यूरोपीय संघ की नई नीति से भारत के चावल निर्यात पर खतरा, क्या बदल जाएगा अंतरराष्ट्रीय बाजार?

EU अब भारत, पाकिस्तान, म्यांमार, कंबोडिया और अन्य एशियाई देशों से आने वाले चावल पर नए सुरक्षा नियम (Safeguard Mechanism) लगाने जा रहा है. इन नए नियमों का सीधा असर हमारे देश के बासमती और नॉन-बासमती चावल के कारोबार पर पड़ेगा.

नई दिल्ली | Published: 5 Dec, 2025 | 09:21 AM

दुनिया भर में खाने-पीने की वस्तुओं का व्यापार लगातार बदल रहा है, और इसी कड़ी में यूरोपीय संघ (EU) की एक बड़ी तैयारी भारत के चावल निर्यातकों के लिए चिंता का कारण बन गई है. EU अब भारत, पाकिस्तान, म्यांमार, कंबोडिया और अन्य एशियाई देशों से आने वाले चावल पर नए सुरक्षा नियम (Safeguard Mechanism) लगाने जा रहा है.

इन नए नियमों का सीधा असर हमारे देश के बासमती और नॉन-बासमती चावल के कारोबार पर पड़ेगा. ऐसे समय में जब भारत–EU फ्री ट्रेड एग्रीमेंट की बातचीत तेज है, यह कदम चौंकाने वाला माना जा रहा है. विशेषज्ञ मानते हैं कि EU एक तरफ सहयोग की बात कर रहा है, लेकिन दूसरी तरफ अपने किसानों और मिल मालिकों की सुरक्षा के नाम पर सख्ती कर रहा है.

EU क्या करने जा रहा है?

यूरोपीय संघ में यह प्रस्ताव पास हो चुका है कि अब चावल आयात की एक सीमा तय की जाएगी. कोई भी देश अगर इस सीमा से ज्यादा चावल भेजता है, तो उस पर अतिरिक्त आयात शुल्क (MFN Tariff) लगाया जाएगा.

ये बदलाव जनवरी 2027 से लागू हो सकते हैं. इसका मतलब यह है कि भारत का चावल अगर तय सीमा से ज्यादा भेजा गया, तो उस पर भारी शुल्क लग सकता है, जिससे कीमत बढ़ेगी और EU बाजार में भारतीय चावल कम प्रतिस्पर्धी रह जाएगा.

EU यह कह रहा है कि एशियाई देशों से आने वाले चावल की मात्रा पिछले वर्षों की तुलना में बहुत ज्यादा बढ़ गई है, जिससे उनके स्थानीय किसान दबाव में हैं.

भारत के लिए क्यों बढ़ी चिंता?

भारत दुनिया के सबसे बड़े चावल निर्यातकों में शामिल है. EU हर साल करीब 23 लाख टन चावल आयात करता है, जिसमें भारत और पाकिस्तान की हिस्सेदारी बड़ी है.

2004–05 तक EU में भारत का ज्यादातर निर्यात भूसे वाला (husked) चावल था, लेकिन अब भारत की बड़ी मात्रा में प्रोसेस्ड (milled) और पैकेट बंद प्रीमियम चावल भी EU जाता है.

अब EU मिलर्स यह चाहते हैं कि पैक्ड चावल कम आए और कच्चा धान अधिक आए. ताकि वे अपने यूरोपीय कारखानों में इसे प्रोसेस कर सकें और खुद ब्रांड के रूप में बेच सकें.

यूरोपीय मिलर्स का दबाव

EU के 8 देश मिलकर एक नई संस्था EURice बना चुके हैं. यह संगठन खुलकर चावल आयात कम करने की मांग कर रहा है. वे कहते हैं-भारत, पाकिस्तान, कंबोडिया और म्यांमार से आयात इतना बढ़ गया है कि उनका अपना उद्योग कमजोर पड़ रहा है.

कई देशों पर लेबर राइट्स और पेस्टिसाइड नियम तोड़ने का भी आरोप लगाया जा रहा है. इसी दबाव में EU अब शुल्क बढ़ाने की रणनीति अपना रहा है.

भारत–EU व्यापार पर क्या असर पड़ेगा?

विशेषज्ञों का कहना है कि EU का यह कदम बाजार को ‘ओलिगोपॉली’ की ओर ले जाएगा यानी कम कंपनियों का दबदबा बढ़ेगा. भारतीय किसानों और निर्यातकों पर इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा.

हालांकि कुछ बड़ी भारतीय कंपनियों ने पहले ही EU में प्रोसेसिंग यूनिट लगाना शुरू कर दिया है, लेकिन छोटे और मध्यम निर्यातकों पर सबसे बड़ा असर होगा.

किसानों और व्यापारियों के लिए आगे क्या?

भारत अभी EU के साथ FTA (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट) पर बातचीत कर रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि हमें इस नई नीति पर सख्त आपत्ति दर्ज करानी चाहिए, क्योंकि यह एक तरह की ‘नॉन-टैरिफ बैरियर’ बन रही है.

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