खेतों में गाजर घास का संक्रमण बना खतरा, धान-मक्का समेत कई फसलें हो रहीं खराब

सीतापुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अध्यक्ष डॉ. दया शंकर श्रीवास्तव बताते हैं कि, गाजर घास जिसे ‘चटक चांदनी’ के नाम से भी जाना जाता है, वो बड़े ही आक्रामक तरीके से खेतों में फैलती है. उन्होंने बताया कि यह एकवर्षीय शाकीय पौधा है जो हर तरह के वातावरण में तेजी से उगने में सक्षम है.

लखनऊ | Published: 2 Jul, 2025 | 12:52 PM

बारिश के मौसम में जहां एक तरफ किसानों के खेतों में चारों ओर हरियाली छाई रहती है, खेत लहलहाते हैं वहीं दूसरी तरफ खेत में फसलों के साथ-साथ हानिकारक गाजर घास भी तेजी से फल फूल रही होती है. इस घास से फसल को तो नुकसान पहुंचता ही है साथ ही इंसानों और पशुओं के लिए भी ये घास हानिकारक होती है. बता दें कि गाजर घास के संपर्क में आने से एग्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा और जुकाम जैसी बीमारियां हो सकती हैं. इसलिए किसानों के लिए बेहद जरूरी है कि वे समय रहते गाजर घास को नियंत्रित करने की दिशा में काम करें.

गाजर की पत्ती की तरह दिखती हैं

कृषि विज्ञान केंद्र, कटिया, सीतापुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अध्यक्ष डॉ. दया शंकर श्रीवास्तव बताते हैं कि, गाजर घास जिसे ‘चटक चांदनी’ के नाम से भी जाना जाता है, वो बड़े ही आक्रामक तरीके से खेतों में फैलती है. उन्होंने बताया कि यह एकवर्षीय शाकीय पौधा है जो हर तरह के वातावरण में तेजी से उगने में सक्षम है. ये घास केवल फसलों को ही नुकसान नहीं पहुंचाती बल्कि फसलों के साथ-साथ इंसानों और पशुओं के लिए भी गंभीर समस्याएं खड़ी करती है. डॉ. दया शंकर श्रीवास्तव बताते हैं कि अगर समय रहते इस खतरनाक खरपतवार को नियंत्रण में न लाया जाए तो फसलों को पूरी तरह से नष्ट कर सकती है. बता दें कि इसकी पत्तियां देखने में गाजर की पत्ती की तरह होती हैं.

1955 में पहली बार दिखी थी गाजर घास

‘किसान इंडिया’ से बात करते हुए डॉ. दया शंकर श्रीवास्तव ने बताया कि देश में गाजर घास सबसे पहले साल 1955 में देखी गई थी. हालांकि आज गाजर घास लगभग 350 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैल चुकी है. उन्होंने बताया कि हर एक पौधा करीब 1 हजार से 50 हजार तक बहुत ही छोटे बीज पैदा करता है. ये बीज जमीन पर गिरने के बाद प्राकृतिक रोशनी और नमी पाकर अंकुरित हो जाते हैं.

यही पौधे 3 से 4 महीने में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेतें हैं और साल भर उगते हैं. डॉ. श्रीवास्तव ने बताया कि गाजर घास हर तरह के वातावरण में पनप सकती है और ये बहुत तेजी से विकास करती है. इसका संक्रमण खास तौर से मुख्य खाद्यान्न फसलों में होता है. जिनमें धान, ज्वार, मक्का, सोयाबीन, मटर तिल, अरंडी, गन्ना, बाजरा, मूंगफली, सब्जियां और कई बागवानी फसलें मौजूद हैं.

Carrot Weed

‘चटक चांदनी’ के नाम से जानी जाती है गाजर घास

गाजर घास के इस्तेमाल से बन रहे कीटनाशक

डॉ. दया शंकर श्रीवास्तव ने बताया कि गाजर घास से छुटकारा पाने के लिए किसान इसका इस्तेमाल कीटनाशक, जीवाणुनाशक और खरपतवार नष्ट करने वाली दवाओं को बनाने में कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि इस घास की लुग्दी से कई तरह के कागज तैयार किये जा सकते हैं. इसके अलावा इसको बायोगैस उत्पादन में भी गोबर के साथ मिलाया जा सकता है. उन्होंने बताया कि इस घास के संक्रमण से खाद्यान्न फसल की पैदावार में लगभग 35-40 फीसदी तक की गिरावट देखने को मिल सकती है. बता दें कि इस पौधे में पाये जाने वाले एक विषाक्त पदार्थ के कारण फसलों के अंकुरण और वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हैं.

नियंत्रण के उपाय

गाजर घास को नियंत्रित करने के लिए वैज्ञानिक, यांत्रिक, केमिकल और जैविक विधियों का इस्तेमाल किया जाता है. गैरकृषि क्षेत्रों में इसके नियंत्रण के लिए शाकनाशी केमिकल एट्राजिन का इस्तेमाल फूल आने से पहले और 1.5 किलोग्राम दवा को प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल कर सकते हैं. ट्रीब्यूजिन 2 किलोग्राम को प्रति हेक्टेयर की दर से फूल आने से पहले इस्तेमाल करना चाहिए. इसके साथ ही मक्का, ज्वार, बाजरा की फसलों में एट्रीजिन 1 से 1.5 किलोग्राम का प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के तुरंत बाद लेकिन अंकुरण से पहले इस्तेमाल किया जाना चाहिए. लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.