भारत सरकार ने हाल ही में एक बड़ा फैसला लिया है, अब सरकारी गोदामों में भरे गेहूं और चावल को आम बाजार में बेचा जाएगा. लेकिन इस बार एक नया ट्विस्ट है. पिछले साल की तुलना में इन अनाजों की कीमतें बढ़ा दी गई हैं. यानी अब खुले बाजार में मिलने वाला सरकारी गेहूं और चावल थोड़े महंगे दाम पर मिलेगा. सवाल उठता है कि जब सरकार के पास रिकॉर्ड मात्रा में अनाज मौजूद है और अच्छी फसल भी हुई है, तो दाम क्यों बढ़ाए गए?
क्यों जरूरी था ये फैसला?
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, भारत में गेहूं और चावल जैसे अनाज की भारी पैदावार हुई है. खासकर 2024-25 में गेहूं का उत्पादन 117 मिलियन टन तक पहुंच गया, जो अब तक का रिकॉर्ड है. इसी तरह, चावल और अन्य मोटे अनाजों की भी अच्छी खरीद हुई है. सरकारी एजेंसी FCI (भारतीय खाद्य निगम) के गोदाम अनाज से भरे हुए हैं. 1 जून 2025 तक FCI के पास 37.9 मिलियन टन चावल और 36.9 मिलियन टन गेहूं था. इसके अलावा 32.2 मिलियन टन धान (अधपका चावल) भी स्टॉक में है. अब चूंकि स्टॉक भरपूर है, और मॉनसून भी अच्छा है, सरकार ने तय किया है कि कुछ अनाज खुले बाजार में बेचा जाए ताकि कीमतों पर नियंत्रण बना रहे और बाजार में संतुलन भी बना रहे.
खुले बाजार में कैसे बिकता है अनाज?
सरकार “ओपन मार्केट सेल स्कीम-डोमेस्टिक (OMSS-D)” नाम की योजना के तहत अनाज ई-नीलामी के जरिए निजी व्यापारियों और संस्थानों को बेचती है. इस योजना का मकसद है कि अगर कहीं मांग बढ़ जाए और कीमतें ऊपर जाएं, तो सरकार अपने गोदाम से अनाज बेचकर बाजार में संतुलन बना सके.
इस बार क्यों बढ़ी कीमत?
सरकार ने गेहूं का रिजर्व प्राइस (न्यूनतम बिक्री मूल्य) इस साल 2,550 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है, जो पिछले साल के 2,300 रुपये से 10.86 फीसदी ज्यादा है. यह कीमत निजी व्यापारियों, भारत ब्रांडेड स्टोरों और कम्युनिटी किचनों के लिए लागू होगी.
चावल की कीमतों में भी लगभग 3.2 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है. उदाहरण के लिए, टूटा चावल (25 फीसदी टूटे हुए दानों वाला) नवंबर से 2,890 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिकेगा, जो अभी 2,800 रुपये है. कुछ किस्मों के लिए यह 3,090 रुपये प्रति क्विंटल तक जा सकता है.
सरकार का तर्क क्या है?
सरकार कहती है कि चावल की कीमत में बढ़ोतरी, धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में की गई बढ़ोतरी के अनुसार है. यानी जब किसानों से धान ज्यादा कीमत पर खरीदा गया है, तो उसे प्रोसेस करके जो चावल बनता है, उसकी बिक्री कीमत भी थोड़ी बढ़नी लाजमी है.
गेहूं की बात करें तो MSP में सिर्फ 6.59 फीसदी बढ़ोतरी हुई है, लेकिन रिजर्व प्राइस में लगभग 11 फीसदी की. इसका कारण यह बताया गया है कि सरकारी भंडारण लागत और अन्य खर्चों को देखते हुए कीमतें थोड़ी और बढ़ाई गई हैं.
मोटे अनाजों की भी बढ़ी कीमत
बाजरा: 2,775 रुपये प्रति क्विंटल
रागी: 4,886 रुपये प्रति क्विंटल
ज्वार: 3,749 रुपये प्रति क्विंटल
मक्का: 2,400 रुपये प्रति क्विंटल
इन अनाजों की भी अच्छी पैदावार और मांग को देखते हुए सरकार ने इन्हें भी खुले बाजार में बेचने का फैसला किया है.
क्या होगा इसका असर?
बाजार में स्थिरता: जब सरकार अनाज बेचती है, तो इससे सप्लाई बढ़ती है और अनाज की खुदरा कीमतें काबू में रहती हैं.
महंगाई पर लगाम: खाद्यान्न महंगा न हो, इसके लिए यह एक एहतियाती कदम है.
कृषि बाजारों को राहत: निजी व्यापारियों को सीधा सरकारी स्रोत से अनाज मिलने से मंडियों पर दबाव घटेगा.
सरकार को लाभ: स्टॉक घटेगा, और सरकारी गोदामों में जगह बनेगी.
आगे की स्थिति कैसी रहेगी?
अगर मानसून अच्छा बना रहा और खरीफ फसलों की बुआई तेज रही, तो सरकार आगे और अनाज बाजार में उतार सकती है. साथ ही, खाद्य महंगाई को कंट्रोल में रखने के लिए ये नीति और मजबूत हो सकती है.