गुड़हल की ग्रोथ रोकते हैं ये खतरनाक कीट, बचाव के लिए किसान अपनाएं ये तरीके

जैसिड को हरा तेला या लीफ हॉपर भी कहते हैं. ये एक ऐसा कीट है जो पत्तियों का रस चूसकर पौधों को नुकसान पहुंचाता है. देखने में यह कीट हरे या पीले रंग का होता है, इसके आक्रमण से पत्तियों के निचले हिस्से में पीलापन आने लगता है और पत्तियां मुड़कर, सूखकर गिर जाती हैं.

नोएडा | Published: 17 Jun, 2025 | 06:43 PM

गुड़हल एक ऐसा फूल है जो सजावट के साथ-साथ , पूजा-पाठ, दवाओं और कॉस्मेटिक बनाने में इस्तेमाल किया जाता है. इसकी खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा होता है. लेकिन कई बार सही जानकारी न होने के कारण या किसानों की लापरवाहरी के कारण इसकी फसलों में खतरनाक कीट लग जाते हैं. जो फसल को तो नुकसान पहुंचाते ही हैं , साथ ही किसानों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ता है. खबर में आगे ऐसे ही कुछ खतरनाक कीटों के बारे में बात करेंगे और जानेंगे कि कैसे फसलों को उनसे बचाया जा सकता है.

गुड़हल में लगने वाले खतरनाक कीट

जैसिड (Jassids)

जैसिड को हरा तेला या लीफ हॉपर भी कहते हैं. ये एक ऐसा कीट है जो पत्तियों का रस चूसकर पौधों को नुकसान पहुंचाता है. देखने में यह कीट हरे या पीले रंग का होता है, इसके आक्रमण से पत्तियों के निचले हिस्से में पीलापन आने लगता है और पत्तियां मुड़कर, सूखकर गिर जाती हैं. इस कीट से गुड़हल की फसल को बचाने के लिए खेत में खरपतवारों को कंट्रोल करना बेहद जरूरी है. इसके अलावा डाइमेथोएट 30% EC कीटनाशक का 1.2 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करें. कीटनाशकों का छिड़काव करते समय इस बात का खास खयाल रखना चाहिए कि हमेशा मास्क लगाकर और जरूरी निर्देशों का पालन कर ही छिड़काव करें.

शूट बोरर (Stem Borer)

ये एक ऐसा कीट है जो पौधों के तनों में सुरंग बनाकर पौधे को अंदरूनी हिस्से को खाते हैं. इसके कारण पौधों की ग्रोथ रुक जाती है और पैदावार में भी कमी देखने को मिलती है. शूट बोरर से गुड़हल की फसल को बचाने के लिए इसकी फसल पर क्लोरोपाइरोफोस, मोनोक्रोटोफ्स या कॉर्बोफुरान जैसे कीटनाशकों का छिड़काव करें.

लीफ रोलर (Leaf Roller)

लीफ रोलर एक ऐसा कीट है जो कि पत्तियों तो सिल्क के धागे से लपेटता है और अंदर से पत्तियों को खाता है. जिसके कारण पत्तियां मुड़ जाती हैं और सूखने लगती हैं. इस कीट से गुड़हल की फसल को बचान के लिए कीटनाशकों का छिड़काव करें. इसके साथ ही पौधों से प्रभावित हिस्सों को हटाकर अलग कर दें. किसानों को यह भी सलाह दी जाती है कि फसल की नियमित रूप से निगरानी करें और समय रहते ही लक्षणों की पहचान करें.