काफी रोचक है होली की यह कहानी, जानें तारीख, महत्व और पूजा विधि

होलिका दहन 13 मार्च को मनाया जाएगा, जो हिरण्यकशिपु की बहन होलिका के दहन की कहानी से जुड़ा है. यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और इसे पूरे देश में विभिन्न रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है.

Kisan India
Noida | Published: 12 Mar, 2025 | 06:00 AM

होली भारत का एक ऐसा त्योहार है जो खुशियों, रंगों और मेल-जोल का संदेश देता है. इस रंगों के त्योहार दिन लोग एक-दूसरे को रंग लगाकर अपनी खुशियों को जाहिर करते हैं. यह त्योहार फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है और हर कोई इसे बड़े जोश और उत्साह के साथ सेलिब्रेट करता है. यह त्‍यौहार दो दिन मनाया जाता हैं जिसमें पहले दिन होलिका दहन होता है. होलिका दहन में लकड़ियों और उपलों से आग जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाया जाता है.

होलिका दहन की धार्मिक मान्‍यता

होलिका दहन को छोटी होली भी कहते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होलिका दहन को प्रह्लाद और होलिका की पौराणिक कथाओं से जोड़ा जाता हैं.  इसके अगले दिन रंगवाली होली खेली जाती है, जिसे धुलंडी भी कहा जाता है. इस दिन लोग एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं, पानी से खेलते हैं. यह त्योहार सिर्फ रंगों का ही नहीं, बल्कि प्यार, भाईचारे और नई शुरुआत का प्रतीक भी माना जाता है. होली हमें सिखाती है कि ज़िंदगी में हर रंग की अपनी अलग ही अहमियत होती है.

कब है छोटी होली 2025?

हिंदू पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि 13 मार्च को सुबह 6:05 बजे शुरू होगी और 14 मार्च को सुबह 7:53 बजे समाप्त होगी. ऐसे में होलिका दहन 13 मार्च की रात को किया जाना शुभ माना जा रहा है. इस दौरान शुभ मुहूर्त में होलिका जलाकर लोग बुरी शक्तियों का अंत करेंगे और सुख-समृद्धि की कामना करेंगे.

पौराणिक कथा क्या हैं?

छोटी होली का इतिहास भक्त प्रह्लाद और होलिका से जुड़ा है, जिसे भागवत गीता में विस्तार से बताया गया है. कहानी के अनुसार, हिरण्यकशिपु नामक एक अहंकारी राक्षस राजा था, जिसे एक विशेष वरदान प्राप्त था. इस वरदान की वजह से उसे न दिन में, न रात में, न किसी अस्त्र से, न किसी शस्त्र से, न धरती पर और न ही आकाश में मारा जा सकता था. इस वरदान के कारण वह खुद को अजेय मानता था और चाहता था कि सभी लोग सिर्फ उसी की पूजा करें.

तो वहीं हिरण्यकशिपु का बेटा प्रह्लाद भगवान विष्णु के भक्त थे. यह देखकर वह बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने प्रह्लाद को मारने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन हर बार भगवान विष्णु ने उसकी रक्षा की. अंत में, हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका की मदद ली, जिसे एक अग्निरोधक (आग में न जलने वाला) वरदान प्राप्त था. उन दोनों ने मिलकर एक योजना बनाई. जिसमें होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर जलती हुई अग्नि में बाथ जाएं. जिससे प्रह्लाद जलकर भस्म हो जाएगा और होलिका सुरक्षित बच जाएगी.

लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से एक तेज हवा चली और वह अग्निरोधक वस्त्र उड़कर प्रह्लाद के ऊपर गिर गई. जिससे प्रह्लाद सुरक्षित बच गए और होलिका जलकर भस्म हो गई. इस घटना के बाद से हर साल होलिका दहन किया जाता है, जो यह संदेश देता है कि सत्य और भक्ति की हमेशा जीत होती है और अहंकार का अंत होता है.

छोटी होली के प्रमुख संदेश

  • यह त्योहार हमें सिखाता है कि सत्य और भक्ति की हमेशा जीत होती है.
  • हिरण्यकशिपु की कहानी यह दर्शाती है कि कोई भी व्यक्ति अपने अहंकार के कारण अंततः नष्ट हो जाता है.
  • होलिका दहन से वातावरण शुद्ध होता है और नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है.
  • इस अवसर पर लोग मिलकर पूजा-अर्चना करते हैं, जिससे सामाजिक संबंध मजबूत होते हैं.

कैसे होती है होलिका दहन की तैयारी?

होलिका दहन एक विशेष विधि से किया जाता है, जिसमें कई धार्मिक अनुष्ठान शामिल होते हैं.

  • लकड़ी, उपले (गोबर के कंडे) और सूखे पत्तों से होलिका तैयार की जाती है.
  • होलिका के ऊपर एक पुतला रखा जाता है, जिसे बुराई का प्रतीक माना जाता है.
  • फिर शाम के समय शुभ मुहूर्त में पूजा की जाती है

होलिका दहन की विधि

सबसे पहले होलिका की पूजा की जाती है, जिसमें फूल, कुमकुम, अक्षत और गंगाजल अर्पित किया जाता है. गेंहू, चना, नारियल और गुड़ जैसी वस्तुएं अग्नि को समर्पित की जाती हैं. लोग होलिका के चारों ओर परिक्रमा करते हैं और भजन-कीर्तन करते हैं. होलिका जलाने के बाद उसकी राख को माथे पर लगाने की परंपरा भी है, जिसे शुभ माना जाता है.

छोटी होली के अनोखे रीति-रिवाज

भारत के अलग-अलग राज्यों में होलिका दहन को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है. उत्तर प्रदेश और बिहार में होलिका दहन के बाद लोग गेंहू और चने की बालियों को भूनकर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं. मध्य प्रदेश और राजस्थान राज्यों में गांवों में बड़े जुलूस और भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है. गुजरात और महाराष्ट्र में होलिका दहन के दौरान लोग कृषि से जुड़ी चीजों की विशेष पूजा करते हैं. तो वहीं पश्चिम बंगाल में होली को डोल पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है, जिसमें भगवान कृष्ण और राधा की मूर्तियों को झूले पर रखा जाता है और शोभा यात्रा निकाली जाती है.

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Published: 12 Mar, 2025 | 06:00 AM

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