अगर आप गाय या भैंस का बछड़ा पालते हैं तो यह खबर आपके लिए बहुत जरूरी है. क्योंकि नवजात बछड़े बहुत कमजोर और नाजुक होते हैं. जन्म के बाद शुरुआती कुछ महीने उनकी सेहत के लिए सबसे अहम होते हैं. इस दौरान अगर थोड़ी भी लापरवाही हुई तो बछड़ा बीमार पड़ सकता है और समय पर इलाज न मिलने पर जान भी जा सकती है. कई बार जानकारी की कमी से बीमारी पकड़ में नहीं आती और नुकसान हो जाता है. ऐसे में इन 6 आम बीमारियों को पहचानना और बचाव करना बहुत जरूरी है.
1. बछड़ों की जान लेने वाली बीमारी
नवजात बछड़ों में सबसे ज्यादा पाई जाने वाली बीमारी है डायरिया, जिसे गांव में सफेद दस्त भी कहा जाता है. हिमाचल सरकार के पशुपालन विभाग के मुताबिक, ये बीमारी तब होती है जब बछड़े को जरूरत से ज्यादा दूध पिला दिया जाए या उसके पेट में कीड़े या संक्रमण हो जाए. कई बार बछड़ा खुद ही खूंटे से निकलकर मां का ज्यादा दूध पी लेता है, जिससे उसका पेट खराब हो जाता है और उसे दस्त लग जाते हैं. अगर समय पर इलाज न किया जाए तो बछड़ा कमजोर हो सकता है या उसकी जान भी जा सकती है.
ऐसे करें इस रोग से बचाव
- बछड़े को उसकी उम्र और वजन के अनुसार ही दूध पिलाएं, यानी उसके वजन का करीब 1/10 हिस्सा.
- बछड़े को मां से ज्यादा दूध न पीने दें, उसे निगरानी में रखें.
- दस्त लगने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें.
- शरीर में पानी की कमी न हो, इसके लिए ओआरएस या डेक्स्ट्रोज का इंजेक्शन दिलवाएं.
- गोबर की जांच करवाकर सही दवा दें.
- अगर दस्त में खून आ रहा हो तो डॉक्टर की सलाह से कोक्सीडियोस्टेट नाम की दवा का इस्तेमाल करें.
2. पेट में कीड़े बनते हैं बछड़े की कमजोरी की बड़ी वजह
गाय या भैंस के नवजात बछड़ों में पेट में कीड़े होना बहुत आम बात है. ये कीड़े कई बार मां के पेट से ही बच्चे में आ जाते हैं. जब बछड़े के पेट में कीड़े होते हैं तो उसका वजन नहीं बढ़ता, वह कमजोर हो जाता है और उसे बार-बार दस्त या कब्ज हो सकता है. इसके अलावा, भूख भी कम लगती है और बछड़ा बीमार रहने लगता है. अगर सही समय पर इलाज न किया जाए तो उसकी हालत बिगड़ सकती है.
इससे बचने के लिए जरूरी है कि गर्भवती गाय या भैंस को गर्भ के आखिरी महीनों में पेट के कीड़े मारने की दवा जरूर दी जाए. इससे बछड़े को जन्म से ही कीड़े नहीं मिलेंगे. इसके अलावा, जब बछड़ा थोड़ा बड़ा हो जाए यानी करीब डेढ़ से दो महीने का, तब से हर डेढ़-दो महीने पर उसे पिपरजीन या कोई और कीड़े मारने की दवा देना चाहिए. इतना ही नहीं, बछड़े के गोबर पर भी नजर रखें, अगर उसमें कोई बदलाव दिखे तो तुरंत पशु डॉक्टर से संपर्क करें और इलाज शुरू करें.
3. नाभि की सफाई में लापरवाही पड़ सकती है भारी
बछड़ा जब पैदा होता है तो उसकी नाभि बहुत नाजुक होती है. अगर जन्म के बाद उसकी नाभि की ठीक से सफाई और देखभाल न की जाए तो उसमें इन्फेक्शन हो सकता है. इस बीमारी को आमतौर पर नाभि का सड़ना कहते हैं. इसमें नाभि में सूजन आ जाती है, मवाद निकलता है और बदबू आने लगती है. कई बार अगर ध्यान न दिया जाए तो उसमें कीड़े भी पड़ सकते हैं, जो बछड़े की हालत को और खराब कर देते हैं.
