पशुओं में बढ़ रहा खतरनाक रक्तस्रावी रोग, किसान रहें सावधान.. कम हो जाएगा दूध उत्पादन

पशुओं में खून से जुड़े खतरनाक रोग तेजी से बढ़ रहे हैं, जिससे दूध उत्पादन कम और बीमारी का खतरा ज्यादा हो गया है. कई गांवों में गाय-भैंस अचानक कमजोर दिख रही हैं. किलनी के बढ़ते प्रकोप और मौसम में बदलाव से संक्रमण फैल रहा है. किसान सावधानी बरतकर बड़ी हानि से बच सकते हैं.

नोएडा | Published: 22 Nov, 2025 | 10:02 PM

Animal Disease : देशभर के ग्रामीण इलाकों में इन दिनों पशुओं में एक खतरनाक संक्रमण तेजी से फैल रहा है, जिसे रक्तस्रावी रोग के नाम से जाना जाता है. मौसम के उतार-चढ़ाव, असुरक्षित शेड और किलनी का बढ़ता प्रकोप इस बीमारी के फैलने की मुख्य वजह है. यह रोग गाय-भैंस के खून पर सीधा असर डालता है और दूध उत्पादन अचानक कम कर देता है. कई किसानों ने शिकायत की है कि उनकी देसी नस्ल की गायें अचानक कमजोर होने लगी हैं, जो इस बीमारी के बढ़ते खतरे का साफ संकेत है. समय पर इलाज न मिलने पर पशुओं का वजन घटने लगता है और कुछ मामलों में यह जानलेवा भी साबित हो सकता है.

बबेसिया रोग

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, रक्तस्रावी रोग का पहला प्रकार बबेसिया तेजी से फैलने वाली बीमारी है, जो किलनी के काटने से होती है. किलनी खून में एक छोटा परजीवी छोड़ देती है जो लाल रक्त कोशिकाओं को नुकसान  पहुंचाना शुरू कर देता है. इससे पशु को तेज बुखार आता है, पेशाब का रंग गहरा भूरा हो जाता है और कई बार उसमें खून भी दिखने लगता है. किसान अक्सर दूध कम होने को सामान्य समस्या समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, जबकि यह इस बीमारी का गंभीर संकेत होता है. अगर बबेसिया का इलाज समय पर न मिले, तो खून की कमी तेजी से बढ़ती है और पशु कमजोर होकर बैठ जाता है. ऐसे में किसान को चाहिए कि वह पेशाब के रंग और बुखार पर ध्यान रखे, क्योंकि शुरुआती पहचान से पशु को आसानी से बचाया जा सकता है.

हेमट्यूरिया

रक्तस्रावी रोग का दूसरा रूप हेमट्यूरिया भी बेहद खतरनाक है और यह गर्मियों में ज्यादा फैलता है. यह बीमारी भी किलनी से जुड़ी होती है. इसमें पशु के पेशाब का रंग गुलाबी, लाल या कभी-कभी गाढ़ा खून जैसा हो जाता है. कई बार पेशाब के साथ खून के थक्के भी निकलते हैं, जिससे पशु को दर्द  होता है और वह सुस्त पड़ने लगता है. ऐसी स्थिति में पशु तेजी से खून की कमी का शिकार हो जाता है, जिससे उसकी हालत गंभीर हो सकती है. किसानों को चाहिए कि पेशाब में किसी भी तरह का बदलाव दिखे तो तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करें, क्योंकि यह बीमारी बहुत तेजी से बढ़ती है और देरी जानलेवा हो सकती है.

बचाव ही सबसे बड़ा इलाज

इन दोनों बीमारियों से बचने का सबसे आसान तरीका है कि पशु और शेड की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाए. किलनी शेड की दीवारों, फर्श और जानवरों की त्वचा के कोनों में पनपती है, इसलिए नियमित कीटनाशक  दवा का छिड़काव बहुत जरूरी है. पशुओं को समय-समय पर नहलाना, शरीर पर नीम या एंटी-टिक दवा लगाना और नए पशु को शेड में लाने से पहले जांच करना बेहद जरूरी है. किसान भाइयों को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अगर पशु का खाना कम हो जाए, वह सुस्त दिखे या पेशाब का रंग बदल जाए, तो इन संकेतों को हल्के में न लें. खून की जांच कराना इसकी सबसे सही पहचान है और समय रहते इलाज मिल जाए तो पशु पूरी तरह ठीक हो सकता है.

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