भारत में कपास का भंडार नए रिकॉर्ड की ओर बढ़ रहा है. कपास एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CAI) के मुताबिक अक्टूबर 2025 से शुरू होने वाले नए सीजन में देश का कैरी-फॉरवर्ड कपास स्टॉक करीब 60.69 लाख गांठ (प्रत्येक 170 किलो) तक पहुंचने का अनुमान है. यह पिछले पांच साल में सबसे ज्यादा होगा. मौजूदा 2024-25 सीजन (जो सितंबर में खत्म होगा) की शुरुआत में यह स्टॉक 39.19 लाख गांठ था.
आयात में बढ़ोतरी ने बढ़ाया स्टॉक
बिसनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, CAI के अध्यक्ष अतुल एस गणात्रा ने बताया कि स्टॉक बढ़ने की सबसे बड़ी वजह कपास का ज्यादा आयात है. 2024-25 सीजन में कपास का आयात लगभग 41 लाख गांठ तक पहुंच गया, जबकि पिछले साल यह सिर्फ 15 लाख गांठ था. सरकार ने हाल ही में टेक्सटाइल उद्योग को राहत देने के लिए कपास पर लगने वाला 11 फीसदी आयात शुल्क साल के अंत तक हटा दिया है. इससे आयात में तेजी आई है और अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में करीब 20 लाख गांठ और आयात होने की उम्मीद है.
उत्पादन और खपत के ताजा अनुमान
2024-25 सीजन के लिए CAI ने कपास उत्पादन का अनुमान 312.40 लाख गांठ किया है, जो पहले से 1 लाख ज्यादा है. अगस्त तक करीब 307.09 लाख गांठ की आवक हो चुकी है और सितंबर में 5.31 लाख गांठ आने की संभावना है.
- महाराष्ट्र में उत्पादन अनुमान 1 लाख बढ़कर 91 लाख गांठ हुआ.
- आंध्र प्रदेश में 0.5 लाख बढ़कर 12.5 लाख गांठ.
- तेलंगाना में 0.5 लाख घटकर 49 लाख गांठ.
देश में कपास की खपत का अनुमान पहले जैसा ही 314 लाख गांठ रखा गया है. अगस्त तक लगभग 286 लाख गांठ की खपत हो चुकी है.
निर्यात में गिरावट
कपास के बढ़ते आयात और घरेलू खपत के बावजूद निर्यात में कमी देखने को मिल रही है. 2024-25 सीजन में निर्यात का अनुमान 18 लाख गांठ लगाया गया है, जो पिछले साल के 28.36 लाख गांठ के मुकाबले करीब 10 लाख कम है.
असर और आगे की चुनौती
विशेषज्ञों का कहना है कि रिकॉर्ड स्टॉक और बढ़ते आयात से घरेलू बाजार में कीमतों पर दबाव बन सकता है. हालांकि, टेक्सटाइल उद्योग को सस्ती कपास मिलने से उत्पादन लागत घटेगी, जिससे कपड़ा उद्योग को राहत मिल सकती है. वहीं, किसानों के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण हो सकती है क्योंकि कीमतों में गिरावट से उनकी कमाई पर असर पड़ सकता है.
भारत का कपास स्टॉक इस बार न सिर्फ घरेलू खपत बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार पर भी असर डाल सकता है. आने वाले महीनों में सरकार और उद्योग की रणनीति कपास के दाम और निर्यात के रुख को तय करेगी.