भारत में कपास का आयात बढ़ा, निराश किसानों की सरकार से अपील

किसान खुश नहीं हैं क्योंकि पैदावार कम है. उनका कहना है कि अंतरराष्‍ट्रीय स्तर पर कपास की कीमतें कम हैं और मिलें वहां से खरीद कर पा रही हैं. भारतीय कपड़ा उद्योग के लिए अंतरराष्‍ट्रीय स्तर पर कपास की कीमतें कम हैं.

Kisan India
Noida | Published: 13 Mar, 2025 | 04:33 PM

पिछले सात महीनों में कच्चे और बेकार कपास का आयात भारत में तेजी से बढ़ा है. विशेषज्ञों की मानें तो भारत में कपास की उत्पादकता में सुधार के उपायों की सख्‍त जरूरत को सामने लाकर रख दिया है. देश के किसान सरकार से कपास की उत्पादकता में सुधार के लिए उपाय करने का आग्रह कर रहे हैं ताकि वैश्विक बाजार में कपास की गिरती कीमतों के बीच स्थानीय बाजारों को अंतरराष्‍ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाया जा सके.

कैसा रहा 2024 में आयात

अखबार द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार अगस्त 2024 में कपास का आयात 104 मिलियन डॉलर, सितंबर 2024 में 134.2 मिलियन डॉलर, अक्टूबर में 127.71 मिलियन डॉलर, नवंबर में 170.73 मिलियन डॉलर और दिसंबर 2024 में 142.89 मिलियन डॉलर था. इस साल जनवरी में यह 184.64 मिलियन डॉलर था. तुलनात्मक रूप से अगस्त 2023 में आयात 74.4 मिलियन डॉलर, सितंबर 2023 में 39.91 मिलियन डॉलर, अक्टूबर 2023 में 36.68 मिलियन डॉलर, नवंबर 2023 में 30.61 मिलियन डॉलर और दिसंबर 2023 में 29.47 मिलियन डॉलर था. जनवरी 2024 में आयात 19.62 मिलियन डॉलर था.

जबकि अगर 2023 की बात करें तो अगस्त 2023 में आयात 74.4 मिलियन डॉलर, सितंबर 2023 में 39.91 मिलियन डॉलर, अक्टूबर 2023 में 36.68 मिलियन डॉलर, नवंबर 2023 में 30.61 मिलियन डॉलर और दिसंबर 2023 में 29.47 मिलियन डॉलर था. जनवरी 2024 में आयात 19.62 मिलियन डॉलर था.

क्‍यों खुश नहीं हैं किसान

इस बीच, भारतीय कपास निगम (सीसीआई) ने 1 अक्टूबर, 2024 को नए सीजन की शुरुआत से बाजार में आए भारतीय कपास की करीब 100 लाख गांठें खरीदी हैं. दिसंबर 2024 में कपास की अधिकतम आवक के मौसम में, सीसीआई ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर रोजाना आवक का करीब 60 फीसदी खरीदा. शनिवार को शंकर 6 किस्म के कपास का भाव 52,500 रुपये प्रति क्विंटल था.

तेलंगाना के एक कपास किसान के हवाले से अखबार ने लिखा है कि कपास के किसान खुश नहीं हैं क्योंकि पैदावार कम है. उनका कहना है कि अंतरराष्‍ट्रीय स्तर पर कपास की कीमतें कम हैं और मिलें वहां से खरीद कर पा रही हैं. कर्नाटक राज्य किसान संघों के महासंघ के अध्यक्ष कुर्बुर शांताकुमार ने कहा कि प्रति क्विंटल उत्पादन लागत 9,000 रुपये है और एमएसपी 7,235 रुपये है. लेकिन, दलाल खुले बाजार में केवल 5,000 रुपये से 5,500 रुपये प्रति क्विंटल पर खरीद रहे थे.

कपास की कीमतें कमजोर

भारतीय कपड़ा उद्योग के लिए अंतरराष्‍ट्रीय स्तर पर कपास की कीमतें कमजोर हैं. कपड़ों और घरेलू वस्त्रों के लिए निर्यात मांग में वृद्धि के साथ कपड़ा उद्योग को अंतरराष्‍ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी होने की जरूरत है. निर्यात किए जाने वाले 60 फीसदी से ज्‍यादा कपड़ा उद्योग कपास आधारित हैं. एक्स्ट्रा लॉन्ग स्टेपल कपास को ड्यूटी फ्री आयात किया जा सकता है. निर्यातक अग्रिम प्राधिकरण के तहत बिना शुल्क के कपास आयात कर सकते हैं.

क्‍या कहते हैं विशेषज्ञ

इंडस्‍ट्री सूत्रों की तरफ से कहा गया है कि ऐसा लगता है कि मिलों ने कपास का आयात किया है. ऐसा इ‍सलिए है क्योंकि अंतरराष्‍ट्रीय कपास की कीमतें भारतीय कीमतों से कम थीं. आयात ने स्थानीय बाजार को प्रभावित नहीं किया है. विशेषज्ञों के अनुसार ब्राजील, अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में एक आक्रामक विक्रेता है. ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, अफ्रीका और ब्राजील सभी कुछ दिनों पहले तक कीमतों के मामले में आरामदायक स्थिति में थे. इन देशों की तुलना में भारतीय कपास की कीमतें अधिक थीं.

फाइबर सिक्‍योरिटी है जरूरी

इंडस्‍ट्री एक्‍सपर्ट्स के अनुसार भारतीय कपड़ा मिलों ने एक सुनियोजित जोखिम उठाया और 11 फीसदी शुल्क के बावजूद आयात किया क्योंकि भारतीय कपास और धागे की कीमतें अपेक्षाकृत ज्‍यादा हैं. भारतीय सरकार और कपड़ा उद्योग को मांग बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए ताकि कपड़ा निर्यात बढ़े. उत्पादकों और प्रोसेसर्स के लिए कपास की कीमतें बराबर बनी रहें. विशेषज्ञों का कहना है कि कपास की उत्पादकता और क्षेत्र को बढ़ाकर मिलों के लिए ‘फाइबर सुरक्षा’ बनाए रखना भी बहुत महत्वपूर्ण है.

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