पंजाब में 93 फीसदी कपास मिलों पर लगे ताले, उद्योग बंद होने की कगार पर- जानिए वजह
गुलाबी सुंडी जैसे कीटों का प्रकोप, सिंचाई की कमी और बार-बार मौसम का धोखा, इन सभी कारणों ने किसानों को कपास की खेती से दूर कर दिया है. जिन जिलों में यह पारंपरिक फसल कभी किसानों की पहली पसंद हुआ करती थी, आज वहां धान जैसे विकल्प उनकी मजबूरी बन गए हैं.
कभी पंजाब की आर्थिक रीढ़ मानी जाने वाली कपास उद्योग आज मुश्किल दौर से गुजर रही है. खेती घटने के साथ-साथ फैक्ट्रियों में कच्चे माल की भारी कमी हो गई है, जिससे जिंनिंग मिलों के सामने बंद होने की नौबत आ गई है. जहां कभी कपास की चहल-पहल पूरे मालवा क्षेत्र में देखने को मिलती थी, वहीं आज मिलें खाली पड़ी हैं.
सिर्फ कपास नहीं, उद्योग की पहचान भी खो रही है पंजाब
हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर के अनुसार, गुलाबी सुंडी जैसे कीटों का प्रकोप, सिंचाई की कमी और बार-बार मौसम का धोखा, इन सभी कारणों ने किसानों को कपास की खेती से दूर कर दिया है. जिन जिलों में यह पारंपरिक फसल कभी किसानों की पहली पसंद हुआ करती थी, आज वहां धान जैसे विकल्प उनकी मजबूरी बन गए हैं. जब खेतों में कपास ही नहीं है, तो जिंनिंग मिलों का चलना कैसे संभव है?
93 फीसदी जिंनिंग मिलें हुईं बंद
लगभग 16 साल पहले पंजाब में 422 जिंनिंग फैक्ट्रियां चलती थीं. आज इनमें से केवल 32 फैक्ट्रियां ही किसी तरह काम कर रही हैं. मालिकों का कहना है कि उनकी मशीनें 25 फीसदी क्षमता से भी कम पर चल रही हैं, जिससे लगातार आर्थिक नुकसान हो रहा है.
कई अनुभवी उद्यमी तो दशकों पुराना व्यवसाय छोड़ने पर मजबूर हो गए हैं. कुछ का कहना है कि अगला सीजन उनके लिए आखिरी साबित हो सकता है.
कपास घटने से बढ़ा संकट
उद्योग जगत का कहना है कि उन्हें अब तक वह समर्थन नहीं मिला, जिसकी जरूरत थी. किसानों को मुआवजा तो मिलता है पर मिल मालिकों की हालत और संकट को नजरअंदाज कर दिया जाता है.
ऊपर से बड़ी कंपनियों की आधुनिक स्पिनिंग मिलों ने प्रतिस्पर्धा और बढ़ा दी है, जहां बीज से लेकर धागा बनाने तक की प्रक्रिया एक ही जगह पूरी हो जाती है. कच्चे माल की कमी के चलते छोटे जिंनर्स इस दौड़ में पीछे छूटते जा रहे हैं.
गुलाबी सुंडी ने की खेती को बर्बाद
- 2021 से लगातार कीटों के हमले, असमय बारिश और सिंचाई की समस्याओं ने खेती को गहरी चोट पहुंचाई है.
- 2024 में कपास की खेती का रकबा 96 हजार हेक्टेयर तक सिमट गया था, जो अब तक का सबसे कम आंकड़ा है.
- हालांकि इस साल इसमें कुछ बढ़ोतरी हुई है, लेकिन 20 हजार हेक्टेयर फसल फिर से बारिश ने खराब कर दी.
- मालवा क्षेत्र के किसान कपास की जगह कम मेहनत वाली फसलों की ओर मुड़ते जा रहे हैं, जिससे स्थिति और गंभीर होती जा रही है.
क्या बच पाएगी पंजाब की यह परंपरा?
कपास सिर्फ फसल नहीं, पंजाब की पहचान है. इसकी वजह से कई फैक्ट्रियां, मजदूर और सहायक उद्योग जीवित रहते थे. फैक्ट्रियों में बनने वाला कपास का तेल, पशुओं का दाना और धागा, सभी क्षेत्रों पर असर पड़ रहा है.
उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि नई तकनीक वाले बीटी बीज लाने होंगे, किसानों को कपास की ओर लौटाने के उपाय करने होंगे, छोटी मिलों के लिए विशेष आर्थिक सहायता की जरूरत है.
पंजाब की कपास उद्योग एक ऐसे मोड़ पर है जहां तत्काल कदम न उठाए गए तो यह परंपरा हमेशा के लिए इतिहास बन सकती है. यह सिर्फ मिलों का संकट नहीं है, यह रोजगार, किसान और प्रदेश की अर्थव्यवस्था के लिए भी बड़ी चुनौती है.