कृषि वैज्ञानिकों ने शिवराज सिंह चौहान को लिखा पत्र, आने वाले गंभीर खतरे को लेकर किया अगाह

भारतीय वैज्ञानिकों ने सरकार से अपील की है कि वह लीमा में होने वाली ITPGRFA बैठक में भारत के जेनेटिक संसाधनों पर अपने अधिकार की रक्षा करे. उनका कहना है कि प्रस्तावित बदलाव अन्यायपूर्ण हैं और जैव विविधता व किसानों के अधिकारों को कमजोर कर सकते हैं. भारत को वैश्विक मंच पर नेतृत्व दिखाना चाहिए.

Kisan India
नोएडा | Updated On: 11 Nov, 2025 | 11:45 AM

Agriculture News: देश के कृषि वैज्ञानिकों के एक समूह ने सरकार से अपील की है कि वह लीमा (पेरू) में होने वाली अंतरराष्ट्रीय बैठक में भारत के जेनेटिक संसाधनों (Genetic Resources) पर अपने सार्वभौमिक अधिकार की रक्षा के लिए मजबूत कदम उठाए. यह मुद्दा 24 से 29 नवंबर तक होने वाली इंटरनेशनल ट्रीटी ऑन प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज फॉर फूड एंड एग्रीकल्चर (ITPGRFA) की 11वीं बैठक में चर्चा के लिए तय किया गया है. वैज्ञानिकों ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर कहा कि संधि में किए जा रहे बदलाव ‘अन्यायपूर्ण’ हैं और यह भारत के जेनेटिक संसाधनों पर उसके अधिकारों के लिए गंभीर खतरा बन सकते हैं. उन्होंने चेतावनी दी कि इस प्रस्ताव से भारत के राष्ट्रीय बीज संग्रह का बड़ा हिस्सा वैश्विक स्तर पर खुल जाएगा, जबकि उचित और अनिवार्य मुआवजे की व्यवस्था का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है.

वैज्ञानिकों ने कहा कि भारत के किसान सदियों से इन बीजों और फसलों की विविधता के संरक्षक रहे हैं और ऐसे प्रस्ताव उनकी भूमिका को भी कमजोर करेंगे. उन्होंने चिंता जताई कि अगर बिना सीमाओं के इन संसाधनों तक पहुंच दी गई, तो यह भारत जैसे देशों के संप्रभु अधिकारों और जैव विविधता कानून (Biodiversity Act) को कमजोर कर सकता है. इंडियन वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि भारत की विशाल जेनेटिक विविधता, जो देश की भविष्य की खाद्य सुरक्षा की नींव है, को बिना उचित मुआवजे के नहीं दिया जाना चाहिए.

अनिवार्य सब्सक्रिप्शन प्रणाली लागू की जाए

द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रोफेसर दिनेश अब्रोल (इंस्टिट्यूट फॉर स्टडीज इन इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट) ने कहा कि भारत जैसे जैव विविधता वाले देशों से करीब 70 लाख जेनेटिक सैंपल पहले ही अंतरराष्ट्रीय प्रणाली के तहत साझा किए जा चुके हैं, जिनसे वैश्विक बीज और बायोटेक उद्योगों को अरबों डॉलर का लाभ हुआ है. वैज्ञानिकों ने कहा कि मौजूदा स्वैच्छिक लाभ-साझेदारी प्रणाली पूरी तरह विफल रही है, जिससे मूल देशों को बहुत कम आर्थिक लाभ मिला. सरथ बाबू बालिजेपल्ली, अध्यक्ष, प्लांट प्रोटेक्शन एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने कहा कि यह सिस्टम सिर्फ दिखावा है. अमीर कंपनियां हमारे किसानों की जेनेटिक मेहनत से मुनाफा कमा रही हैं, लेकिन बदले में कुछ नहीं दे रहीं. उन्होंने सुझाव दिया कि अब एक अनिवार्य सब्सक्रिप्शन प्रणाली लागू की जाए, जो इन संसाधनों का उपयोग करने वाली कंपनियों के व्यापारिक मुनाफे से सीधे जुड़ी हो.

वैश्विक मंच पर नेतृत्व दिखाना चाहिए

वैज्ञानिकों की टीम में शामिल सुमन सहाई, सोमा मारला और बी. सरथ बाबू  ने कृषि मंत्री को एक संयुक्त पत्र लिखा. उन्होंने कहा कि अब सिर्फ बातें करने का समय नहीं है. भारत को आगे बढ़कर विकासशील देशों के हितों की रक्षा करनी चाहिए और वैश्विक मंच पर नेतृत्व दिखाना चाहिए.

 

 

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Published: 11 Nov, 2025 | 11:43 AM

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