौसम बना सबसे बड़ा दुश्मन
किसानों का कहना है कि इस साल मौसम ने सबसे ज्यादा नुकसान किया. वसंत और गर्मियों के दौरान खराब मौसम, असमय बारिश और बढ़ते तापमान ने फसलों की पैदावार को बुरी तरह प्रभावित किया. इसके अलावा खेती का खर्च भी लगातार बढ़ रहा है. उर्वरक, मजदूरी और रखरखाव की लागत पहले से कहीं ज्यादा हो चुकी है. जब उत्पादन घटता है और खर्च बढ़ता है, तो किसानों के पास कीमतें बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता.
क्यों है यह चिंता का विषय?
आप सोच सकते हैं कि यूक्रेन की चेरी का भारत से क्या लेना-देना. लेकिन असल बात यह है कि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन (Climate Change) की वजह से दुनिया भर की खेती पर असर पड़ रहा है. एक देश में खराब मौसम का असर दूसरे देशों के बाजारों और उपभोक्ताओं तक पहुंच रहा है.
स्पेन में अगर सूखा पड़ता है तो उसका असर जैतून तेल (Olive Oil) की कीमतों पर दिखता है. अमेरिका या जॉर्जिया में गर्म सर्दी पड़ने पर आड़ू (Peach) की सप्लाई कम हो जाती है और अब यूक्रेन में मौसम बिगड़ने से चेरी की पैदावार प्रभावित हुई है. यह ट्रेंड बताता है कि बदलते मौसम का असर सिर्फ एक देश तक सीमित नहीं रहता बल्कि पूरी दुनिया में खाद्य कीमतों को प्रभावित करता है.
समाधान की तलाश
वैज्ञानिक और कृषि विशेषज्ञ लगातार नए शोध कर रहे हैं. कुछ लोग ऐसी फसलें विकसित करने पर काम कर रहे हैं जो कम पानी और ज्यादा गर्मी में भी उगाई जा सकें. वहीं, कुछ शोध यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि मौजूदा फसलों को किस तरह इस बदलते मौसम के अनुरूप ढाला जाए.
लेकिन दीर्घकालिक समाधान सिर्फ यही है कि हम उन प्रदूषक गैसों और ग्रीनहाउस उत्सर्जन को कम करें जो धरती को गर्म कर रहे हैं. अगर ऐसा नहीं किया गया तो आने वाले समय में सिर्फ चेरी ही नहीं बल्कि कई और पसंदीदा फल और सब्जियां हमारी थाली से दूर हो सकती हैं.