Spinach Farming: पालक एक ऐसी पत्तेदार हरी सब्जी है जो न केवल स्वाद और सेहत में लाभकारी है, बल्कि किसानों के लिए भी बेहद फायदेमंद फसल साबित हो सकती है. यह फसल कम समय में तैयार हो जाती है और कम लागत में अधिक उत्पादन देने की क्षमता रखती है. भारत में पालक की मांग साल भर बनी रहती है, इसलिए इसकी खेती करने वाले किसान नियमित और स्थिर आय कमा सकते हैं. तो चलिए जानते हैं क्यों और कैसे करें किसान पालक की खेती.
पालक की पौष्टिकता और फायदे
पालक में आयरन, कैल्शियम, फास्फोरस और विटामिन A और C प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. ये तत्व शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करते हैं. पालक प्रोटीन से भरपूर होने के कारण शरीर को ऊर्जा भी प्रदान करता है और हड्डियों को मजबूत बनाता है. इसके अलावा, यह जल्दी तैयार होने वाली फसल है, जिससे किसान साल में कई बार फसल चक्र पूरा कर सकते हैं और अधिक मुनाफा कमा सकते हैं.
पालक का उत्पादन और लाभ
पालक की खेती में प्रति हेक्टेयर 150 से 250 क्विंटल उत्पादन संभव है. यह फसल बरसात के मौसम में खासकर लाभकारी होती है, क्योंकि इस समय सिंचाई की आवश्यकता बहुत कम होती है. कम समय में तैयार होने के कारण किसान जल्दी लाभ प्राप्त कर सकते हैं. इसके अलावा, साल भर बाजार में इसकी मांग बनी रहती है, जिससे किसान को अच्छे दाम मिलने की संभावना रहती है.
पालक की बुवाई का सही समय
पालक की बुवाई के लिए सबसे अच्छा समय दिसंबर माना जाता है. हालांकि, सही वातावरण होने पर इसे पूरे साल उगाया जा सकता है. जनवरी-फरवरी, जून-जुलाई और सितंबर-अक्टूबर में बुवाई करना सर्वोत्तम माना जाता है. भारत में ‘ऑल ग्रीन’, ‘पूसा हरित’, ‘पूसा ज्योति’, ‘बनर्जी जाइंट’ और ‘जोबनेर ग्रीन’ जैसी किस्में सबसे अधिक उत्पादन देती हैं. किसान अपने क्षेत्र के अनुसार इन किस्मों का चयन कर सकते हैं.
मिट्टी और जमीन का चयन
पालक हल्की दोमट मिट्टी में अच्छी तरह उगता है. इसके लिए खेत में पानी का निकास अच्छा होना चाहिए. खास बात यह है कि पालक लवणीय मिट्टी में भी अच्छी तरह विकसित हो सकता है, जहां अन्य फसलें सफल नहीं होतीं. मिट्टी में नमी बनाए रखना जरूरी है, क्योंकि इससे पौधों की पत्तियां ताजी और हरी बनी रहती हैं.
खरपतवार नियंत्रण और देखभाल
पालक की लगभग 60 फीसदी फसल खरपतवारों के कारण बर्बाद हो सकती है. इसलिए बुवाई के तुरंत बाद पेंडीमेथिलिन का छिड़काव करना जरूरी है. छिड़काव के समय मिट्टी में नमी बनी रहना चाहिए. इसके अलावा, फसल की निरंतर निगरानी करना और समय-समय पर सिंचाई करना भी जरूरी है.
सिंचाई और पोषण
पालक की उपज सीधे मिट्टी की नमी और पोषण पर निर्भर करती है. फसल को पर्याप्त नाइट्रोजन और पोषक तत्व मिलना जरूरी है. सर्दियों में पालक की फसल को 10 से 12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए. कटाई से 2-3 दिन पहले पानी देना चाहिए ताकि पत्तियां ताजी और हरी बनी रहें. जुलाई में बुवाई करने पर आमतौर पर बारिश का पानी पर्याप्त होता है.
कटाई का तरीका
पालक की पहली कटाई बुवाई के लगभग 25 दिनों बाद करनी चाहिए, जब पत्तियों की लंबाई 15 से 30 सेंटीमीटर हो. कटाई के दौरान पौधों की जड़ों से लगभग 5-6 सेंटीमीटर ऊपर से पत्तियों को काटना चाहिए. इसके बाद हर 15 से 20 दिनों के अंतराल पर कटाई जारी रखनी चाहिए. कटाई के बाद सिंचाई करना जरूरी है ताकि फसल की नई पत्तियों की वृद्धि अच्छी हो.
पालक की खेती कम समय, कम लागत और अधिक लाभ का बेहतरीन विकल्प है. सही समय पर बुवाई, मिट्टी और पानी की देखभाल, खरपतवार नियंत्रण और नियमित कटाई से किसान साल में कई बार इस फसल की कटाई कर लाखों रुपये की आमदनी कमा सकते हैं.