ग्रामीण विकास मंत्रालय (MoRD) ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) के लिए वित्त साल 2029-30 तक 5 सालों के लिए 5.23 लाख करोड़ रुपये के बजट की मांग की है. यह जानकारी मंत्रालय के जरिए 15 मई को खर्च वित्त समिति (EFC) को प्रस्तुत प्रस्ताव में दी गई है. EFC वित्त मंत्रालय के अंतर्गत एक समिति है जो सभी सरकारी योजनाओं और परियोजनाओं का मूल्यांकन करती है.
कोविड के बाद से गिरावट
योजना के तहत काम की मांग और बजट कोविड महामारी के दौरान अपने चरम पर पहुंचा था, लेकिन उसके बाद से इसमें लगातार गिरावट देखी गई है. ग्रामीण परिवारों की संख्या जो योजना का लाभ उठा रहे हैं, वह भी पिछले सालों में कम हुई है. उदाहरण के लिए, 2020-21 में 7.55 करोड़ परिवारों ने योजना का लाभ लिया था, जो 2024-25 में घटकर 5.79 करोड़ परिवारों तक पहुंच गया है.
मंत्रालय ने आगामी पांच सालों के लिए बजट में इजाफे का प्रस्ताव इसलिए रखा है क्योंकि इसमें सामग्री लागत में महंगाई और मजदूरी दरों में इजाफे को ध्यान में रखा गया है, जो सीधे तौर पर महंगाई से जुड़ी है. पिछले पांच सालों में MGNREGS के लिए केंद्रीय सरकार से जारी धनराशि में भी कमी आई है. 2020-21 में केंद्र की ओर से जारी किया गया बजट 1,09,810 करोड़ रुपये था, जो 2024-25 में घटकर 85,680 करोड़ रुपये रह गया है.
पांच सालों में कितना आवंटन
साल 2020-21 से 2024-25 तक के पिछले पांच कारोबारी सालों में मनरेगा (MGNREGS) के लिए जारी आवंटन केंद्र सरकार के कुल 4.68 लाख करोड़ रुपये से अधिक है. साल 2020-21 में, जो कोविड-19 महामारी के बाद का पहला पूर्ण साल था, केंद्र सरकार की ओर से मनरेगा के लिए 1,09,810 करोड़ रुपये की अधिकतम राशि जारी की गई थी. उस साल रोजगार की मांग में भारी उछाल देखा गया, जब रिकॉर्ड 7.55 करोड़ ग्रामीण परिवारों ने इस योजना का लाभ उठाया. यह योजना प्रवासी मजदूरों के लिए जीवन रक्षक बन गई थी, जो लॉकडाउन के चलते गांव लौट आए थे.
इसके बाद से केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई राशि घटती गई और 2024-25 में 85,680 करोड़ रुपये के साथ यह पांच सालों में सबसे कम रही. इसी अवधि में योजना के तहत काम करने वाले परिवारों की संख्या भी घटती गई, जो 2021-22 में 7.25 करोड़, 2022-23 में 6.18 करोड़, 2023-24 में 5.99 करोड़ और 2024-25 में 5.79 करोड़ रही. पिछले तीन वित्तीय सालों (2022-23 से 2024-25) के आंकड़ों में पश्चिम बंगाल के लाभार्थियों को शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि वहां मार्च 2022 से यह योजना स्थगित है.
यह रोजगार गारंटी योजना केंद्र सरकार की उस योजना के अतिरिक्त है, जिसके तहत साल 2029 तक लगभग 81.35 करोड़ लाभार्थियों को मुफ्त अनाज उपलब्ध कराया जाएगा.
सूत्रों के अनुसार, व्यय वित्त समिति (EFC) की मंजूरी केंद्र सरकार द्वारा आगामी वित्त आयोग चक्र के लिए अपनी योजनाओं के पुनर्गठन की प्रक्रिया का हिस्सा है. चूंकि मनरेगा एक विधिक योजना है, इसलिए EFC की मंजूरी केवल एक औपचारिकता है. ग्रामीण विकास मंत्रालय (MoRD) द्वारा प्रस्तावित बजटीय आवंटन एक “अनुमान” है और यह “बदलाव के अधीन” है क्योंकि यह योजना मांग आधारित है.
इस योजना को मनरेगा अधिनियम, 2005 की धारा 4 के तहत राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा अधिसूचित किया गया है. अधिनियम के अनुसार, “हर राज्य सरकार को इस अधिनियम के लागू होने के छह माह के भीतर एक अधिसूचना द्वारा योजना बनानी होगी, जिसके तहत ग्रामीण क्षेत्र के प्रत्येक परिवार को, जिसके वयस्क सदस्य आवेदन करके अकुशल श्रम कार्य करने के इच्छुक हों, प्रति वित्तीय साल कम से कम 100 दिनों का गारंटीकृत रोजगार प्रदान किया जाए.”
अधिनियम के अनुसार, केंद्र सरकार तीन घटकों-मजदूरी, प्रशासनिक व्यय और सोशल ऑडिट यूनिट्स की 100% लागत का भुगतान करती है. इसके अलावा, सामग्री लागत का तीन-चौथाई हिस्सा (जिसमें कुशल और अर्धकुशल श्रमिकों की मजदूरी शामिल है) भी केंद्र द्वारा वहन किया जाता है, बशर्ते कि अधिनियम की अनुसूची II में वर्णित शर्तों का पालन हो. राज्य सरकारें निम्नलिखित लागतों की जिम्मेदार होंगी:
- योजना के तहत देय बेरोजगारी भत्ता
- सामग्री लागत का एक-चौथाई हिस्सा
- राज्य परिषद का प्रशासनिक व्यय.
मनरेगा की शुरुआत साल 2006-07 में 200 सबसे पिछड़े ग्रामीण जिलों में की गई थी. फिर 2007-08 में इसे 130 और जिलों में विस्तारित किया गया और 2008-09 में इसे पूरे देश में लागू कर दिया गया.
MoRD ने यह EFC नोट ऐसे समय में प्रसारित किया है, जब सरकार अगले 16वें वित्त आयोग चक्र (1 अप्रैल से शुरू) के लिए अपनी योजनाओं को प्राथमिकता देने की प्रक्रिया में जुटी है. वित्त मंत्रालय ने सभी मंत्रालयों को निर्देश दिया है कि 31 मार्च 2026 के बाद किसी भी केंद्रीय योजना को जारी रखने पर तभी विचार किया जाएगा जब उसकी थर्ड-पार्टी मूल्यांकन रिपोर्ट उपलब्ध हो.