केरल में 10 साल में खेती की लागत दोगुनी, मुआवजा जस का तस, किसानों हुए परेशान

पोटाश की कीमत जो एक दशक पहले 360 रुपये थी, अब बढ़कर 1,700 रुपये हो गई है. इसी तरह, मिश्रित उर्वरक की कीमत 300 रुपये से बढ़कर 500 रुपये हो गई है. इस साल सब्सिडी कम होने से किसानों को डर है कि खेती की लागत और भी बढ़ जाएगी.

Kisan India
Updated On: 25 Feb, 2025 | 03:16 PM

केरल में इन दिनों किसान काफी परेशान हैं और उनकी परेशानी की वजह है खेती की लागत में इजाफा होना. पिछले एक दशक में केरल में खेती की लागत में भारी वृद्धि हुई है, बीज और उर्वरकों की कीमतें दोगुनी हो गई हैं और खेत मजदूरों की मजदूरी भी बढ़ गई है. हालांकि, इंसानों और जानवरों के बीच संघर्ष की वजह से फसल के नुकसान के लिए वन विभाग द्वारा दिया जाने वाले मुआवजे में कोई बदलाव नहीं हुआ है.

पोटाश भी हुआ महंगा

वेबसाइट मातृभूमि की रिपोर्ट के अनुसार पोटाश की कीमत जो एक दशक पहले 360 रुपये थी, अब बढ़कर 1,700 रुपये हो गई है. इसी तरह, मिश्रित उर्वरक की कीमत 300 रुपये से बढ़कर 500 रुपये हो गई है. इस साल सब्सिडी कम होने से किसानों को डर है कि खेती की लागत और भी बढ़ जाएगी. मुआवजा दरों में अंतिम संशोधन 8 जनवरी, 2015 को किया गया था. सरकारी आदेश के अनुसार, जंगली जानवरों द्वारा नष्‍ट की गई धान की फसल के लिए किसानों को 11,000 रुपये प्रति हेक्टेयर मिलते हैं – जो कि लगभग 25,000 रुपये प्रति एकड़ है.

धान की खेती महंगी

अब एक एकड़ धान की खेती पर 30,000 से 35,000 रुपये तक का खर्च आता है. केले के लिए, फलदार पेड़ों के लिए मुआवजा 110 रुपये और गैर-फलदार पेड़ों के लिए 83 रुपये है. किसानों का तर्क है कि एक केले के पेड़ की खेती में कम से कम 250 रुपये खर्च होते हैं. वन विभाग कृषि और राजस्व विभागों द्वारा दी जाने वाली राशि में एक निश्चित प्रतिशत जोड़कर मुआवजे की गणना करता है.

साल 2012 में हुआ इजाफा

साल 2012 में राजस्व विभाग ने अपनी मुआवजा दरों में वृद्धि की, और वन विभाग ने 10 फीसदी की वृद्धि की. उदाहरण के लिए, 2009 में धान की फसल के लिए मुआवजा 4,000 रुपये प्रति हेक्टेयर था. राजस्व विभाग ने 2012 में इसे बढ़ाकर 10,000 रुपये कर दिया, जबकि वन विभाग ने 2015 में इसे केवल 1,000 रुपये बढ़ाया. नारियल के पेड़ों के लिए, विभाग फलदार पेड़ के लिए 770 रुपये और गैर-फलदार पेड़ के लिए 385 रुपये प्रदान करता है.

नारियल की खेती महंगी

एक सिंगल हाइब्रिड नारियल के पौधे की कीमत 400 रुपये है, जिसमें गड्ढे खोदने, उर्वरक, कीटनाशक और सिंचाई के लिए अतिरिक्त लागत शामिल है. एक एकड़ में सब्जियां उगाने की लागत बढ़कर चार लाख रुपये हो गई है. हालांकि, मुआवजा 10 सेंट के लिए 220 रुपये ही है, जो कुल मिलाकर 2,200 रुपये प्रति एकड़ है. पहले, खेती की लागत लगभग 1 लाख रुपये थी, लेकिन हाइब्रिड फसलों की ओर रुख करने के साथ, बीज का खर्च तीन गुना हो गया है.

रबर की खेती का खर्च

साल 2015 में रबर के पेड़ पर सात साल के लिए 2,000 से 2,500 रुपये तक का खर्च आता था. अब यह दोगुना हो गया है. काटे गए पेड़ के लिए मुआवजा 330 रुपये और काटे नहीं गए पेड़ के लिए 220 रुपये है. इसी तरह, मिर्च की बेल को तीन साल तक बनाए रखने का खर्च 800-1,000 रुपये था, जो अब दोगुना हो गया है, जबकि मुआवजा 83 रुपये ही है. आवेदन करने के बाद भी किसानों को मुआवजा मिलने में काफी देरी होती है.

साल 2010-11 में, केरल में फसल नुकसान से संबंधित 3,965 शिकायतें दर्ज की गईं. साल 2023-24 में यह संख्या बढ़कर 8,141 हो गई. 2024-25 के लिए, 2,503 शिकायतें पहले ही दर्ज की जा चुकी हैं. किसान शिकायतों में हालिया गिरावट का कारण अपर्याप्त मुआवजा और लंबा इंतजार माना जा रहा है.

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Published: 24 Feb, 2025 | 04:41 PM

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