Rice Export: भारत सरकार ने कृषि उत्पाद निर्यात संवर्धन प्राधिकरण (APEDA) को गैर-बासमती चावल निर्यात अनुबंधों पर वसूले जाने वाले शुल्क का 30 प्रतिशत हिस्सा अपने पास रखने की अनुमति दे दी है. इसे “सेवा और इंफ्रास्ट्रक्चर शुल्क” के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा. वहीं, बाकी 70 प्रतिशत रकम नॉन-बासमती राइस डेवलपमेंट फंड (NBDF) में जमा होगी, जिसका उद्देश्य किसानों को प्रशिक्षण देना, अनुसंधान करना और वैश्विक बाजार में भारतीय गैर-बासमती चावल की ब्रांडिंग व प्रचार करना है.
गैर-बासमती निर्यातकों के लिए नई व्यवस्था
बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, वाणिज्य मंत्रालय ने यह तय किया है कि गैर-बासमती चावल के निर्यात अनुबंधों पर 8 रुपये प्रति टन (जीएसटी अलग) का शुल्क लगेगा. इसमें से 30 प्रतिशत एपीडा रखेगा और बाकी रकम NBDF में जाएगी. NBDF का लक्ष्य है किसानों को बेहतर कृषि प्रथाओं (GAP) और ऑर्गेनिक उत्पादन के प्रशिक्षण देना, उत्पादन बढ़ाना, अनुसंधान करना, व्यापार प्रतिनिधिमंडलों की यात्राएं आयोजित करना और अंतरराष्ट्रीय खरीदार-विक्रेता बैठकें कराना.
NBDF समिति में एपीडा के अध्यक्ष की अध्यक्षता में आठ सदस्य होंगे. इसमें तीन उद्योग प्रतिनिधि और विभिन्न मंत्रालयों व राज्य सरकारों के अधिकारी शामिल होंगे. समिति की पहली बैठक दिवाली से पहले आयोजित करने की योजना है.
बासमती निर्यातकों में नाराजगी
इस फैसले से बासमती चावल निर्यातक असंतुष्ट हैं. उनका कहना है कि उनके लिए एपीडा पहले से 50 प्रतिशत राशि “सेवा शुल्क” के रूप में लेता है, जबकि अब गैर-बासमती के लिए केवल 30 प्रतिशत लेने की अनुमति दी गई है. इससे उद्योग में असंतोष बढ़ गया है.
हरियाणा और पंजाब के बासमती निर्यातक संगठन पहले ही निर्यात अनुबंध पंजीकरण शुल्क में वृद्धि (30 से 70 रुपये प्रति टन) के विरोध में थे. अब उन्होंने मांग की है कि बासमती निर्यातकों से लिए जाने वाले एपीडा शुल्क को भी 50 प्रतिशत से घटाकर 30 प्रतिशत किया जाए. एक प्रमुख निर्यातक ने कहा, “एक ही संस्था एक ही काम कर रही है, तो अलग-अलग नियम क्यों?”
समिति में राज्य और उद्योग प्रतिनिधि
NBDF समिति में देश के शीर्ष 10 चावल उत्पादक राज्यों से दो-दो प्रतिनिधि शामिल होंगे, जिनका कार्यकाल एक वर्ष का होगा. यह सूची हर पांच साल में समीक्षा के बाद बदली जाएगी. समिति में काकीनाडा की TREA, रायपुर की TREACG और IREF के अध्यक्ष स्थायी सदस्य होंगे. उद्योग प्रतिनिधियों की यात्रा और ठहराव का खर्च स्वयं उठाना होगा.
फंड का उपयोग
सरकार ने स्पष्ट किया है कि शुल्क में से 70 प्रतिशत हिस्सा विकास और प्रचार गतिविधियों में खर्च किया जाएगा. यह रकम किसानों के प्रशिक्षण, उत्पादन बढ़ाने, अनुसंधान, व्यापारिक बैठकें, प्रचार कार्यक्रम और उपभोक्ता सर्वेक्षण में इस्तेमाल की जाएगी. इसका उद्देश्य यह है कि भारत का गैर-बासमती चावल विश्व बाजार में मजबूत पहचान बनाए और किसानों की आमदनी भी बढ़े.
इस फैसले से गैर-बासमती चावल निर्यातकों को फायदा मिलेगा, लेकिन बासमती निर्यातक समान नीति की मांग कर रहे हैं. आने वाले हफ्तों में समिति की बैठक और सरकार के रुख से तय होगा कि क्या बासमती और गैर-बासमती निर्यातकों के लिए नियम समान होंगे या नहीं.