बिहार, जो कभी अपनी उपजाऊ जमीन और मेहनती लोगों के लिए जाना जाता था, आज भी देश के सबसे पिछड़े राज्यों में गिना जाता है. नई रिपोर्ट बताती है कि बिहार का मौजूदा विकास मॉडल अब काम नहीं कर रहा. सबसे बड़ी वजह यह है कि राज्य की अर्थव्यवस्था भारी तौर पर खेती पर आधारित है, लेकिन खेती आज भी उतनी लाभदायक नहीं है कि वह लोगों को बेहतर जिंदगी दे सके.
ICRIER की रिपोर्ट साफ कहती है कि अगर बिहार को आगे बढ़ना है, तो उसे अपनी विकास रणनीति में बड़े बदलाव लाने होंगे, फसल में विविधता, मजबूत ग्रामीण ढांचा और नए संस्थागत सुधार इसकी पहली जरूरत हैं.
कृषि पर निर्भरता ज्यादा, कमाई सबसे कम
रिपोर्ट के अनुसार बिहार की 70–75 फीसदी आबादी खेती या उससे जुड़े कामों पर निर्भर है. लेकिन खेती का हाल यह है कि किसानों को मेहनत के हिसाब से कम आय मिल रही है. राज्य की प्रति व्यक्ति आय देश में सबसे कम है, और इसका सीधा कारण है छोटी जमीनें, कम उत्पादन और उच्च लागत.
बिहार के 97 फीसदी से ज्यादा खेत छोटे या सीमांत हैं. औसतन हर किसान के पास सिर्फ 0.39 हेक्टेयर जमीन है. इतनी कम जमीन पर आधुनिक तकनीक का उपयोग करना मुश्किल होता है, जिससे उत्पादन घट जाता है.
पूर्वी भारत की चुनौतियां और बिहार की स्थिति
रिपोर्ट बताती है कि भारत का पूर्वी और मध्य हिस्सा जैसे यूपी, झारखंड, ओडिशा और बिहार आर्थिक विकास में बहुत पीछे हैं. इनमें बिहार की स्थिति सबसे ज्यादा चिंताजनक है. यहां गैर–कृषि रोजगार कम है, इसलिए बिहार और यूपी से लाखों लोग हर साल दूसरे राज्यों में काम करने जाते हैं. यह साफ बताता है कि स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर बेहद सीमित हैं.
खेती में बदलाव क्यों जरूरी है?
रिपोर्ट कहती है कि बिहार सिर्फ पारंपरिक फसलों पर निर्भर रहकर आगे नहीं बढ़ सकता. धान और गेहूं जैसी फसलों से किसान को ज्यादा फायदा नहीं होता, जबकि बागवानी और पशुपालन जैसी उच्च मूल्य वाली गतिविधियां कम जमीन में भी अधिक कमाई दे सकती हैं. इसलिए बिहार को खेती को आधुनिक, विविध और बाजार–उन्मुख बनाना होगा.
उच्च मूल्य वाली फसलें
मखाना और लीची जैसी फसलों ने बिहार की पहचान बनाई है. दोनों को GI टैग भी मिला है. 2025 में बने राष्ट्रीय मखाना बोर्ड से उम्मीद है कि मखाने का उत्पादन, प्रोसेसिंग, मार्केटिंग और निर्यात सबमें तेजी आएगी. हालांकि रिपोर्ट बताती है कि मखाना प्रोसेसिंग अभी भी बहुत पीछे है. मशीनें कम हैं, तकनीक पुरानी है और मजदूरी पर अधिक निर्भरता होने से उत्पादन महंगा पड़ता है.
बिहार की सबसे बड़ी रुकावट
बिहार में कृषि का सबसे बड़ा संकट सिंचाई से जुड़ा है. 77 फीसदी सिंचाई डीजल पंप से होती है. इससे लागत बढ़ती है, डीजल खर्च बढ़ता है. पर्यावरण पर असर पड़ता है.
रिपोर्ट ने सलाह दी है कि ग्रामीण विद्युतीकरण, सोलर सिंचाई और अलग फीडर लाइन जैसी बुनियादी सुधारों पर तुरंत काम करना चाहिए. इससे खेती की लागत कम होगी और उत्पादन बढ़ेगा.
बाजार व्यवस्था में सुधार की भारी जरूरत
- बिहार में APMC एक्ट नहीं है, जिसकी वजह से बाजार में पारदर्शिता कम होती है
- किसानों को सही दाम नहीं मिल पाता
- बिचौलियों का दबदबा रहता है
- दामों में उतार–चढ़ाव बढ़ जाता है
रिपोर्ट का कहना है कि किसान उत्पादक संगठन (FPOs) को मजबूत करना जरूरी है ताकि किसान मिलकर अपनी फसल बेच सकें और बेहतर दाम पा सकें.
दूसरे राज्यों से सीखने की जरूरत
मध्य प्रदेश ने 2005 के बाद सिंचाई, खरीद और फसल विविधीकरण में बड़े सुधार किए. इससे उसकी खेती तेजी से आगे बढ़ी. रिपोर्ट कहती है कि बिहार यह सब कर सकता है, बस राजनीतिक इच्छाशक्ति और योजनाओं की तेजी की जरूरत है.