कम जगह में मछली पालन, बायो फ्लॉक तकनीक से कमाई होगी दोगुनी से भी ज्यादा

बायो फ्लॉक तकनीक से किसान कम जगह और कम लागत में मछली पालन कर सकते हैं. यह तकनीक पानी की बचत करती है, फीड खर्च घटाती है और साल में दो बार मछली उत्पादन संभव बनाती है.

Kisan India
नोएडा | Published: 14 Aug, 2025 | 04:20 PM

खेती-किसानी के साथ-साथ अब मछली पालन भी किसानों के लिए एक बड़े आमदनी का जरिया बनता जा रहा है. भारत आज विश्व में मछली उत्पादन के मामले में तीसरे स्थान पर है. इसका एक बड़ा कारण है- किसानों द्वारा मत्स्य पालन को अपनाना और इससे अच्छा लाभ कमाना. उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में भी मछली पालन तेजी से लोकप्रिय हो रहा है. लेकिन अब एक नई तकनीक बायो फ्लॉक से मत्स्य पालन को और आसान, सस्ता और ज्यादा मुनाफे वाला बनाया जा सकता है. यह तकनीक खासतौर पर उन किसानों के लिए वरदान है जिनके पास कम जगह और सीमित संसाधन हैं.

क्या है बायो फ्लॉक तकनीक?

बायो फ्लॉक एक आधुनिक और पर्यावरण के अनुकूल मछली पालन की तकनीक है, जिसमें पारंपरिक तालाबों या बड़ी जमीन की आवश्यकता नहीं होती. इस प्रणाली में मछलियों के अपशिष्ट को सूक्ष्म जीवों की मदद से प्रोटीन में बदला जाता है, जिसे मछलियां फिर से खा सकती हैं. यानी एक बार डाला गया भोजन दोबारा मछलियों के काम आता है. इससे न केवल फीड की लागत घटती है, बल्कि पानी की गुणवत्ता भी बनी रहती है. यह तकनीक खासकर शहरी क्षेत्रों, छोटे किसानों और सीमित जगह में मछली पालन करने वालों के लिए बेहद कारगर है.

बायो फ्लॉक यूनिट कैसे तैयार करें?

बायो फ्लॉक यूनिट बनाने के लिए किसी बड़े तालाब की जरूरत नहीं होती. इसे छोटे टैंक या कंटेनर में भी बनाया जा सकता है. इस टैंक को लोहे की चादर या मजबूत प्लास्टिक की शीट से बनाया जाता है और ऊपर से सुरक्षा के लिए जाली लगा दी जाती है. टैंक के अंदर ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए एयरेशन सिस्टम लगाया जाता है ताकि पानी में ऑक्सीजन की कमी न हो. एक सामान्य बायो फ्लॉक टैंक (लगभग दो घन मीटर) को बनाने में करीब 10,000 रुपये का खर्च आता है. खास बात ये है कि एक बार बनाए गए टैंक का उपयोग 8 से 10 साल तक किया जा सकता है, जिससे बार-बार लागत नहीं लगती.

कम समय में ज्यादा उत्पादन

बायो फ्लॉक तकनीक की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें मछलियां बहुत तेजी से बढ़ती हैं. टैंक में मछलियों को डालने के 5-6 महीने बाद ही वे बिक्री के लिए तैयार हो जाती हैं. इस तरह एक साल में दो बार मछलियों का उत्पादन संभव है. परंपरागत तरीकों में जहां उत्पादन में एक साल से ज्यादा लग जाता है, वहीं बायो फ्लॉक से यह काम आधे समय में हो जाता है. इस तकनीक से सामान्य से कहीं अधिक मात्रा में मछलियां तैयार होती हैं, जिससे किसानों को आमदनी भी ज्यादा होती है.

बायो फ्लॉक तकनीक के फायदे

इस तकनीक से मछली पालन करने के कई लाभ हैं-

  • कम जगह में उत्पादन- छोटे से टैंक में भी मछलियों का पालन संभव है.
  • कम पानी की जरूरत- बार-बार पानी बदलने की आवश्यकता नहीं होती.
  • फीड लागत में कमी- सूक्ष्म जीवों द्वारा उत्पादित प्रोटीन मछलियों के भोजन के रूप में काम आता है.
  • जल संरक्षण- यह प्रणाली पानी की बर्बादी नहीं होने देती.
  • तेजी से वृद्धि- मछलियों को पर्याप्त पोषण मिलता है जिससे उनका विकास तेजी से होता है.
  • इस वजह से छोटे और मध्यम स्तर के किसान भी इसे अपनाकर अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं.

भविष्य के लिए लाभदायक विकल्प

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, रायबरेली सहित कई अन्य जिलों में बायो फ्लॉक तकनीक अपनाने वाले किसानों की संख्या लगातार बढ़ रही है. यह तकनीक कम लागत, कम जगह और कम समय में ज्यादा उत्पादन देने की वजह से आने वाले समय में मत्स्य पालन क्षेत्र में बड़ा बदलाव ला सकती है. यह तकनीक पर्यावरण की सुरक्षा में भी योगदान देती है, क्योंकि इसमें अपशिष्ट का दोबारा उपयोग होता है और जल स्रोतों पर दबाव नहीं पड़ता.

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Published: 14 Aug, 2025 | 04:20 PM

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