आयुर्वेद में मिलता है जिक्र.. फिर भी देश में नहीं होती हींग की खेती, हजारों करोड़ रुपये का होता है आयात

भारत हींग का सबसे बड़ा उपभोक्ता होने के बावजूद, इसे अफगानिस्तान, ईरान और उज्बेकिस्तान जैसे देशों से आयात करता है. इस आयात पर निर्भरता कम करने के लिए सरकार ने हींग की घरेलू खेती को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय मिशन शुरू किया.

वेंकटेश कुमार
नोएडा | Updated On: 1 Aug, 2025 | 12:35 PM

हींग एक ऐसा मसाला है, जिसके बगैर हम लजीज दाल या सब्जी की कल्पना ही नहीं कर सकते हैं. क्योंकि हींग का तड़का लगाते ही दाल और सब्जियों का स्वाद लजीज हो जाता है. यही वजह है हींग हर भारतीय के किचन में उपलब्ध होती है. खाने के साथ-साथ इसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक औषधी के रूप में भी होता है. लेकिन क्या आपको मालूम है कि रसोई में इतजा ज्यादा इस्तेमाल होने के बावजूद भी देश में हींग की खेती नहीं होती है. विदेशों से इसका आयात किया जाता है. हालांकि, हाल ही में हिमाचल प्रदेश के अंदर एक किसान ने इसकी खेती करने में सफलता पाई है. ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों की उम्मीद जगी है कि अब इसकी खेती व्यवसायिक रूप से भी की जा सकती है.

भले ही भारत में हींग की खेती नहीं होती हो, लेकिन इसका जिक्र आयुर्वेद जैसे भारतीय ग्रंथों में भी मिलता है. आयुर्वेद में इसे होश और इंद्रियों को ताजा करने वाला बताया गया है. चरक संहिता के अनुसार, हींग पेट दर्द दूर करने, अपच को ठीक करने और स्वाद बढ़ाने में मदद करती है. हालांकि, पिप्पलाद संहिता और पाणिनी के ग्रंथों में भी हींग का उल्लेख है.

हींग की खेती के लिए उचित तापमान

हींग के पौधे ठंडी और शुष्क जलवायु में अच्छे से उगते हैं. ये ईरान, अफगानिस्तान और मध्य एशिया जैसे इलाकों में प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं. इसकी खेती के लिए रेतीली और पानी जल्दी सोखने वाली जमीन चाहिए. इसकी खेती के लिए बहुत कम नमी की जरूरत होती है. हींग के लिए 200 मिमी से कम बारिश अच्छा माना गया है, लेकिन इसकी फसल 300 मिमी तक सह सकती है. खास बात यह है कि हींग के पौधे 10 से 20 डिग्री तापमान में अच्छे से बढ़ते हैं, लेकिन यह 40 डिग्री तक गर्मी और -4 डिग्री तक सर्दी भी सह सकते हैं. बहुत ज्यादा ठंड और सूखे मौसम में यह पौधा कुछ समय के लिए सुस्त हो जाता है, ताकि यह जीवित रह सके.

ज्यादा बारिश हींग के लिए नहीं है उपयुक्त

हींग की खेती के लिए ठंडी और कम बारिश वाली जगहें सबसे अच्छी मानी जाती हैं. भारत में लाहौल-स्पीति (हिमाचल) और उत्तरकाशी (उत्तराखंड) जैसे ऊंचाई वाले, अर्ध-शुष्क इलाके हींग की खेती के लिए उपयुक्त हैं. ज्यादातर बारिश या मिट्टी में ज्यादा नमी होने से हींग का पौधा ठीक से नहीं बढ़ पाता.

पौधों से इस रूप में निकलती है हींग

ऐसे मार्केट में हींग पाउडर के रूप में बिकती है, लेकिन हींग का उत्पादन एक तरह का गोंद (ओलियो-गम रेजिन) के रूप में होता है, जो पौधे की मोटी जड़ (टैपरूट) और राइजोम से निकाली जाती है. इस गोंद में से 40 से 64 फीसदी तक हिस्सा सूखी हींग के रूप में मिलता है. हालांकि, हींग एक बहुवर्षीय पौधा है. यानी इसे पूरी तरह तैयार होने और फूल आने में करीब 5 साल लगते हैं. फिर जड़ में हल्की कटाई की जाती है, जिससे सफेद दूध जैसा पदार्थ निकलता है जो हवा में सूखकर गोंद जैसा बन जाता है. यही रेजिन सुखाकर पाउडर या क्रिस्टल के रूप में तैयार किया जाता है और खाने व दवाओं में इस्तेमाल होता है.

