Sheep Farming : भेड़ पालन गांवों में आय का मजबूत जरिया है. ऊन, मांस और दूध से होने वाली कमाई ने इसे एक फायदेमंद व्यवसाय बना दिया है. लेकिन पशुपालकों के लिए सबसे बड़ी चुनौती तब आती है जब उनके झुंड में बीमारी फैल जाती है. भेड़ें स्वभाव से नाजुक और संवेदनशील होती हैं और जरा-सी लापरवाही पूरे झुंड के खत्म होने का कारण बन सकती है. आज हम आपको बता रहे हैं भेड़ों में होने वाले पांच सबसे खतरनाक रोगों और उनसे बचाव के उपायों के बारे में, जिन्हें समय रहते पहचानना और रोकना बहुत जरूरी है.
खुरपका या मुंहपका रोग
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भेड़ों में यह रोग सबसे आम और सबसे खतरनाक माना जाता है. यह एक विषाणु जनित रोग (Viral Disease) है, जो एक संक्रमित भेड़ से दूसरी में बेहद तेज़ी से फैलता है. इस रोग में भेड़ के मुंह, जीभ, होंठ और खुरों के बीच में फफोले और छाले पड़ जाते हैं. ऐसी स्थिति में भेड़ न तो चारा खा पाती है, न ही ठीक से चल पाती है.
क्या करें:- अगर आपकी भेड़ में ऐसे लक्षण दिखें, तो सबसे पहले उसे बाकी झुंड से अलग कर दें. तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करें और FMD (Foot and Mouth Disease) का टीका लगवाएं. साथ ही, झुंड के बाकी पशुओं को भी सावधानी के तौर पर वैक्सीन दिलवाना जरूरी है.
गलघोंटू रोग: छिपा हुआ घातक संक्रमण
यह रोग सुनने में जितना सामान्य लगता है, असल में उतना ही खतरनाक है. गलघोंटू एक जीवाणु जनित रोग (Bacterial Disease) है, जो भेड़ की आंतों में कीड़े होने से बढ़ता है. यह कीड़े खून चूसते हैं और धीरे-धीरे भेड़ को कमजोर बना देते हैं. इसके लक्षणों में भूख कम लगना, तेज़ बुखार और सुस्ती शामिल है.
क्या करें:- भेड़ों को साल में कम से कम दो बार कीड़ों की दवा (Deworming Medicine) जरूर खिलाएं. साफ-सफाई और संतुलित आहार से भी इस बीमारी से काफी हद तक बचा जा सकता है.
चर्म रोग: खुजली से शुरू होकर नुकसान तक
भेड़ की ऊन और खाल उनकी सबसे कीमती संपत्ति होती है. लेकिन जब शरीर पर पिस्सू, जुएं या परजीवी कीड़े बढ़ जाते हैं, तो यह चर्म रोग (Skin Infection) का रूप ले लेता है. शुरू में यह केवल खुजली के रूप में दिखता है, पर समय रहते इलाज न होने पर त्वचा फट जाती है और ऊन गिरने लगता है.
क्या करें:- समय-समय पर भेड़ों को नहलाएं और उनकी खाल की जांच करवाते रहें. संक्रमण दिखे तो पशु चिकित्सक द्वारा बताई दवा या एंटीसेप्टिक पाउडर का प्रयोग करें. झुंड की सफाई और सूखी जगह पर रखने की आदत इस रोग से बचाव में अहम भूमिका निभाती है.
ब्रुसीलोसिस रोग: गर्भवती भेड़ों के लिए सबसे खतरनाक
यह रोग खास तौर पर गर्भवती भेड़ों (Pregnant Sheep) में देखा जाता है. यह भी एक जीवाणु जनित रोग (Brucellosis) है, जिसमें भेड़ों का गर्भपात चार से पांच महीने में ही हो जाता है. मादा भेड़ों की बच्चेदानी में संक्रमण हो जाता है और आगे चलकर वे बांझ भी हो सकती हैं.
क्या करें:- जैसे ही किसी भेड़ में गर्भपात के लक्षण दिखें, तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें. इस बीमारी का इलाज केवल चिकित्सकीय निगरानी में ही संभव है. साथ ही, ऐसे पशुओं को झुंड से कुछ समय के लिए अलग रखें ताकि संक्रमण न फैले.
रेबीज रोग: कुत्ते या नेवले के काटने से फैलता खतरा
रेबीज केवल इंसानों में नहीं, बल्कि भेड़ों में भी फैल सकता है. यह रोग आमतौर पर पागल कुत्ते या नेवले के काटने से होता है. इस रोग में भेड़ धीरे-धीरे हिंसक हो जाती है, खाना छोड़ देती है और अंततः उसकी मृत्यु हो जाती है. इसका इलाज संभव नहीं है, लेकिन टीकाकरण से बचाव किया जा सकता है.
क्या करें:- किसी भी जानवर के काटने पर तुरंत भेड़ को डॉक्टर के पास ले जाएं. रेबीज से बचाव के लिए समय पर वैक्सीन लगवाना ही सबसे असरदार उपाय है.
समय पर जांच और टीकाकरण ही है सबसे बड़ा बचाव
भेड़ों में रोगों का खतरा हमेशा बना रहता है, इसलिए सावधानी ही सबसे बड़ा हथियार है. हर छह महीने में भेड़ों का स्वास्थ्य परीक्षण (Health Checkup) कराएं और सभी जरूरी टीकाकरण (Vaccination Schedule) पूरे करें. चारे और पानी की स्वच्छता पर खास ध्यान दें, क्योंकि गंदगी से ही अधिकतर बीमारियां शुरू होती हैं. पशुपालकों को चाहिए कि वे किसी भी असामान्य व्यवहार जैसे भूख न लगना, बार-बार बैठना, या ऊन झड़ना जैसी छोटी बातों को नजरअंदाज न करें. यही शुरुआती संकेत आगे चलकर बड़ी समस्या का रूप ले सकते हैं.