पाकिस्तान की उड़ी नींद, 26 देशों में चावल निर्यात बढ़ाने की तैयारी में भारत, किसानों को होगा फायदा

भारत अंतरराष्ट्रीय राइस कॉन्फ्रेंस 2025 के माध्यम से भारत अपने किसानों, निर्यातकों और वैश्विक खरीदारों को जोड़कर चावल व्यापार में नई ऊंचाइयों तक पहुंचने की तैयारी कर रहा है. यह पहल न केवल देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगी, बल्कि किसानों के लिए भी नई आय और रोजगार के अवसर लेकर आएगी.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 25 Oct, 2025 | 10:08 AM

Rice exports: भारत दुनिया के सबसे बड़े चावल उत्पादकों और निर्यातकों में से एक है और अब देश अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी पकड़ और मजबूत करने की तैयारी में है. भारत 26 नए देशों में चावल के निर्यात को बढ़ाने की योजना बना रहा है. इन देशों में फिलिपींस, इंडोनेशिया, यूके, मेक्सिको, सऊदी अरब, वियतनाम, इराक, अमेरिका, मलेशिया, चीन, फ्रांस, UAE, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, बेल्जियम, जापान, जर्मनी और केन्या शामिल हैं.

द इकोनॉमिक्स टाइम्स की खबर के अनुसार, कृषि और प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (APEDA) के अध्यक्ष अभिषेक देव ने बताया कि इस पहल का मकसद उन देशों में भारत की पैठ बढ़ाना है, जहां अब तक पाकिस्तान और अन्य प्रतिस्पर्धी देशों का दबदबा है. ऐसे बाजारों में भारतीय चावल की विविध किस्मों बासमती और नॉन-बासमती के जरिए निर्यात बढ़ाया जा सकता है.

अंतरराष्ट्रीय राइस कॉन्फ्रेंस 2025

भारत में होने वाला भारत अंतरराष्ट्रीय राइस कॉन्फ्रेंस (BIRC) 2025 इस विस्तार योजना का मुख्य हिस्सा होगा. यह दो दिवसीय सम्मेलन भारत मंडपम, नई दिल्ली में आयोजित होगा. कॉन्फ्रेंस में उत्पादक, निर्यातक, आयातक, नीति निर्माता, वित्तीय संस्थान, लॉजिस्टिक कंपनियां, शोध संस्थान और अन्य संबंधित सेवा प्रदाता शामिल होंगे. इसका उद्देश्य वैश्विक चावल व्यापार में पारदर्शिता, दक्षता और मजबूती सुनिश्चित करना है.

इस कार्यक्रम में 3,000 से अधिक किसान और किसान उत्पादक संगठन (FPOs), 1,000 से ज्यादा विदेशी खरीदार 80 से अधिक देशों से, और 2,500 निर्यातक, मिलर्स और संबद्ध उद्योग हिस्सा लेंगे. सरकार को उम्मीद है कि इस सम्मेलन के दौरान लगभग 25,000 करोड़ रुपये के एमओयू (MoUs) साइन होंगे और 1.8 लाख करोड़ रुपये के नए निर्यात बाजार खुलेंगे.

भारत की चावल उत्पादन और निर्यात क्षमता

सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, भारत ने 2024–25 में लगभग 150 मिलियन टन चावल का उत्पादन किया, जो करीब 47 मिलियन हेक्टेयर में उगाया गया. यह विश्व उत्पादन का लगभग 28 प्रतिशत है. पिछले दस सालों में औसत उपज 2.72 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 3.2 टन प्रति हेक्टेयर हो गई है. इसके पीछे बेहतर बीज किस्में, उन्नत कृषि पद्धतियां और सिंचाई प्रणाली का विस्तार प्रमुख कारण हैं.

वित्तीय वर्ष 2024–25 में भारत ने लगभग 20.1 मिलियन टन चावल का निर्यात किया, जिसका मूल्य लगभग 12.95 बिलियन डॉलर था. अब भारतीय चावल 172 से अधिक देशों तक पहुंच चुका है. निर्यात में इस वृद्धि से न केवल किसानों की आय बढ़ी है, बल्कि भारत की वैश्विक खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में भी मजबूती आई है.

चुनौतियां और अवसर

वैश्विक चावल बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है. भारत के लिए चुनौती यह है कि वह अपने निर्यात बाजारों में मजबूत पकड़ बनाए रखे, गुणवत्ता सुनिश्चित करे और समय पर डिलीवरी करे. वहीं अवसर यह है कि वैश्विक मांग के बढ़ते दबाव के बीच भारत नई किस्मों, तकनीक और किसानों की भागीदारी के जरिए निर्यात बढ़ा सकता है.

भारत अंतरराष्ट्रीय राइस कॉन्फ्रेंस 2025 के माध्यम से भारत अपने किसानों, निर्यातकों और वैश्विक खरीदारों को जोड़कर चावल व्यापार में नई ऊंचाइयों तक पहुंचने की तैयारी कर रहा है. यह पहल न केवल देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगी, बल्कि किसानों के लिए भी नई आय और रोजगार के अवसर लेकर आएगी.

पाकिस्तान पर प्रभाव

भारत के 26 नए देशों में चावल निर्यात बढ़ाने की योजना से पाकिस्तान के लिए भी चुनौती बढ़ सकती है. इन देशों में पहले से ही पाकिस्तान का मजबूत बाजार था, लेकिन अब भारत की उच्च गुणवत्ता वाली बासमती और नॉन-बासमती किस्मों के निर्यात से पाकिस्तान की पकड़ कमजोर हो सकती है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत सफल रहा, तो पाकिस्तान को इन बाजारों में कीमत और हिस्सेदारी दोनों में कमी का सामना करना पड़ सकता है. इससे दक्षिण एशिया में चावल व्यापार की प्रतिस्पर्धा और तेज होगी और भारत वैश्विक चावल बाजार में अपनी स्थिति और मजबूत कर सकता है.

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