भारत इन देशों से करता है हींग का आयात

हाल तक तक, भारत हींग का सबसे बड़ा उपभोक्ता होने के बावजूद, इसे अफगानिस्तान, ईरान और उज्बेकिस्तान जैसे देशों से आयात करता था. इस आयात पर निर्भरता कम करने के लिए सरकार ने हींग की घरेलू खेती को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय मिशन शुरू किया. इस मिशन की अगुवाई CSIR-आईएचबीटी (IHBT), पालमपुर, हिमाचल प्रदेश ने की. 2018 से 2020 के बीच संस्थान ने दुनियाभर में उन बीजों की खोज की जो भारत की जमीन पर उग सकते थे. सफल परीक्षणों के बाद पहली बार भारत में हींग की खेती की शुरुआत हुई.

बीज के लिए 20 से ज्यादा सप्लायर्स से बातचीत

इस प्रोग्राम के तहत, CSIR-IHBT के वैज्ञानिकों ने हींग के बीज मंगवाने के लिए ईरान, अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका की संबंधित एजेंसियों से संपर्क किया. उन्होंने 20 से ज्यादा सप्लायर्स से बातचीत की. इन कोशिशों का नतीजा यह रहा कि सबसे पहले ईरान से और बाद में अफगानिस्तान से हींग के बीज मंगवाए गए. हींग के बीजों के आयात में कानूनी और स्वास्थ्य सुरक्षा नियमों का पालन करना जरूरी था. इसके लिए दिल्ली स्थित ICAR-NBPGR (नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज) ने जरूरी आयात परमिट जारी किए और सभी क्वारंटीन जांचें पूरी कीं. जब बीज जांच में पास हो गए, तो उन्हें रिसर्च और खेती के ट्रायल के लिए IHBT को सौंप दिया गया.

ईरान से 6 प्रकार के बीज भारत लाए गए

पहली बार अक्टूबर 2018 में ईरान से 6 प्रकार के बीज भारत लाए गए. लेकिन वैज्ञानिकों को कई जैविक चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जैसे बीजों का बहुत धीमा अंकुरण. इसके बाद IHBT की टीम ने इसके लिए खास अंकुरण तकनीकें विकसित कीं, यह तय किया कि कौन-सी ऊंचाई वाले इलाके खेती के लिए सही हैं और भारतीय परिस्थितियों के लिए खेती के तौर-तरीके तैयार किए. इन बीजों की पहली नियंत्रित खेती पालमपुर स्थित IHBT लैब और लाहौल-स्पीति के रिबलिंग सेंटर फॉर हाई ऑल्टिट्यूड बायोलॉजी में की गई.

लाहौल घाटी के क्वारिंग गांव से शुरू हुई हींग की खेती

भारत में हींग की घरेलू खेती की असली शुरुआत 15 अक्टूबर 2020 को हुई, जब लाहौल घाटी के क्वारिंग गांव में एक किसान के खेत में पहला हींग का पौधा लगाया गया. इसी के साथ देश में स्वदेशी हींग उत्पादन की यात्रा आधिकारिक रूप से शुरू हो गई. इसके कुछ हफ्तों बाद ही एक और बड़ा कदम उठाया गया. 8 नवंबर 2020 को मंडी जिले के जंजैहली गांव में हींग का पौधा लगाया गया. यह पहली बार था जब हींग की खेती को हाई-हिल इलाकों (मध्य पहाड़ी क्षेत्र) तक बढ़ाया गया. इससे यह समझने में मदद मिली कि हींग को सिर्फ लाहौल जैसे ठंडे रेगिस्तानी क्षेत्रों तक सीमित रखने की बजाय, अन्य पहाड़ी इलाकों में भी इसकी खेती संभव है.

हर साल सैकड़ों टन हींग का आयात

CSIR-NIScPR के अनुसार, भारत अपनी हींग की जरूरतों के लिए काफी हद तक आयात पर निर्भर है. यह हर साल विदेशों से सैकड़ों टन हींग का आयात करता है. वर्ष 2022-23 में भारत ने 1.441 हजार टन हींग का आयात किया, जिसकी कुल कीमत लगभग 187.88 मिलियन अमेरिकी डॉलर यानी 1,559.3 करोड़ रुपये रही.  खासकर अफगानिस्तान से सबसे ज्यादा निर्यात करता है. खास बात यह है कि हींग की कीमतों में उतार-चढ़ाव होता रहता है, लेकिन 2003 से अब तक आयात की मात्रा में लगातार बढ़ोतरी देखी गई है.

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Published: 1 Aug, 2025 | 10:00 AM

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