मैदा–सूजी–आटा निर्यात से फिर बढ़ेगी मिलों की रफ्तार, सरकार कर रही है पाबंदी हटाने पर विचार
दुनिया के अलग-अलग देशों में करीब 4 करोड़ से अधिक भारतीय रहते हैं. इन बाजारों में भारतीय ब्रांडों के आटा, मैदा और सूजी की वर्षों से बड़ी मांग रही है. लेकिन निर्यात बंद होने के बाद खाड़ी देशों में स्थानीय मिलों ने भारतीय उत्पादों जैसी मिलावटें तैयार करना शुरू कर दिया.
Export News: भारत में गेहूं और उससे बने उत्पाद जैसे आटा, सूजी और मैदा का निर्यात साल 2022 से बंद है. उस समय दुनिया में खाद्यान्न संकट बढ़ रहा था और देश के भीतर भी गेहूं की कीमतों को नियंत्रित रखना जरूरी हो गया था. लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. देश में गेहूं की उत्पादन क्षमता लगातार बढ़ रही है और सरकारी भंडार भी पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो गए हैं. इसी बदलते माहौल को देखते हुए अब फ्लोर मिलों और खाद्य उद्योग ने सरकार से मांग की है कि गेहूं उत्पादों के निर्यात की अनुमति फिर से शुरू की जाए.
खाद्य मंत्रालय ने इस मांग को आगे बढ़ाते हुए वाणिज्य मंत्रालय को प्रस्ताव भेज दिया है. यह कदम न केवल किसानों और मिलों के लिए राहत भरा हो सकता है बल्कि वैश्विक स्तर पर भारतीय गेहूं उत्पादों की पहचान को भी फिर से मजबूत करने का मौका देगा.
अब क्यों जरूरी है निर्यात खोलना
पिछले दो सालों की तुलना में आज भारतीय कृषि की स्थिति काफी सुदृढ़ दिखाई देती है. देश में गेहूं की पैदावार लगातार रिकॉर्ड बना रही है. 2024–25 में 117.54 मिलियन टन का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ और आने वाले सीजन के लिए इसे और बढ़ाकर 119 मिलियन टन करने का लक्ष्य रखा गया है.
किसानों का रुझान भी गेहूं की बुवाई की ओर साफ दिखाई दे रहा है. नवंबर के शुरुआती दिनों में ही गेहूं का रकबा पिछले साल के मुकाबले दोगुने से ज्यादा हो चुका है. इसका मतलब है कि खेतों में तेजी से बुवाई हो रही है और आने वाले महीनों में उत्पादन और बढ़ेगा.
सरकारी खरीद भी पहले की तुलना में बहुत बेहतर रही है. इस साल सरकार ने 30 मिलियन टन गेहूं खरीदा है, जो पिछले चार वर्षों में सबसे ज्यादा है. ऐसे में यह साफ है कि देश में गेहूं की कोई कमी नहीं है, बल्कि अच्छी खासी उपलब्धता है. यही वजह है कि मिल मालिकों का कहना है अगर किसान इतनी मेहनत कर रहे हैं और देश में भरपूर स्टॉक है, तो बाहर के बाजार में भी भारतीय उत्पादों को अपनी जगह पाने दी जानी चाहिए.
कीमतें स्थिर, बाजार नियंत्रित
खुदरा बाजार में गेहूं और आटा की कीमतें अपेक्षाकृत स्थिर हैं. उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार गेहूं की औसत कीमत 31.7 रुपये प्रति किलो और आटा का भाव 37 रुपये प्रति किलो के आसपास है.दिलचस्प बात यह है कि पिछले तीन साल में ये कीमतें सिर्फ 3–4 पीसदी ही बढ़ी हैं, जबकि इसी दौरान गेहूं के MSP में 22 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है.
यह आंकड़ा बताता है कि बाजार में पर्याप्त आपूर्ति है और कीमतों पर कोई गंभीर दबाव नहीं है. इसलिए सरकार भी मानती है कि नियंत्रित मात्रा में निर्यात खोलने से घरेलू बाजार पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा.
दुनिया भर में भारतीय आटे की मांग
दुनिया के अलग-अलग देशों में करीब 4 करोड़ से अधिक भारतीय रहते हैं. इन बाजारों में भारतीय ब्रांडों के आटा, मैदा और सूजी की वर्षों से बड़ी मांग रही है. लेकिन निर्यात बंद होने के बाद खाड़ी देशों में स्थानीय मिलों ने भारतीय उत्पादों जैसी मिलावटें तैयार करना शुरू कर दिया.
इसके बावजूद वहां की भारतीय समुदाय आज भी असली भारतीय ब्रांड को ही प्राथमिकता देते हैं. उद्योग के जानकार मानते हैं कि अगर इस साल ही निर्यात को सीमित रूप में शुरू किया जाए, तो लगभग 4–5 लाख टन गेहूं उत्पादों का निर्यात दोबारा संभव हो सकता है. यह न सिर्फ भारतीय मिलों के लिए फायदेमंद साबित होगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ‘इंडियन आटा’ की पहचान भी एक बार फिर मजबूत होगी.
क्या चुनौतियां भी हैं?
हालांकि हालात सकारात्मक हैं, लेकिन सरकार पूरी तरह सावधानी के साथ आगे बढ़ना चाहती है. चिंता केवल इतनी है कि कहीं निर्यात खोलने से घरेलू कीमतों में अचानक उछाल न आ जाए. इसीलिए उद्योग ने भी 1 मिलियन टन की सीमा के साथ निर्यात शुरू करने का सुझाव दिया है.
सरकारी विभागों को यह सुनिश्चित करना होगा कि बाजार में आपूर्ति स्थिर रहे, जरूरत पड़ने पर निर्यात पर फिर से रोक लगाई जा सके, कीमतों की निगरानी लगातार जारी रहे, अगर इन पहलुओं पर ध्यान दिया गया, तो निर्यात शुरू करने में कोई बड़ी रुकावट दिखाई नहीं देती.