किसान अपनी फसलों की देखभाल बहुत ही सावधानी से करते हैं, ताकि उन्हें अच्छा उत्पादन मिलें और आमदनी भी अच्छी हो. लेकिन कई बार कीट, रोग या बेमौसम बारिश या किसी प्राकृतिक आपदा के कारण किसानों की फसल बर्बाद हो जाती है और उन्हें किसी भी तरह का फायदा नहीं मिलता. इन फसलों के बर्बाद होने से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. ऐसे में किसानों के सामने जीविका चलाने का भी संकट पैदा हो जाता है. लेकिन एक तरीका है जिससे किसान खराब फसलों से भी फायदा ले सकते हैं. इस प्रक्रिया का नाम है एनारोबिक डाइजेशन, इसकी मदद से किसान खराब फसल को बायो गैस और जैविक खाद में बदल सकते हैं.
क्या है एनारोबिक डाइजेशन
एनारोबिक डाइजेशन एक जैविक प्रक्रिया है जिसकी मदद से खराब फसलों को बायो गैस और जैविक खाद में बदला जाता है. इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन की कमी में सूक्ष्मजीव गोबर, फसलों के अवशेष, बचे हुए खाने आदि को छोटे टुकड़ों में तोड़ते हैं. इन सब पदार्थों को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ने की प्रक्रिया के दौरान इनसे बायो गैस और जैविक खाद बनती है. इससे किसानों को फायदा होता है. पहला उनकी खराब फसल इस्तेमाल में आ जाती है. दूसरा उन्हें फसलों के लिए जैविक खाद भी मिल जाती है.
कैसे काम करती है ये प्रक्रिया
एनारोबिक डाइजेशन प्रक्रिया 4 चरणों में काम करती हां. पहला चरण है हाइड्रोलिसिस (Hydrolysis), जिसमें जैविक पदार्थों में मौजूद बड़े कण छोटे कणों में टूटते हैं. इसके बाद आता है दूसरा चरण जिसे एसिडोजेनिसिस (Acidogenesis)कहते हैं, इसमें छोटे कण एसिड्स में बदलते हैं. तीसरा चरण है एसिटोजेनेनेसिस (Acetogenesis), इस चरण में एसिड्स एसिटिक एसिड में तब्दील होते हैं. अंत में आता है मीथेनोजेनिसिस (Methanogenesis) इस चरण में एसिटिक एसिड मीथेन गैस में बदल जाती है.
बायो गैस और जैविक खाद का निर्माण
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार एनारोबिक डाइजेशन प्रक्रिया से फसलों के अवशेषों या खराब फसलों को बायो गैस या जैविक खाद में बदला जा सकता है. इस प्रक्रिया की मदद से बायोगैस जिसमें 50 से 70 फीसदी मेथेन और कॉर्बनडाइऑक्साइड होती है , जो कि खाना बनाने और ईंधन के तौर पर भी इस्तेमाल की जा सकती है. इसके अलावा इस पूरी प्रक्रिया से एक तरल पदार्थ का भी निर्माण होता है जिसे डाइजेस्टेट कहते हैं . यह एक ठोस तरल मिश्रम है जिसका इस्तेमाल उर्वरक. कंपोस्ट या पशुओं के बिस्तर के रूप में किया जा सकता है.