केला हो या आम, अब बीमारियों से नहीं डरेंगे पेड़- ग्राफ्टिंग से होगा समाधान

आज जब जलवायु परिवर्तन और बीमारियां पेड़-पौधों को नुकसान पहुंचा रही हैं, ग्राफ्टिंग एक ऐसा तरीका बन चुका है जो न सिर्फ फलों के पेड़ों को बचा रहा है, बल्कि उन्हें और ज्यादा मजबूत और उत्पादक बना रहा है.

नई दिल्ली | Published: 22 May, 2025 | 02:59 PM

आपने कभी सोचा है कि एक ही पेड़ पर कई किस्मों के आम या सेब लग सकते हैं? या एक पेड़ जो कई अलग-अलग फलों का स्वाद दे सकता है? यह कोई जादू नहीं, बल्कि एक पुरानी लेकिन बेहद काम की तकनीक है ग्राफ्टिंग. आज जब जलवायु परिवर्तन और बीमारियां पेड़-पौधों को नुकसान पहुंचा रही हैं, ग्राफ्टिंग एक ऐसा तरीका बन चुका है जो न सिर्फ फलों के पेड़ों को बचा रहा है, बल्कि उन्हें और ज्यादा मजबूत और उत्पादक बना रहा है.

ग्राफ्टिंग क्या होता है?

ग्राफ्टिंग एक बागवानी तकनीक है जिसमें दो अलग-अलग पौधों को आपस में जोड़कर एक नया, अधिक मजबूत पौधा तैयार किया जाता है. इसमें एक पौधे का रूटस्टॉक (यानी जड़ वाला हिस्सा) और दूसरे का स्कायन (टहनी या शाखा) जोड़ दिए जाते हैं. दोनों पौधे एक ही प्रजाति या नस्ल के होने चाहिए ताकि आपस में सही तरीके से जुड़ सकें. यह तरीका हजारों सालों से उपयोग में है. माना जाता है कि चीन में 2000 ईसा पूर्व से भी पहले ग्राफ्टिंग का इस्तेमाल हो रहा था.

ग्राफ्टिंग क्यों जरूरी है?

पेड़ों को बीमारियों से बचाने के लिए: कई बार पेड़ों की जड़ों में ऐसी बीमारियां लग जाती हैं जिनका इलाज मुश्किल होता है. ग्राफ्टिंग से एक मजबूत जड़ वाले पेड़ में दूसरी किस्म की शाखा लगाकर बीमारी को रोका जा सकता है.

उत्पादन बढ़ाने के लिए: ग्राफ्टिंग से तैयार पौधे जल्दी फल देते हैं और गुणवत्ता भी बेहतर होती है.

लुप्त हो रही किस्मों को बचाने के लिए: भारत में आम की कई देसी किस्में खत्म होने की कगार पर थीं, लेकिन ग्राफ्टिंग की मदद से उन्हें दोबारा जिंदा किया गया.

आज के समय में ग्राफ्टिंग कैसे मदद कर रही है?

केरल का आम गांव: दक्षिण भारत के केरल राज्य में कन्नापुरम गांव में लोगों ने 200 से ज्यादा देसी आम की किस्मों को बचाने के लिए ग्राफ्टिंग का इस्तेमाल किया. इसी वजह से इस गांव को “इंडिजिनस मैंगो हेरिटेज एरिया” का दर्जा दिया गया.

‘मैंगो मैन’ की करामात: उत्तर भारत के एक व्यक्ति, कलीम उल्लाह खान ने एक ही आम के पेड़ में 315 किस्मों के आम उगा दिए और वो भी ग्राफ्टिंग से!

सेब, चेरी, और प्लम के पेड़: अमेरिका में एक प्रोफेसर ने ग्राफ्टिंग से एक ऐसा पेड़ तैयार किया जो 40 तरह के फल देता है जैसे चेरी, प्लम, पीच, और नेक्टेरिन.

केले की बीमारी से जंग: आजकल केले पर एक घातक फंगस (TR4) हमला कर रहा है जिसे “बनाना पेंडेमिक” कहा जाता है. वैज्ञानिक अब ग्राफ्टिंग की मदद से रोग-प्रतिरोधी जड़ को केले के पौधों से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं.

मोनोकोट पौधों में ग्राफ्टिंग: पहले माना जाता था कि ग्राफ्टिंग केवल डाइकोट (दो बीज पत्रों वाले) पौधों में ही काम करती है, लेकिन कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अब मोनोकोट पौधों (जैसे केले) में भी ग्राफ्टिंग को सफल बना दिया है.

ग्राफ्टिंग से क्या सीख मिलती है?

  • एक पेड़ में कई किस्मों के फल उगाना खेती को ज्यादा स्मार्ट बनाता है.
  • जो पेड़ विलुप्त हो रहे हैं, उन्हें बचाने में ग्राफ्टिंग एक वरदान है.
  • बीमारी और जलवायु परिवर्तन से लड़ने का यह एक मजबूत तरीका है.