चीनी किशमिश की एंट्री से महाराष्ट्र में दाम धड़ाम, किसान-व्यापारियों ने की तुरंत कार्रवाई की मांग

मामला सिर्फ कीमतों तक सीमित नहीं है. व्यापारियों और किसान संगठनों ने आयातित किशमिश की गुणवत्ता पर भी गंभीर सवाल उठाए हैं. उनका दावा है कि चीनी किशमिश घरेलू मानकों पर खरी नहीं उतरती और लंबे समय तक भंडारण व खपत के लिहाज से यह उपभोक्ताओं के लिए नुकसानदायक हो सकती है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 30 Dec, 2025 | 07:58 AM
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Raisin Imports: महाराष्ट्र में अंगूर और किशमिश की खेती से जुड़े हजारों किसानों के लिए यह मौसम राहत के बजाय चिंता लेकर आया है. जिस समय किसान और व्यापारी बेहतर दामों की उम्मीद कर रहे थे, उसी दौरान बाजार में आई सस्ती आयातित किशमिश ने पूरी तस्वीर बदल दी. बीते एक हफ्ते में किशमिश के थोक दामों में करीब 40 रुपये प्रति किलो की अचानक गिरावट दर्ज की गई है, जिससे किसानों की मेहनत पर पानी फिरता नजर आ रहा है.

आयात की टाइमिंग ने बढ़ाई मुश्किल

बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, महाराष्ट्र के अंगूर उत्पादक संगठनों का कहना है कि यह गिरावट अचानक नहीं आई, बल्कि इसके पीछे विदेशी किशमिश का बाजार में प्रवेश बड़ी वजह है. महाराष्ट्र ग्रेप ग्रोअर्स एसोसिएशन के अनुसार चीन में किशमिश का सीजन पिछले महीने शुरू हुआ था. इसके बाद वहां की किशमिश पहले दुबई भेजी गई और फिर अफगानिस्तान के रास्ते भारत में दाखिल हुई. किसानों का आरोप है कि कुछ व्यापारी इसे अफगानी किशमिश बताकर भारतीय बाजार में बेच रहे हैं, जिससे घरेलू उत्पाद को नुकसान हो रहा है.

सांगली के किसानों पर सीधा असर

सांगली जिला महाराष्ट्र का प्रमुख अंगूर और किशमिश उत्पादन केंद्र माना जाता है. यहां के किसानों का कहना है कि आयात की टाइमिंग सबसे ज्यादा नुकसानदायक साबित हुई है. इस समय जिले के कोल्ड स्टोरेज में पिछले सीजन की करीब 20 हजार टन किशमिश अभी भी जमा है. चालू सीजन में उत्पादन अपेक्षाकृत कम रहा था, ऐसे में पुराने स्टॉक को अच्छे दाम मिलने की पूरी उम्मीद थी. लेकिन बाजार में अचानक आई आयातित किशमिश ने इस उम्मीद को झटका दे दिया.

कीमतों में तेज गिरावट से मचा हड़कंप

व्यापारियों के मुताबिक पिछले हफ्ते सांगली मंडी में करीब 5 टन विदेशी किशमिश के पहुंचते ही बाजार में हलचल मच गई. जो दाम पहले 250 रुपये से 410 रुपये प्रति किलो के बीच बने हुए थे, वे तेजी से नीचे आने लगे. किसानों का कहना है कि इतनी कम मात्रा में आयात के बावजूद दामों में आई बड़ी गिरावट से साफ है कि बाजार भावनाओं पर इसका गहरा असर पड़ा है.

सरकारी हस्तक्षेप की मांग तेज

इस पूरे मामले को लेकर रेजिन मर्चेंट्स एसोसिएशन सांगली ने सरकार से तुरंत हस्तक्षेप की मांग की है. एसोसिएशन के सचिव राजेंद्र माली का आरोप है कि कुछ आयातक अफगानिस्तान से आने वाली उपज के लिए मिलने वाली आयात कर छूट का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं. इससे न सिर्फ सरकारी राजस्व को नुकसान हो रहा है, बल्कि देशी किसानों की कमर भी टूट रही है.

गुणवत्ता को लेकर भी सवाल

मामला सिर्फ कीमतों तक सीमित नहीं है. व्यापारियों और किसान संगठनों ने आयातित किशमिश की गुणवत्ता पर भी गंभीर सवाल उठाए हैं. उनका दावा है कि चीनी किशमिश घरेलू मानकों पर खरी नहीं उतरती और लंबे समय तक भंडारण व खपत के लिहाज से यह उपभोक्ताओं के लिए नुकसानदायक हो सकती है. इसी कारण उन्होंने सख्त गुणवत्ता जांच और कड़ी कार्रवाई की मांग की है.

घरेलू उद्योग को बचाने की लड़ाई

किसानों का कहना है कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो महाराष्ट्र का किशमिश उद्योग गहरे संकट में फंस सकता है. अंगूर की खेती पहले ही मौसम, लागत और मजदूरी की चुनौतियों से जूझ रही है. ऐसे में सस्ती आयातित किशमिश से मुकाबला करना छोटे किसानों के लिए आसान नहीं है. वे चाहते हैं कि सरकार आयात की सख्त निगरानी करे, गलत रास्तों से आने वाले माल पर रोक लगाए और घरेलू किसानों व उपभोक्ताओं दोनों के हितों की रक्षा करे.

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