जम्मू–कश्मीर बाढ़ पीड़ितों को मनरेगा में मिलेगा 150 दिन काम, लेकिन दो बड़ी चुनौतियां बरकरार
मनरेगा के विस्तार के बीच चुनौतियां भी कम नहीं हैं. कश्मीर में सर्दी तेजी से बढ़ चुकी है. कई इलाकों में तापमान शून्य से नीचे जा चुका है, जहां मिट्टी का कोई काम संभव ही नहीं. ऐसे में कई परियोजनाएं मार्च से पहले शुरू नहीं हो पाएंगी.
Floods Relief: सितंबर में आई भीषण बारिश और विनाशकारी बाढ़ ने जम्मू–कश्मीर के ग्रामीण इलाकों की जिंदगी को पूरी तरह बदलकर रख दिया. खेतों में खड़ी फसलें जहां एक रात में नष्ट हो गईं, वहीं कई परिवारों की महीनों की मेहनत पानी में बह गई. ऐसे कठिन समय में केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा के काम के दिनों में 50 दिन की बढ़ोतरी का फैसला बाढ़ से प्रभावित लोगों के लिए एक बड़ी राहत की तरह आया है. यह कदम न केवल आर्थिक सहारा देगा, बल्कि आने वाली सर्दियों में इन परिवारों को जिंदा रहने की शक्ति भी देगा.
फसलों के साथ टूट गया किसानों का सहारा
बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, लगातार कई दिनों तक हुई मूसलाधार बारिश ने कश्मीर घाटी और जम्मू डिवीजन दोनों में भारी तबाही मचाई. खेतों में धान, मक्का और सब्जियों की तैयार फसलें गाद की मोटी परतों के नीचे दब गईं. कई जगह सिंचाई नहरें टूट गईं, मिट्टी बह गई और खेत लंबे समय तक पानी में डूबे रहे.
दक्षिण कश्मीर के काकापोरा क्षेत्र के छोटे किसान अली मोहम्मद बताते हैं कि उनकी धान की फसल लगभग तैयार थी, लेकिन अचानक बाढ़ ने सब कुछ खत्म कर दिया. वे भावुक होकर कहते हैं, “इस साल हमारे हाथ कुछ भी नहीं आया. घर चलाना तक मुश्किल हो गया है.”
सरकारी रिपोर्ट बताती है कि कुल मिलाकर 75,997 हेक्टेयर कृषि भूमि को भारी नुकसान पहुंचा. जम्मू डिवीजन में सबसे बड़ा असर दर्ज किया गया, जहां लगभग 70 हजार हेक्टेयर जमीन प्रभावित हुई. कुल नुकसान का अनुमान 209 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था बुरी तरह हिल गई है.
मनरेगा की अतिरिक्त मजदूरी बना सहारा
किसानों और दिहाड़ी मजदूरों के लिए इस समय सबसे बड़ी चुनौती है कमाई का अभाव. ऐसे में मनरेगा के तहत 50 दिन अतिरिक्त काम मिलने की घोषणा ने कई परिवारों में उम्मीद की नई किरण जगा दी है.
अब पात्र परिवार वित्तीय वर्ष 2026 में 100 की बजाय 150 दिन रोजगार प्राप्त कर सकेंगे. जम्मू–कश्मीर में औसत मजदूरी लगभग 257 रुपये प्रतिदिन है, ऐसे में अतिरिक्त 50 दिनों से परिवारों को करीब 12,855 रुपये की मदद मिलेगी.
हालांकि यह राशि बाढ़ के पूरे नुकसान की भरपाई नहीं कर सकती, लेकिन कई ग्रामीणों के लिए यह कठिन सर्दियों में जीवन का आधार बनने जा रही है. अली मोहम्मद कहते हैं, “कम से कम अब घर में राशन और बच्चों की जरूरतें पूरी हो सकेंगी.”
सबसे बड़ी मुश्किल
मनरेगा के विस्तार के बीच चुनौतियां भी कम नहीं हैं. कश्मीर में सर्दी तेजी से बढ़ चुकी है. कई इलाकों में तापमान शून्य से नीचे जा चुका है, जहां मिट्टी का कोई काम संभव ही नहीं. ऐसे में कई परियोजनाएं मार्च से पहले शुरू नहीं हो पाएंगी.
अनंतनाग के मजदूर मोहम्मद रमजान कहते हैं, “काम की जरूरत अभी है, लेकिन ठंड की वजह से कई काम रुके हुए हैं. अगर भुगतान भी देर से हुआ तो हम कैसे चलेंगे?”
भुगतान में देरी लंबे समय से मनरेगा की सबसे बड़ी समस्या रही है. कई बार मजदूरों को हफ्तों या महीनों तक पैसा नहीं मिलता. इसी कारण लोग उम्मीद तो लगाए बैठे हैं, लेकिन सर्द मौसम और काम की सीमित उपलब्धता उन्हें चिंतित भी कर रही है.
आने वाले दिनों से जुड़ी उम्मीदें
सरकार का प्रयास है कि अधिक से अधिक ग्रामीण परिवारों तक यह राहत जल्दी पहुंच सके. जिन इलाकों में काम संभव है, वहां नहरों से गाद निकालने, टूटे तटबंधों को ठीक करने, सड़कें साफ करने जैसे कार्य तेजी से शुरू किए जा रहे हैं.
कई ग्रामीणों का कहना है कि यदि समय पर भुगतान और जरूरत के अनुसार काम की उपलब्धता हो गई, तो वे इस कठिन दौर से उबर सकते हैं. जम्मू के आरएस पुरा के किसान राकेश कुमार कहते हैं, “हमें बस इतना चाहिए कि काम समय पर मिले और मजदूरी भी. बाकी मेहनत हम कर लेंगे.”