Wheat Procurement: भारत का सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक राज्य होने के बावजूद उत्तर प्रदेश इस बार भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रणाली के तहत गेहूं खरीद में पंजाब, मध्य प्रदेश, हरियाणा और यहां तक कि राजस्थान से पीछे रह गया. यह जानकारी सरकारी आंकड़ों से सामने आई है. राज्य ने 60 लाख मीट्रिक टन के लक्ष्य के मुकाबले सिर्फ 10.27 लाख मीट्रिक टन गेहूं ही खरीदा, जो कि लक्ष्य का पांचवां हिस्सा भी नहीं है. इससे राज्य की खरीद नीति और किसानों से जुड़ाव में गंभीर खामियां उजागर होती हैं.
हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के सेंट्रल फूड ग्रेन्स प्रोक्योरमेंट पोर्टल के आंकड़ों की माने तो, यूपी ने केवल 1.43 लाख किसानों से ही गेहूं खरीदा और MSP के रूप में 2,509 करोड़ रुपये का भुगतान किया. जबकि राज्य के पोर्टल पर 4.6 लाख से अधिक किसान पंजीकृत थे, लेकिन केवल 31 फीसदी किसानों ने ही बिक्री में भाग लिया.
हरियाणा में 4.44 लाख किसानों ने MSP पर बेचा गेहूं
वहीं, पंजाब ने अपने 7.71 लाख पंजीकृत किसानों में से 94 फीसदी से अधिक को खरीद प्रक्रिया में शामिल किया और रिकॉर्ड 119.19 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा. MSP के तहत पंजाब सरकार ने 27,779 करोड़ रुपये का भुगतान किया. जबकि, मध्य प्रदेश ने इस सीजन में 15.35 लाख पंजीकृत किसानों में से 9 लाख किसानों से 77.71 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा. हरियाणा ने 7.8 लाख पंजीकृत किसानों में से 4.44 लाख किसानों से 72.34 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की.
राजस्थान ने भी उत्तर प्रदेश से किया बेहतर प्रदर्शन
इसी तरह राजस्थान ने भी उत्तर प्रदेश से बेहतर प्रदर्शन किया, जहां 70 फीसदी किसानों ने भाग लिया और 1.72 लाख किसानों से 21.28 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया. ऐसे देशभर में इस बार गेहूं खरीद के लिए 38.9 लाख किसानों ने पंजीकरण कराया, जिनमें से करीब 23.96 लाख (लगभग 62 फीसदी) किसानों ने सरकारी सिस्टम के जरिए अपनी उपज बेची. 11 गेहूं खरीद वाले राज्यों में कुल 301.15 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद हुई और 23.61 लाख किसानों को 72,069 करोड़ रुपये का MSP भुगतान किया गया.
क्या कहते हैं कृषि एक्सपर्ट
एक्सपर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश की कमजोर खरीद नीति के पीछे कई कारण हैं, जिनमें निजी व्यापारियों द्वारा दिए जा रहे बेहतर दाम और जल्दी भुगतान जैसी सुविधाएं प्रमुख हैं. यही वजह है कि यूपी के किसान सरकारी व्यवस्था में पंजीकृत होने के बावजूद निजी खरीदारों को ही प्राथमिकता दे रहे हैं.