Sheep Farming : गांवों में भेड़ पालन हमेशा से कम खर्च और ज्यादा मुनाफे वाला सबसे भरोसेमंद धंधा माना जाता है. रोजाना ऊन, दूध और मेमनों की बिक्री से अच्छी आय होती है, इसलिए छोटे किसान और पशुपालक इसे तेजी से अपना रहे हैं. लेकिन हाल के वर्षों में एक चुनौती बढ़ी है-भेड़ों में होने वाले खतरनाक रोग. ये बीमारियां इतनी तेजी से फैलती हैं कि कई बार पूरा झुंड तक प्रभावित हो जाता है. अगर समय पर पहचान और बचाव न किया जाए, तो पशुपालकों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है. इसी वजह से जरूरी है कि इन बीमारियों की जानकारी हर भेड़ पालक के पास हो, ताकि वे समय रहते सही कदम उठा सकें.
खुरपका-मुंहपका
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भेड़ों में सबसे आम और खतरनाक बीमारी खुरपका-मुंहपका है. यह एक विषाणु जनित बीमारी है जो पल भर में एक भेड़ से दूसरी भेड़ तक फैल जाती है. रोग लगते ही पशु के मुंह, जीभ और होठों में दर्दभरे फफोले पड़ जाते हैं. खुरों के बीच भी घाव हो जाते हैं, जिससे भेड़ ठीक से चल नहीं पाती. घास खाना मुश्किल हो जाता है, और पशु तेजी से कमजोर पड़ता जाता है. इस बीमारी से बचने के लिए सबसे जरूरी है संक्रमित पशु को तुरंत झुंड से अलग करना और हर 6 महीने में एफएमडी टीकाकरण करवाना. यदि समय पर टीका लग जाए, तो भेड़ पूरी तरह सुरक्षित रहती है और बीमारी फैलने का खतरा आधा हो जाता है.
ब्रूसीलोसिस
भेड़ों में होने वाली दूसरी गंभीर बीमारी ब्रूसीलोसिस है, जो जीवाणु से फैलती है. यह बीमारी खास तौर पर गर्भवती भेड़ों के लिए खतरा बन जाती है. गर्भ धारण के करीब 4 या साढ़े 4 महीने में अचानक गर्भपात हो जाता है. कई बार बच्चेदानी तक पक जाती है और जेर बाहर नहीं आती. मेंढों और बकरों में भी इसके कारण अंडकोष में सूजन आ जाती है और प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है. इस बीमारी का सबसे बड़ा संकट यह है कि यह लंबे समय तक झुंड में फैलती रहती है. इसलिए जितनी जल्दी हो सके, बीमार भेड़ को अलग करना और मृत मेमनों को खुले में न फेंककर गहरे गड्ढे में दबाना बेहद जरूरी है. कई पशु चिकित्सक सलाह देते हैं कि प्रभावित झुंड को पूरी तरह बदल देना ही सबसे सुरक्षित उपाय होता है.
चर्म रोग
चर्म रोग भेड़ों में आम है, लेकिन अगर समय पर इलाज न मिले तो गंभीर रूप भी ले सकता है. जूएं और पिस्सू जैसे परजीवी भेड़ों के शरीर पर जम जाते हैं और धीरे-धीरे चमड़ी में घाव कर देते हैं. जानवर दिन भर खुद को पत्थरों और पेड़ों से रगड़ता रहता है, जिससे त्वचा पर और घाव बन जाते हैं. ऊन की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है, जिससे नुकसान और बढ़ जाता है. भेड़ों के शरीर की नियमित जांच बेहद जरूरी है. अगर किसी में चर्म रोग के लक्षण दिखें, तो तत्काल उसे अलग कर देना चाहिए. कीटनाशक स्नान दो बार करवाने से काफी राहत मिलती है और परजीवी पूरी तरह खत्म हो जाते हैं.
गोल कीड़े
गोल कीड़े भेड़ों की आंतों में रहने वाले छोटे लेकिन खतरनाक परजीवी होते हैं. ये धागे जैसे सफेद रंग के कीड़े भेड़ के शरीर का खून चूसते रहते हैं. धीरे-धीरे पशु कमजोर हो जाता है, दस्त लग जाते हैं और ऊन उत्पादन भी घटने लगता है. कई बार पशु खाना-पीना बंद कर देता है, जिससे उसकी जान भी जोखिम में आ सकती है. इनसे बचने का सबसे आसान और असरदार तरीका है-साल में कम से कम तीन बार पेट के कीड़ों की दवा देना. यह दवा हमेशा पशु चिकित्सक की सलाह पर ही पिलानी चाहिए.
गलघोंटू
गलघोंटू भेड़ों में एक बेहद गंभीर बीमारी है, जो आमतौर पर जीवाणुओं से फैलती है. जब भेड़ों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है, तो संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. यह बीमारी इतनी तेजी से फैलती है कि कभी-कभी पूरा झुंड कुछ ही दिनों में प्रभावित हो जाता है. इस बीमारी में गले में सूजन, सांस लेने में दिक्कत, तेज बुखार और नाक से लार आना प्रमुख लक्षण हैं. इलाज देर से शुरू होने पर पशु की मृत्यु तक हो सकती है. बचाव के लिए वर्षा ऋतु से पहले भेड़ों को इसका टीकाकरण करवाना सबसे जरूरी कदम है.