भारत में आम को फलों का राजा कहा जाता है, और दुनिया में सबसे ज्यादा आम भारत में ही उगते हैं. हर साल हम लगभग 26 मिलियन टन आम उगाते हैं. लेकिन हैरानी की बात यह है कि इतने बड़े उत्पादन के बावजूद हम एक्सपोर्ट के मामले में सिर्फ चौथे नंबर पर आते हैं. और इससे भी ज्यादा चिंता की बात है, हमारे देश में करीब 40 फीसदी आम बाजार तक पहुंचने से पहले ही खराब हो जाते हैं. यानी हमारी मेहनत, हमारी मिट्टी, और हमारे किसान, सबका एक बड़ा हिस्सा बेकार चला जाता है.
अब सवाल ये उठता है कि क्या भारत में आम की खेती को एक नई दिशा दी जा सकती है? इसका जवाब हो सकता है जामनगर में मुकेश अंबानी का फार्म “आमनगर”. चलिए जानते हैं क्यों हम आम के निर्यात में पीछे हैं और कैसे आमनगर भारत को एक नई दिशा दे सकता है.
मेक्सिको कर रहा है कमाल
मेक्सिको ने आम की खेती की शुरुआत केवल 35 साल पहले की थी, लेकिन इतने कम समय में उसने खुद को दुनिया के टॉप आम निर्यातकों की सूची में शामिल कर लिया है. वहां खेती बड़े पैमाने पर की जाती है और पूरी तरह से आधुनिक तकनीकों से लैस है. सिंचाई से लेकर पैकेजिंग तक हर स्तर पर वैज्ञानिक और व्यवस्थित तरीके अपनाए जाते हैं. सबसे अहम बात यह है कि वहां की सरकार इस क्षेत्र को पूरा सहयोग देती है, जिससे किसानों को ना सिर्फ बेहतर तकनीक मिलती है बल्कि वैश्विक बाजार तक पहुंचने का रास्ता भी खुलता है.
अगर आंकड़ों की बात करें तो, मेक्सिको अपनी कुल आम फसल का करीब 22.5 फीसदी हिस्सा निर्यात करता है और इससे सालाना लगभग 575 मिलियन डॉलर की कमाई करता है. वहीं भारत, जो दुनिया में सबसे ज्यादा आम उगाता है, करीब 26 मिलियन टन, वो सिर्फ 0.13 फीसदी आम ही विदेश भेज पाता है, जिससे हमें सिर्फ 148 मिलियन डॉलर की आय होती है. इस तुलना से साफ है कि हमारी क्षमता तो है, लेकिन उसका सही उपयोग नहीं हो पा रहा है.
भारत में क्यों पिछड़ रहा है आम?
भारत में आम की खेती कोई नई बात नहीं है यह परंपरा हजारों साल पुरानी है. हमारे यहां दशहरी, लंगड़ा, अलफांसो जैसे दर्जनों किस्मों के आम पीढ़ियों से उगाए जा रहे हैं. फिर भी जब बात अंतरराष्ट्रीय बाजार में हिस्सेदारी की आती है, तो भारत पीछे रह जाता है.
इसका सबसे बड़ा कारण है बुनियादी सुविधाओं की कमी. खेतों से आम तोड़ने के बाद उन्हें लंबे समय तक ताजा रखने के लिए जिस कोल्ड स्टोरेज या ठंडे भंडारण की जरूरत होती है, उसकी भारी कमी है. इसके अलावा ट्रांसपोर्ट व्यवस्था भी उतनी विकसित नहीं है कि आम को तेजी से और बिना नुकसान के बाजार तक पहुंचाया जा सके.
भारत में ज्यादातर किसान छोटे और बिखरे खेतों में खेती करते हैं, जिससे बड़े पैमाने पर उत्पादन और प्रोसेसिंग मुमकिन नहीं हो पाती. इसके साथ ही, एक्सपोर्ट से जुड़े नियम, लाइसेंस और कागजी प्रक्रियाएं किसानों और छोटे उत्पादकों के लिए काफी मुश्किल और समय लेने वाले हैं. ऊपर से, हमारी कई आम की किस्में विदेशी बाजार की जरूरतों को पूरी तरह नहीं निभा पातीं, जैसे कि लंबे समय तक ताजा रहना, एक जैसी क्वालिटी और ग्लोबल पैकिंग स्टैंडर्ड.
इन सबके चलते, भारत का एक बड़ा आम उत्पादन खेत में ही सड़ जाता है या बेकार हो जाता है, और जो थोड़ा बहुत विदेश पहुंचता है, उसकी भी मात्रा और गुणवत्ता दोनों सीमित रह जाती हैं. ऐसे में भारत की आम की ताकत, दुनिया में उसका पूरा असर नहीं दिखा पाती.
“आमनगर”-अंबानी की आम क्रांति
मुकेश अंबानी का जामनगर में स्थित आम का फार्म, जिसे “आमनगर” कहा जाता है, भारतीय आम उद्योग के लिए एक नया अध्याय खोलने वाला प्रोजेक्ट है. यह फार्म करीब 600 एकड़ में फैला हुआ है और इसे एशिया का सबसे बड़ा आम का बागान माना जाता है.
यहां 1,30,000 से भी ज्यादा आम के पेड़ लगाए गए हैं, जिनमें से कई किस्में देश और विदेश दोनों की मांग को ध्यान में रखते हुए चुनी गई हैं. कुल मिलाकर, यहां 200 से अधिक विभिन्न किस्मों के आम उगाए जाते हैं, जो खेती की विविधता और गुणवत्ता का एक बड़ा उदाहरण हैं.
फार्म पर खेती के लिए आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कि तकनीकी सिंचाई पद्धतियां, वैज्ञानिक तरीके से मिट्टी और पौधों की देखभाल, और फलों की पैकेजिंग ग्लोबल मार्केट के अनुसार की जाती है. “आमनगर” केवल एक खेती का केंद्र नहीं, बल्कि भारत और एशिया के लिए एक आदर्श मॉडल बन चुका है, जो दिखाता है कि कैसे पारंपरिक खेती को आधुनिक तकनीक और व्यवस्थित प्रबंधन के साथ जोड़कर आम के उत्पादन और निर्यात को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है.
भारत की आम क्रांति का अगला कदम
यदि मुकेश अंबानी का “आमनगर” मॉडल पूरे देश में लागू किया जाए, तो यह आम की बर्बादी को काफी हद तक कम कर सकता है और किसानों की आय में बढ़ोतरी कर सकता है. इससे न सिर्फ घरेलू उत्पादन बेहतर होगा, बल्कि भारत आम के वैश्विक बाजार में अपनी मजबूत पकड़ भी बना सकेगा. वैश्विक मांग लगातार बढ़ रही है और अनुमान है कि 2025 तक दुनिया में आम की खपत 65 मिलियन टन तक पहुंच जाएगी. इस तेजी से बढ़ती मांग को देखते हुए भारत के लिए यह समय बेहद महत्वपूर्ण है. अगर सही दिशा में कदम उठाए जाएं, तो भारत दुनिया का सबसे बड़ा आम निर्यातक बनने की राह पर अग्रसर हो सकता है.
हालांकि भारत दुनिया में सबसे ज्यादा आम उगाता है, लेकिन निर्यात के मामले में अभी भी पीछे है. “आमनगर” जैसे आधुनिक और संगठित फार्म इस तस्वीर को पूरी तरह बदल सकते हैं और भारत को आम के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व दिला सकते हैं.