25 अगस्त को दिल्ली के जंतर-मंतर पर आयोजित किसान महापंचायत एक ऐतिहासिक जनसमागम में तब्दील हो गई. भारी बारिश और पुलिस की चेकिंग के बावजूद, हजारों की संख्या में देशभर से आए किसानों ने एकजुटता दिखाई और अपनी आवाज बुलंद की. चेकिंग के नाम पर कई किसानों को रास्ते में ही रोक लिया गया, जिससे दिल्ली की सड़कों पर लंबे जाम लग गए. लेकिन इसके बावजूद किसान आंदोलनकारियों का उत्साह कम नहीं हुआ और उन्होंने जंतर-मंतर पहुंचकर महापंचायत को सफल बनाया.
महापंचायत में शामिल हुए देशभर के किसान नेता
इस महापंचायत में संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) के बैनर तले देश के कोने-कोने से किसान संगठनों के प्रमुख नेता पहुंचे. मंच पर जगजीत सिंह डल्लेवाल, पी. आर. पांड्यन, अनिल तालान, बलदेव सिंह सिरसा, सतनाम सिंह बेहरु, काका सिंह कोटड़ा, अभिमन्यु कोहाड़, गुरदास सिंह, मनिंदर सिंह मान, रघुवीर पंघाला समेत कई जाने-माने किसान नेता मौजूद रहे. इन नेताओं ने सरकार को चेताया कि अगर किसानों की मांगों को जल्द पूरा नहीं किया गया, तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा.
सरकार को सौंपा गया मांगपत्र, MSP कानून प्रमुख मांग
महापंचायत के दौरान संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) ने भारत सरकार के कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को एक मांगपत्र सौंपा. इस पत्र में प्रमुख रूप से तीन मुख्य मांगें रखी गईं:-
- MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की कानूनी गारंटी
- किसान आंदोलन के दौरान दर्ज हुए झूठे मुकदमों को रद्द करना
- भारत-अमेरिका व्यापार समझौते से कृषि, डेयरी, पोल्ट्री और मछली पालन को बाहर रखना
- मांगपत्र में यह भी बताया गया कि 22 अगस्त को इसी मुद्दे पर कृषि मंत्री को पहले भी एक पत्र भेजा जा चुका है.
सरकार की ओर से बातचीत का प्रस्ताव, किसानों ने रखा विश्वास
महापंचायत से एक दिन पहले, देर रात को भारत सरकार के कृषि मंत्रालय की ओर से संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) को एक पत्र भेजा गया, जिसमें प्रतिनिधिमंडल से शीघ्र बातचीत की तिथि तय करने की बात कही गई. किसानों ने इस पहल का स्वागत तो किया लेकिन साथ ही यह स्पष्ट किया कि जब तक ठोस निर्णय नहीं होते, आंदोलन जारी रहेगा. किसान नेताओं ने कहा कि पिछले आंदोलनों की तरह इस बार भी वे पूरी तरह शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात रखेंगे, लेकिन सरकार को अब केवल आश्वासन नहीं, एक्शन दिखाना होगा.
लोकतंत्र की मिसाल बनी किसान महापंचायत
जंतर-मंतर पर हुई यह महापंचायत न केवल किसानों की ताकत को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि लोकतंत्र में जनता की आवाज को दबाया नहीं जा सकता. किसान नेताओं ने बार-बार यह दोहराया कि यह आंदोलन किसी राजनीतिक दल से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह पूरी तरह गैर-राजनीतिक और किसानों के अधिकारों के लिए है. इस शांतिपूर्ण महापंचायत ने एक बार फिर से किसानों के आंदोलन को केंद्र में ला दिया है और सरकार के सामने स्पष्ट कर दिया है कि जब तक मांगें पूरी नहीं होतीं, किसान पीछे नहीं हटेंगे.