लगातार बारिश और बीमारियों से काली मिर्च की फसल चौपट, 44 फीसदी तक गिरी पैदावार

मौसम वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि यदि दक्षिण भारत का बारिश पैटर्न इसी तरह अस्थिर रहा, तो आने वाले वर्षों में काली मिर्च का उत्पादन और गिर सकता है. इस फसल को संतुलित मौसम चाहिए, लेकिन जलवायु परिवर्तन इसकी सबसे बड़ी चुनौती बनता जा रहा है.

नई दिल्ली | Published: 27 Nov, 2025 | 09:15 AM

दक्षिण भारत में इस साल काली मिर्च की खेती ऐसी चुनौतियों से घिर गई है, जिसने किसानों की उम्मीदों पर बड़ा असर डाला है. लगातार बदलते मौसम, असामान्य बारिश और फसलों पर फैल रहे नए रोगों ने इस महत्वपूर्ण मसाला फसल को बुरी तरह प्रभावित किया है. कभी आय का मजबूत साधन रही काली मिर्च अब किसानों के लिए जोखिम भरी और अनिश्चित खेती बनती जा रही है.

कर्नाटक में उत्पादन ढह गया, किसानों की चिंता बढ़ी

कर्नाटक, जो देश में काली मिर्च उत्पादन में सबसे आगे है, इस साल सबसे ज्यादा संकट का सामना कर रहा है. पिछले वर्ष जहां तकरीबन 86,000 टन उत्पादन हुआ था, वहीं इस बार पैदावार घटकर करीब 47,891 टन रह गई अर्थात लगभग 44 फीसदकी गिरावट.

लगातार दो सीजन से फसल कमजोरी दिखा रही है. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि बेलों की सेहत अभी भी सुधर नहीं पाई है, इसलिए 2026 की फसल भी कमजोर रहने का खतरा है. किसानों का कहना है कि ज्यादा बारिश और कम धूप की वजह से दाने ठीक से नहीं बन पाए. छोटे फल, पत्तों पर रोग और लगातार गीलापन ने पूरी फसल की वृद्धि रोक दी.

देशभर में उतार-चढ़ाव, केरल भी प्रभावित

भारत में लगभग 3 लाख हेक्टेयर में काली मिर्च उगाई जाती है लेकिन पिछले कुछ सालों से इसका उत्पादन स्थिर नहीं रहा. कभी बढ़ोतरी, तो कभी तेज गिरावट यही इस फसल का नया पैटर्न बन गया है.

कुछ हालिया उत्पादन संकेत—

2019-20: 61,000 टन

2024: 1.26 लाख टन (सबसे ज्यादा)

2025 अनुमान: 85,000 टन

2026 अनुमान: 74,000 टन

केरल, जो दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, वहां भी इस साल करीब 28 फीसदी कम उत्पादन की संभावना है. मौसम और रोगों का असर वहां भी साफ दिख रहा है.

लगातार बारिश ने बिगाड़ी पूरी खेती

मई से नवंबर के बीच कर्नाटक में जितनी बारिश कई महीनों में होनी चाहिए, उतनी सिर्फ कुछ हफ्तों में हो गई. कई इलाकों में तीन सप्ताह में 60–65 फीसदी तक वार्षिक बारिश दर्ज की गई.

इस अत्यधिक नमी ने काली मिर्च की बेलों को कई गंभीर रोगों की चपेट में ला दिया—

बरसात इतनी ज्यादा थी कि किसान अपने बागानों में प्रवेश तक नहीं कर पाए. न खाद डाली जा सकी, न फंगीसाइड का छिड़काव हो पाया, और न ही बेलों की नियमित देखभाल.

पानी भरने से बड़ी संख्या में बेलें नष्ट

काली मिर्च की बेलें ज्यादा समय तक पानी सहन नहीं कर पातीं. विशेषज्ञों का कहना है कि यदि कुछ घंटों तक भी पानी भर जाए तो बेलें कमजोर पड़ने लगती हैं, लेकिन इस बार तो हफ्तों तक पानी रुका रहा. इससे बड़ी संख्या में बेलें सूख गईं, जड़ें सड़ गईं और कई बागान पूरी तरह खत्म हो गए.

नई बीमारियों का फैलाव और अदरक की खेती का प्रभाव

मौसम बदलने के साथ कुछ नई हवा-जनित फफूंद बीमारियां कोडागु, सकलेशपुर और कर्नाटक के अन्य क्षेत्रों तक फैल चुकी हैं. विशेषज्ञ बताते हैं कि अदरक की बढ़ती खेती ने भी कुछ रोगों को बढ़ाया है, जैसे एंट्रोकोना, पाइटोफेरा, ये रोग फूल बनने के दौरान बेलों को संक्रमित कर देते हैं, जिससे दाने विकसित ही नहीं हो पाते. इसका असर गुणवत्ता और मात्रा दोनों पर पड़ा है.

कीमतें थोड़ी बढ़ीं, लेकिन नुकसान कहीं ज्यादा

उत्पादन कम होने से बाजार में काली मिर्च के दाम बढ़कर 650–750 रुपये प्रति किलो तक पहुंचे हैं. लेकिन किसान मानते हैं कि इतनी वृद्धि उनके नुकसान की भरपाई नहीं कर सकती.

समस्या यह भी है कि श्रीलंका और अन्य देशों से सस्ती मिर्च का आयात बढ़ गया है. यह घरेलू बाजार पर दबाव बनाता है और कीमतों को ऊपर जाने से रोक देता है.

किसानों में बढ़ी अनिश्चितता, भविष्य चुनौती भरा

मौसम वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि यदि दक्षिण भारत का बारिश पैटर्न इसी तरह अस्थिर रहा, तो आने वाले वर्षों में काली मिर्च का उत्पादन और गिर सकता है. इस फसल को संतुलित मौसम चाहिए, लेकिन जलवायु परिवर्तन इसकी सबसे बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. कई किसान अब वैकल्पिक फसलों की ओर जाने की सोच रहे हैं क्योंकि लगातार नुकसान उठाने की क्षमता हर किसी के पास नहीं है.

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