Tariff War: झींगा किसानों की कमाई बढ़ेगी, सरकार से आयात शुल्क हटाने की उम्मीद

अमेरिकी टैरिफ के मद्देनजर प्रॉन फार्मर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ने की ब्रूड-स्टॉक, हैचरी फीड और अन्य इनपुट्स पर शुल्क हटाने की अपील, कहा- संकट में है उद्योग का अस्तित्व.

Kisan India
नोएडा | Updated On: 12 Apr, 2025 | 05:15 PM

झींगा किसानों ने सरकार से जरूरी एक्वाकल्चर यानी जलीय कृषि इनपुट्स से आयात शुल्क हटाने की मांग की है. ब्रूड स्टॉक और हैचरी फीड्स सहित कुछ और चीजों से शुल्क हटाने की मांग की है. यह मांग अमेरिका के टैरिफ शुल्क के मद्देनजर आई है. हालांकि अमेरिकी ने टैरिफ शुल्क 90 दिन के लिए रोक दिया है. लेकिन यह माना जा रहा है कि इससे पहले कि शुल्क वाली मुसीबत दोबारा आए, कोई रास्ता निकाला जाए.

लगभग 100 प्रतिशत अमेरिका से आयात किया गया झींगा

अंग्रेजी अखबार द बिजनेसलाइन के मुताबिक प्रॉन फार्मर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ने कहा कि झींगा की खेती में इस्तेमाल होने वाले ब्रूड-स्टॉक का लगभग 100 प्रतिशत अमेरिका से आयात किया गया है. साथ ही बड़ी मात्रा में हैचरी फीड, प्री-मिक्स और आर्टेमिया का आयात किया गया है. इन शुल्कों को समाप्त करने से निष्पक्ष व्यापार को बढ़ावा मिलेगा और तमाम समस्याओं को दूर करने में आसानी होगी. साथ ही अमेरिका की इस जवाबी कार्रवाई के बीच दोनों देशों को साथ काम करने के लिए बनी नींव को मजबूती मिलेगी.

झींगा किसान बिना मार्जिन के काम कर रहे

फेडरेशन के अध्यक्ष आईपीआर मोहन राजू ने बताया कि 26 प्रतिशत अमेरिकी पारस्परिक शुल्क, 3.88 प्रतिशत का मौजूदा एंटी-डंपिंग शुल्क और 5.77 प्रतिशत का काउंटरवेलिंग शुल्क झींगा उद्योग के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर रहा है. देश भर में किसान कम या बिना किसी मार्जिन के कम आय पर काम कर रहे हैं. 90 फीसदी से अधिक छोटे और सीमांत किसान हैं, जिनके पास दो हेक्टेयर से कम जमीन है.

किसानों को पहले से कम कीमतें मिल रहीं

झींगा किसान पहले से ही अपनी उपज को अस्थिर रूप से कम कीमतों पर बेच रहे हैं और वर्तमान टैरिफ के साथ उन्हें इस प्रोफेशन में बने रहने के लिए ही बहुत संघर्ष करना पड़ेगा. यह सेक्टर पहले ही आर्थिक तौर पर मदद की गुहार लगाता रहा है. राजू ने बिजनेसलाइन से बातचीत में कहा कि यह क्षेत्र नौ समुद्री राज्यों में फैला हुआ है और मुख्य रूप से अकुशल और अर्ध-कुशल श्रमिकों को आजीविका देता है. लेकिन यह डेवलप्ड सेक्टर नहीं है. उन्होंने कहा कि वैसे ही कीमत कम मिल रही है. ऐसे में इसमें और गिरावट जीविका और जीवन का संकट खड़ा कर देगी. साथ ही उत्पादन कम होगा.

17 लाख 81 हजार 602 टन समुद्री खाद्य निर्यात

2024 में भारत का समुद्री खाद्य निर्यात सबसे ज्यादा था, जो 17 लाख 81 हजार 602 टन तक पहुंच गया. इसका मूल्य 7.38 अरब डॉलर था. इसमें फ्रोजन झींगे का निर्यात प्रमुख था. झींगे का योगदान 4.88 बिलियन डॉलर था. ऐसे में भारत को एफटीए से बचने की कोशिश करनी चाहिए. फेडरेशन से सरकार से अनुरोध किया कि अमेरिका के साथ बातचीत की जाए और किसी तरह इसे जीरो टु जीरो टैरिफ डील में बदला जाना चाहिए. अभी भारत समुद्री खाद्य पदार्थों के आयात पर 35 प्रतिशत शुल्क लगाता है. हालांकि अमेरिका से आने वाली मात्रा ना के बराबर है. फेडरेशन ने समुद्री भोजन के लिए इस शुल्क को हटाने और लार्वा और झींगा फीड ब्रूड-स्टॉक, आर्टेमिया और अन्य जलीय कृषि आदानों पर पांच प्रतिशत शुल्क को हटाने का प्रस्ताव किया जो उद्योग के लिए महत्वपूर्ण हैं.

संघ ने सरकार से चीन को झींगा निर्यात का विस्तार करने के लिए द्विपक्षीय व्यापार घाटे का लाभ उठाने का आग्रह किया, जो इक्वाडोर से बड़ी मात्रा में आयात कर रहा है. घरेलू बाजार की क्षमताओं का अभी तक पूरी तरह इस्तेमाल नहीं किया जा रहा. इसके लिए भी घरेलू बाजार को विकसित करने के लिए कदम उठने की मांग की गई है. इसमें प्रमुख मांग डेडिकेटेड सप्लाई चेन की है.

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Published: 12 Apr, 2025 | 05:14 PM

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