Blue Ravi Buffalo: दूध का खजाना है भैंस की देसी नस्ल पंच कल्याणी, खूब फैट होने से महंगा बिकता है दूध
नीली रावी भैंस, जिसे "पंच कल्याणी" कहा जाता है, पंजाब की देसी नस्ल है जो उच्च दूध उत्पादन, सफेद धब्बों और 6.8 फीसदी फैट युक्त दूध के लिए जानी जाती है. यह किसानों की आय बढ़ाने में सहायक है.
कभी आपने ऐसी भैंस के बारे में सुना है जो एक ब्यांत में करीब 1900 लीटर से ज्यादा दूध दे? वो भी देसी नस्ल– जी हां, हम बात कर रहे हैं नीली रावी भैंस की, जिसे लोग प्यार से पंच कल्याणी भी कहते हैं. पंजाब की मिट्टी से निकली ये खास नस्ल अब देशभर में अपनी पहचान बना रही है–सिर्फ दूध के लिए नहीं, बल्कि अपनी सुंदरता और शुद्ध नस्ल की वजह से भी. इसके माथे, थूथन, पैरों और पूंछ पर बने सफेद धब्बे इसे और भी खास बनाते हैं.
आज जब विदेशी नस्लों के पीछे भागने का चलन बढ़ रहा है, ऐसे में नीली रावी जैसी देसी नस्लों का संरक्षण और प्रचार बेहद जरूरी हो जाता है. आइए जानते हैं इस बेहतरीन भैंस के बारे में वो सब कुछ जो एक किसान या डेयरी व्यवसायी को जानना चाहिए.
कहां से आई नीली रावी भैंस?
नीली रावी भैंस का नाम दो खास इलाकों से आता है– नीली सतलुज के नीले पानी से और रावी पाकिस्तान की रावी नदी वाले क्षेत्र से. 1960 के बाद इन दोनों उपनस्लों को मिलाकर एक ही नस्ल माना गया. भारत में इसका केंद्र पंजाब का फिरोजपुर, अमृतसर, फाजिल्का, फरीदकोट और मखू जैसे इलाके हैं. ये भैंस सीमावर्ती किसानों की रीढ़ बन चुकी है और अब दूसरे राज्यों में भी इसकी मांग बढ़ रही है.
पहचान में सबसे आगे: सफेद धब्बों वाली पंच कल्याणी
नीली रावी भैंस दिखने में जितनी ताकतवर है, उतनी ही खूबसूरत भी. गहरे काले रंग की इस भैंस की सबसे खास पहचान है इसके सफेद धब्बे. माथे, थूथन, पैरों और पूंछ के पास ये सफेद निशान इसकी शुद्धता का प्रमाण माने जाते हैं और इन्हें ही पंच कल्याणी कहा जाता है. इसके अलावा, इसकी आंखें दीवार जैसी (walled eyes) होती हैं और सींग छोटे व हल्के मुड़े हुए. यह देखने में भारी-भरकम और दमदार शरीर वाली होती है.
दूध की बात तो सबसे अलग
अब बात करें असली दम की–यानी दूध उत्पादन की. नीली रावी भैंस अपने एक ब्यांत में औसतन 1850 लीटर दूध देती है. कुछ खास मामलों में ये आंकड़ा 1929 लीटर तक भी पहुंच जाता है. इसके दूध में फैट कंटेंट करीब 6.8 प्रतिशत होता है, जिससे यह घी, मक्खन, पनीर और दही बनाने के लिए बेहतरीन मानी जाती है. यह फैट की मात्रा विदेशी नस्लों से कहीं ज्यादा होती है, जिससे दूध का बाजार मूल्य भी बढ़ जाता है.
देखभाल और पालन: थोड़ी मेहनत, बड़ा मुनाफा
नीली रावी भैंस को इंटेंसिव फार्मिंग सिस्टम में पाला जाता है. यानी ये भैंसें घर के पास बने शेड में रहती हैं और हरे चारे, भूसे और दाने का संतुलित आहार दिया जाता है. इन्हें ठंडी जलवायु पसंद होती है, इसलिए गर्मियों में पंखा, छाया और साफ पानी का इंतजाम जरूरी होता है. इनके रहने का स्थान सामान्यतः मिट्टी या ईंट से बना होता है, जिसमें खुली जगह हो ताकि ये आराम से घूम-फिर सकें.
किसानों के लिए वरदान, बाज़ार में बनी मांग
पंजाब और आस-पास के राज्यों में नीली रावी भैंस से न सिर्फ दूध बल्कि दूध से बनने वाले उत्पादों की बिक्री से भी अच्छी कमाई होती है. आज जब बाजार में ऑर्गेनिक और देसी उत्पादों की डिमांड तेजी से बढ़ रही है, नीली रावी भैंस शहरी उपभोक्ताओं के बीच भी लोकप्रिय हो रही है. छोटे और सीमांत किसान इसके पालन से नियमित आमदनी पा रहे हैं. अगर वैज्ञानिक तरीके से पालन किया जाए, तो ये भैंस एक छोटे डेयरी व्यवसाय को भी बड़ा बना सकती है.
संरक्षण जरूरी है, वरना खो देंगे देसी ताकत
बढ़ते शहरीकरण और विदेशी नस्लों के अंधानुकरण से नीली रावी जैसी देसी नस्लें खतरे में हैं. नस्ल की शुद्धता बचाने के लिए जरूरी है कि किसान इसे पहचानें, पालें और इसका प्रचार करें. सरकार और पशुपालन विभाग को चाहिए कि किसानों को इसके बारे में प्रशिक्षण और सब्सिडी योजनाओं के जरिए प्रोत्साहित करें, ताकि यह शानदार नस्ल देश की दूध क्रांति का हिस्सा बनी रहे.