इससे बचने के लिए सबसे जरूरी है कि जन्म के तुरंत बाद नाभि को साफ जगह से काटा जाए और उस पर एंटीसेप्टिक दवा लगाकर ड्रेसिंग की जाए. ध्यान दें कि नाभि को हर दिन साफ रखना चाहिए जब तक वह पूरी तरह सूख न जाए. इतना ही नहीं बछड़े को हमेशा साफ-सुथरे, सूखे और गर्म स्थान पर रखें, जहां मक्खियां या गंदगी न हो. अगर नाभि में सूजन या मवाद दिखे तो देरी न करें तुरंत नजदीकी पशु चिकित्सक से इलाज कराएं, वरना बछड़े की जान को खतरा हो सकता है.
4. सर्दी-बारिश में बछड़े को निमोनिया से कैसे बचाएं?
सर्दी और बारिश के मौसम में अगर बछड़े को ठीक से गर्माहट न मिले या वह गीली-जगह पर पड़ा रहे तो उसे निमोनिया हो सकता है. यह बीमारी बछड़ों में बहुत आम है और जानलेवा भी हो सकती है. ध्यान दें कि जब बछड़ा निमोनिया से ग्रसित होता है तो उसे तेज बुखार आता है और सांस लेने में तकलीफ होने लगती है. इतना ही नहीं, वह दूध पीना भी बंद कर देता है और धीरे-धीरे कमजोर होने लगता है. अगर समय पर इलाज न किया जाए तो उसकी जान भी जा सकती है.
इससे बचने के लिए सबसे जरूरी है कि ठंड और बरसात के समय बछड़े को हमेशा सूखे, गर्म और हवादार स्थान पर रखा जाए. इसके अलावा, उसके नीचे सूखा बिछावन हो और हवा न लगे. अगर बछड़े में किसी भी तरह के निमोनिया के लक्षण दिखें तो बिना देरी के पशु चिकित्सक से संपर्क करें और डॉक्टर की सलाह से एंटीबायोटिक दवा दें. सही देखभाल से बछड़ा जल्द ठीक हो सकता है.
5. टायफाइड से बछड़े की जान बचानी है तो रखें खास ख्याल
बछड़ों में टायफाइड (साल्मोनेलोसिस) एक खतरनाक और तेजी से फैलने वाली बीमारी है. यह बीमारी एक खास तरह के बैक्टीरिया से फैलती है. जब किसी बछड़े को यह रोग हो जाता है तो उसे तेज बुखार आता है और खूनी दस्त लगते हैं. ऐसे में वह कमजोर हो जाता है, खाना-पीना छोड़ देता है और समय पर इलाज न मिले तो उसकी जान भी जा सकती है. यह बीमारी एक से दूसरे जानवर में आसानी से फैल जाती है.
इसलिए जैसे ही लक्षण दिखें, बीमार बछड़े को बाकी जानवरों से तुरंत अलग कर देना चाहिए. ध्यान दें कि पशु चिकित्सक की सलाह से ही दवा लें. इलाज के साथ-साथ पशुशाला को रोज साफ-सुथरा रखना भी बेहद जरूरी होता है. वहां गंदगी जमा न हो, इसके लिए समय-समय पर सफाई करनी चाहिए. बछड़े की नियमित देखभाल और साफ वातावरण इस बीमारी से बचाने में मदद करता है. जितनी जल्दी इलाज शुरू होगा, उतनी ही जल्दी बछड़ा ठीक होगा.
6. बछड़ों में खुरपका-मुंहपका का खतरा ज्यादा
खुर और मुंह की बीमारी (FMD) छोटे बछड़ों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है. गाय- भैंसो में यह बीमारी मुंह और खुर में छाले बनाकर दिक्कत देती है, लेकिन बच्चों में इसका असर सीधे दिल पर पड़ता है. इससे कई बार बछड़े की अचानक मौत हो जाती है. इस बीमारी का कोई पक्का इलाज नहीं है, लेकिन अगर समय पर सावधानी बरती जाए तो इससे बचाव संभव है.
बचाव का सबसे अच्छा तरीका है समय पर टीकाकरण. ध्यान दें कि बछड़े को पहला टीका 1 महीने की उम्र में, दूसरा 3 महीने में और तीसरा 6 महीने में लगवाना जरूरी है. इसके बाद हर 6 महीने में यह टीका दोहराते रहना चाहिए. इसके अलावा, बीमार और स्वस्थ जानवरों को अलग रखना चाहिए. जो व्यक्ति बीमार जानवर की देखभाल करता है, उसे हाथ धोकर ही दूसरे जानवरों के पास जाना चाहिए. साफ-सफाई और सतर्कता से इस बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है और बछड़े को सुरक्षित रखा जा सकता है.