वैज्ञानिकों ने तैयार की गजब की मशीन, धान कटाई के साथ करें गेहूं की बुवाई.. पराली से भी निजात

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) ने कंबाइन हार्वेस्टर अटैचमेंट के जरिए एक नई तकनीक विकसित की है, जिससे धान की कटाई के साथ गेहूं की सतही बुवाई और मल्चिंग की जा सकती है. इससे पराली जलाने की जरूरत नहीं पड़ती.

Kisan India
नोएडा | Updated On: 8 Aug, 2025 | 12:06 PM

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) ने एक नई और अनोखी तकनीक विकसित की है, जो धान की कटाई के बाद पराली (फसल अवशेष ) जलाने की समस्या को से निजात दिला सकती है. इस तकनीक के तहत कंबाइन हार्वेस्टर के लिए एक खास अटैचमेंट बनाया गया है, जिससे किसान धान की कटाई के साथ-साथ ही गेहूं की बुवाई भी कर सकते हैं.

यह तरीका खासतौर पर उन किसानों के लिए फायदेमंद होगा जिनकी धान की फसल देर से पकती है और गेहूं बोने का समय बहुत कम होता है. ऐसे भी किसान गेहूं की बुवाई जल्दी करने के लिए अक्सर धान की पराली को जलाते हैं. खास बात यह है कि यह नई तकनीक सतही बुवाई और मल्चिंग (मिट्टी ढकने) का मिश्रण है. इसे पहले ही गुरदासपुर के किसानों के खेतों में सफलतापूर्वक टेस्ट किया जा चुका है. फिलहाल, PAU इसे अमृतसर समेत अन्य जिलों में भी फैलाने की योजना बना रही है.

गेहूं के बीज को मिट्टी की सतह पर बोया जाता है

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक,  इस नई तकनीक में गेहूं के बीज को मिट्टी की सतह पर बोया जाता है. इसके लिए कंबाइन हार्वेस्टर के ब्लेड के ठीक पीछे एक अटैचमेंट लगाया जाता है. हार्वेस्टर के पीछे लगे सुपर SMS से धान के भूसे को बीजों के ऊपर बराबर फैलाया जाता है. डॉ. जसवीर गिल ने कहा कि बीज तभी अंकुरित होते हैं जब खेत में पानी दिया जाता है और धान के भूसे की मल्चिंग मिट्टी में नमी बनाए रखती है और खरपतवार को बढ़ने से रोकती है.

PAU के निदेशक (एक्सटेंशन) डॉ. एमएस भुल्लर ने कहा कि हम इस तकनीक का उपयोग रबी सीजन की दूसरी फसलों की बुवाई के लिए भी ट्रायल कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि धान की कटाई के बाद बहुत सारी जमीन सब्जियों की खेती के लिए इस्तेमाल होती है. लेकिन समय की कमी के कारण सब्जी किसान जल्दी और आसान तरीका अपनाते हैं, जो कि फसल अवशेष जलाना होता है.

किसान पिछले साल से इस्तेमाल कर रहे यह तकनीक

डॉ. भुल्लर ने कहा कि गुरदासपुर के किसानों ने यह तकनीक पिछले साल भी इस्तेमाल की थी, जिससे फसल की पैदावार बढ़ी और खरपतवार की समस्या कम हुई. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय गांवों में कार्यक्रम आयोजित कर किसानों और कंबाइन हार्वेस्टर ऑपरेटर्स को इस नई तकनीक से परिचित करा रहा है. इस जागरूकता अभियान के तहत तारण तारन के छिन्ना बिधि चंद गांव और अमृतसर के वडल जोहल गांव में कार्यक्रम आयोजित किए गए. इन कार्यक्रमों में खालसा कॉलेज के डॉ. गुरबक्स सिंह और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय वैज्ञानिक जैसे डॉ. परमिंदर सिंह टंग, डॉ. परमिंदर सिंह संधू, डॉ. रमिंदर कौर और डॉ. रंजन भट्ट ने भाग लिया.

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Published: 8 Aug, 2025 | 11:56 AM

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