Papaya Farming Tips: देश भर में पपीते की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. कच्चे व पके हुए दोनों तरह के पपीते की मांग बाजार में अधिक रहती है, लेकिन पपीते के पौधे को लाल मकड़ी, तना गलन, पर्ण कुंचन और फल सड़न से बचाना एक बड़ा टास्क माना जाता है. पपीते की फसल में लगने वाले प्रमुख कीटों में से एक है लाल मकड़ी. इसके प्रकोप से पपीते के फल खुरदरे व काले पड़ जाते हैं, पत्तियों पर पीली फफूंद लग जाते हैं.
पपीते की खेती का क्रेज बढ़ता जा रहा है. अब पपीते की बागवानी बड़े पैमाने पर होने लगी है. एक सीजनल फल होने के बावजूद भी इससे होने वाली आमदनी किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान करती है. इस फसल से जितना लाभ प्राप्त होता है वहीं अगर हार्वेस्टिंग से पूर्व कुछ खास प्रकार के कीट लग जाएं तो परेशानी का कारण बन जाते हैं. यदि आपको कुछ खास प्रकार की कीटनाशकों की जानकारी है तो इस समस्या से निजात पाना बेहद सरल हो जाता है. बहरहाल, कृषि विशेषज्ञ ने पपीते में लगने वाले प्रमुख रोगों और कीटों से बचाव के लिए कुछ अहम सुझाव साझा किए हैं. यदि किसान इन उपायों को अपनाए तो न सिर्फ उनकी फसल सुरक्षित होगी, बल्कि आमदनी में भी जबरदस्त इजाफा होगा.
पपीते के पौधों पर मुख्य रूप से लाल मकड़ी, तना गलन, पर्ण कुंचन और फल सड़न जैसे रोगों का प्रकोप होता है, इसलिए इन रोगों के लक्षण और उपचार के बारे में जानना बहुत जरूरी है.
लाल मकड़ी का हमला
पपीते की फसल में लगने वाले प्रमुख कीटों में से एक है लाल मकड़ी का हमला. इसके लग जाने के कारण फल खुरदरे और काले हो जाते हैं तथा पत्तियों पर भी पीली फफूंद दिखाई देती है. इससे निपटने का सबसे सरल उपाय यही है कि जिन पत्तियों पर लाल मकड़ी का हमला हुआ हो उन्हें तोड़कर खेत से दूर गड्ढे में दबा दिया जाए ताकि कीटों का फैलाव न हो सके.
तना गलन
पपीते के फसल की दूसरी समस्या तना गलन की होती है. यह रोग पपीते के तने के ऊपरी भाग से शुरू होकर जड़ तक पहुंचता है जिसके कारण पौधा सूख जाता है. इस समस्या से निजात पाने के लिए किसानों को चाहिए कि पपीते के पेड़ के आसपास पानी के जमाव न होने दें. सिंचाई के उपरांत जल निकासी की भी व्यवस्था करनी चाहिए। जिन पौधों में रोग लग गया हो, उन्हें तुरंत खेत से बाहर निकाल कर जला देना चाहिए. साथ ही तने के चारों ओर बोडो मिश्रण (6:6:50) यह कॉपर ऑक्सिक्लोराइड (0.3 प्रतिशत), टाप्सीन – एम (0.1 प्रतिशत) का छिड़काव जून, जुलाई और अगस्त में कम से कम तीन बार किया जाना चाहिए.
लीफ कर्ल
पपीते के पौधे में एक समस्या लीफ कर्ल रोग की भी होती है. यह विषाणु जनित रोग है, जो सफेद मक्खियों के माध्यम से फैलता है. इससे पत्तियां सिकुड़ कर मुड़ जाती हैं और पौधे की वृद्धि रुक जाती है. उप कृषि निदेशक ने बताया कि यह एक प्रकार का रोग है, जिससे 80% तक फसल बर्बाद होती है. इसे रोकने के लिए केवल स्वस्थ पौधे का चयन करना चाहिए. अगर किसी पौधे में रोग लग गया है तो उसे उखाड़ कर खेत से दूर गड्ढे में दबा कर नष्ट कर देना चाहिए. सफेद मक्खियों के नियंत्रण के लिए डायमियोएट 1 मि. ली. प्रति लीटर पानी में गोल बनाकर छिड़काव करें.
धब्बा रोग
पपीते के पेड़ में लगने वाले रोगों में से कॉलेटोट्ररोईकम ग्लीयोस्पोराईड्स एक प्रमुख रोग है. इस रोग के कारण पपीते के फलों पर छोटे काले धब्बे बनते हैं जो बाद में भूरे – काले पड़ जाते हैं. इस कारण फल समय से पहले पकने व गिरने लग जाते हैं. यह रोग फल के लगने से लेकर पकने तक लगता है. इस समस्या से निजात पाने के लिए आपको कॉपर ऑक्सिक्लोराइड 2.0 ग्राम/लीटर पानी में या मेन्कोजेब 2.5 ग्राम/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए. साथ ही संक्रमित पौधे को जड़ से उखाड़ कर जला दें और उस स्थान पर दोबारा पौधा न लगाए.
यदि आप पपीते की खेती करते हैं तो इन टिप्स का उपयोग करके न सिर्फ पौधे को खराब होने से बचा पाएंगे बल्कि पैदावार को भी अधिक बढ़ा पाएंगे. बाज़ार में कच्चे व पके दोनों पपीते की मांग बनी रहती है. ऐसे में यदि रोगों और कीटों पर समय रहते नियंत्रण पा लिया जाए, तो पपीते की खेती को एक फायदेमंद सौदा बनाया जा सकता है.