उत्तराखंड में लगभग 80 फीसदी ग्रामीण लोगों की आजीविका खेती पर निर्भर है, लेकिन अब जलवायु परिवर्तन के कारण उन्हें कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है. एक नई रिपोर्ट के अनुसार, 2012 से 2021 के बीच राज्य के पहाड़ी इलाकों में कृषि उत्पादन 15.2 फीसदी घट गया है और खेती की जमीन में 27.2 फीसदी की कमी आई है. बढ़ते तापमान और अनियमित बारिश के कारण पारंपरिक फसलों जैसे चावल और गेहूं की पैदावार पर बुरा असर पड़ा है. लेकिन, अब दलहन और मसाले जैसी फसलों ने जलवायु परिवर्तन के बावजूद अच्छा प्रदर्शन किया है. तो चलिए जानते हैं क्या इन बदलावों से राज्य की खेती को बचाया जा सकता है?
कृषि संकट- क्या वजह है?
उत्तराखंड की खेती में गिरावट के कई कारण हैं. राज्य की अधिकतर जमीन पहाड़ी है और यहां की खेती बारिश पर निर्भर करती है. बढ़ते तापमान और बेमौसम बारिश के कारण पारंपरिक फसलों की पैदावार कम हो गई है. रिपोर्ट के अनुसार, गेहूं, चावल, बाजरा, और जौ जैसी फसलों में 2012 से अब तक काफी गिरावट आई है.
आलू की खेती में गिरावट
आलू, जो राज्य में एक प्रमुख कृषि उत्पाद है, उसकी पैदावार में भी भारी गिरावट आई है. 2020-21 में 3,67,309 मीट्रिक टन आलू का उत्पादन हुआ था, जो 2023-24 में घटकर 1,07,150 मीट्रिक टन रह गया. इसके साथ ही आलू की खेती का क्षेत्र भी घट गया है. यह गिरावट बढ़ते तापमान और सर्दियों में कम बारिश के कारण हुई है, जो आलू के अच्छे विकास के लिए जरूरी है.
दलहन और मसाले
हालांकि, कुछ फसलें जैसे दलहन और मसाले जलवायु परिवर्तन के बावजूद अच्छी हो रही हैं. अरहर, चना और मटर जैसी फसलें अब जलवायु परिवर्तन के बावजूद अच्छे परिणाम दे रही हैं. इन फसलों की खेती में वृद्धि देखी गई है और ये फसलें अब पानी की कम आवश्यकता के कारण ज्यादा फायदेमंद बन रही हैं. इसी के साथ मसालों की खेती भी बढ़ी है, खासकर हल्दी और मिर्च की, जिनकी बाजार में मांग में इजाफा हुआ है.
जलवायु परिवर्तन का असर और समाधान
उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन का असर साफ तौर पर देखा जा सकता है. राज्य का औसत तापमान 1970 के बाद से लगातार बढ़ रहा है, और बारिश की मात्रा में कमी आई है. इसके अलावा, 2023 में 94 मौसमी घटनाओं ने 44,882 हेक्टेयर जमीन को नुकसान पहुंचाया. इन समस्याओं से निपटने के लिए अब किसानों को नई तकनीकों का सहारा लेना पड़ रहा है.
नई तकनीक अपना रहे किसान
उत्तराखंड में पारंपरिक बहु-फसल प्रणाली, जिसे “बरहनाजा” कहा जाता है, को फिर से अपनाया जा सकता है. इस प्रणाली में एक साथ कई फसलें उगाई जाती थीं, जिससे खाद्य सुरक्षा मिलती थी. अब इस पद्धति को आधुनिक तरीके से, जैसे दलहन और मिलेट्स के साथ मिलाकर, फिर से लागू किया जा रहा है. इसके साथ-साथ, जल संचयन और मल्चिंग जैसी नई तकनीकें भी किसानों को मदद कर रही हैं.
उत्तराखंड के कृषि विभाग और कृषि विज्ञान केंद्र अब किसानों को नई तकनीकों के बारे में जानकारी दे रहे हैं. साथ ही, सरकार की योजनाओं से दलहन की खेती को बढ़ावा मिल सकता है. इन नीतियों और तकनीकों से किसानों को अच्छा लाभ हो सकता है, जिससे पहाड़ी कृषि को फिर से जिंदा सकने में मदद मिल सकती है.