2047 तक मछली उत्पादन में विश्व गुरु बन सकता है भारत: ICAR का दावा

कुछ साल पहले तक मछली पालन का मतलब केवल कार्प मछलियां ही थीं. लेकिन अब वैज्ञानिकों की मेहनत और शोध से बाजार में 50 से भी ज्यादा मछली प्रजातियों के बीज उपलब्ध हैं. इससे मछली पालकों को अधिक विकल्प और ज्यादा मुनाफे की संभावनाएं मिल रही हैं.

नई दिल्ली | Published: 24 May, 2025 | 11:42 AM

भारत एक ऐसा देश है जहां नदियों, तालाबों और समुद्र की कोई कमी नहीं है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि अगर सही योजना और नीति बनाई जाए तो भारत 2047 तक मछली उत्पादन को 40 मिलियन टन (MT) तक पहुंचा सकता है? ये बात कही है भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के उप महानिदेशक जे.के. जेना ने.

भारत में मछली उत्पादन की रफ्तार

वर्तमान में भारत मछली उत्पादन में हर साल लगभग 9% की दर से वृद्धि कर रहा है, जो कि विश्व औसत 2.5% और चीन के 4% से कहीं ज्यादा है. पिछले 40 वर्षों में भी भारत ने 6% की औसत वृद्धि दर बनाए रखी थी, लेकिन हाल के वर्षों में यह गति और तेज हुई है. यह उछाल निवेश में बढ़ोतरी, वैज्ञानिक प्रगति और सरकार की मददगार नीतियों का नतीजा है.

अब सिर्फ कार्प नहीं, 50 से ज्यादा प्रजातियां

कुछ साल पहले तक मछली पालन का मतलब केवल कार्प मछलियां ही थीं. लेकिन अब वैज्ञानिकों की मेहनत और शोध से बाजार में 50 से भी ज्यादा मछली प्रजातियों के बीज उपलब्ध हैं. इससे मछली पालकों को अधिक विकल्प और ज्यादा मुनाफे की संभावनाएं मिल रही हैं.

समुद्री मछलियों में भी बड़ी संभावना

भारत का समुद्री मछली उत्पादन अभी करीब 4 मिलियन टन है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर नई तकनीकों का सही इस्तेमाल किया जाए और मछलियों की पकड़ के लिए बेहतर समुद्री क्षेत्रों की पहचान की जाए, तो यह आंकड़ा 5.3 मिलियन टन तक पहुंच सकता है.

इसके अलावा, गहरे समुद्र में करीब 2 मिलियन टन मछलियों की क्षमता है, जैसे स्क्विड, जो कम कीमत की होती हैं लेकिन निर्यात के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं. इन्हें पकड़ने के लिए विशेष फैक्ट्री जहाजों की जरूरत होती है, जिन पर मछलियों की प्रोसेसिंग भी हो सके.

टूना मछली और जहाज पर प्रोसेसिंग की जरूरत

भारत में टूना मछली की भी अच्छी गुणवत्ता पाई जाती है, लेकिन जब तक ये मछलियां समुद्र से तट तक पहुंचती हैं, तब तक इनकी गुणवत्ता गिर जाती है. इससे बाजार में दाम कम मिलते हैं. इसका समाधान है, जहाज पर ही प्रोसेसिंग की सुविधा देना, जिससे ताजगी बनी रहे और कीमत अच्छी मिले.

अंडमान में संभावनाएं

जेना ने सुझाव दिया कि भारत को अब गहरे पानी में पिंजरे में मछली पालन (Cage Culture) को बढ़ावा देना चाहिए. खासतौर पर अंडमान सागर के किनारों पर इसकी अपार संभावना है. सरकार इस दिशा में नीति तैयार कर रही है, जिससे मछली पालन एक नए स्तर पर पहुंच सके.

बेहतर नस्लें, बेहतर उत्पादन

अगर वैज्ञानिक तरीके से बेहतर प्रजातियों का चुनाव और प्रजनन किया जाए, तो मछलियों की विकास दर 40-60% तक बढ़ सकती है. पुराने कार्प स्टॉक को हटाकर नई और तेज बढ़ने वाली प्रजातियां लाई जाएं, तो मछली उत्पादन 8 मिलियन टन से बढ़कर 12 मिलियन टन तक आसानी से पहुंच सकता है. और ये लक्ष्य अगले 8-10 वर्षों में हासिल किया जा सकता है.

मछली पालन सिर्फ भोजन नहीं, भविष्य है

मछली पालन अब केवल खाने के लिए मछली पैदा करने तक सीमित नहीं है. यह क्षेत्र आज रोजगार का बड़ा साधन, निर्यात का मजबूत स्तंभ, और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सहारा बन चुका है. सही योजनाएं, शोध और समर्थन के साथ भारत वैश्विक मछली उत्पादक देशों में अग्रणी भूमिका निभा सकता है.