पशुओं में पेट के कीड़ों का शर्तिया इलाज, आज उपचार करें कल से छूमंतर हो जाएगी बीमारी!

Cattles Intestinal Worms Disease: पशुओं के पेट में कीड़े पड़ना एक आम लेकिन खतरनाक समस्या है. समय रहते इसकी पहचान और इलाज न होने पर यह बीमारी गंभीर रूप ले लेती है. इससे दुधारू पशु का दूध उत्पादन घटता है और पशुपालकों को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है.

Kisan India
नोएडा | Published: 9 Nov, 2025 | 09:00 AM

Animal Health : गांवों में पशुपालन सिर्फ जीविका नहीं, बल्कि परिवार की आय का मजबूत सहारा होता है. दूध, खाद और खेती में मदद देने वाले ये मूक साथी हमारे जीवन का अहम हिस्सा हैं. लेकिन अगर उनके पेट में कीड़े पड़ जाएं, तो उनकी सेहत बिगड़ जाती है और दूध उत्पादन पर भी सीधा असर पड़ता है. अक्सर किसान इसे मामूली समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन यही गलती आगे चलकर भारी आर्थिक नुकसान का कारण बन सकती है. आइए जानते हैं, कैसे पहचानें पेट के कीड़े और क्या हैं इसके असरदार बचाव के तरीके.

पेट के कीड़े- छोटी बीमारी, बड़ा नुकसान

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पशुओं के पेट में कीड़े  पड़ना बहुत आम समस्या है, खासकर बारिश या नमी वाले मौसम में. ये कीड़े जानवर के पेट और आंतों में जाकर उसके खाए हुए भोजन को हजम कर जाते हैं. ऐसे में जानवर चाहे कितना भी खा ले, उसे पोषण नहीं मिल पाता. अगर इलाज समय पर न किया जाए, तो यह समस्या दूध देने वाली गाय या भैंस की उत्पादकता  को 40 फीसदी तक घटा सकती है.

समय पर पहचान है जरूरी

पशुपालकों के लिए सबसे जरूरी है कि वे लक्षणों को समय रहते पहचानें. अगर जानवर मिट्टी खाने लगे, कमजोरी दिखाने लगे या गोबर से बदबूदार दस्त आने लगे, तो समझिए मामला गंभीर है. कई बार गोबर में छोटे कीड़े या काले खून की बूंदें भी नजर आती हैं. ऐसे में तुरंत पशु चिकित्सक  की सलाह लेनी चाहिए. शुरुआती स्तर पर इलाज करवा लेने से पशु जल्दी ठीक हो जाता है और उत्पादन पर असर नहीं पड़ता.

ऐसे पहचानें पेट में कीड़े पड़ने के लक्षण

जब पशु के शरीर में कीड़ों का प्रकोप बढ़ जाता है, तो उनके व्यवहार और स्वास्थ्य में कई बदलाव दिखने लगते हैं. ऐसे पशु अक्सर मिट्टी या गोबर खाने लगते हैं और उनका शरीर कमजोर पड़ जाता है. वजन में कमी आना और दुधारू पशुओं  में दूध उत्पादन का घट जाना आम लक्षण हैं. कई बार गोबर का रंग मटमैला हो जाता है या उसमें छोटे कीड़े दिखाई देने लगते हैं. इसके साथ ही खून की कमी और बाल झड़ने जैसी समस्याएं भी सामने आती हैं. इन संकेतों को अनदेखा करना खतरनाक हो सकता है, इसलिए समय पर उपचार जरूरी है.

बचाव ही सबसे बड़ा इलाज

कीड़ों से बचाव के लिए पशुपालकों को हर तीन महीने में डीवर्मिंग करवाना जरूरी है. इसके लिए बाजार में मिलने वाली डीवेरमैक्स जैसी दवाएं उपयोगी मानी जाती हैं, लेकिन दवा देने से पहले पशु के गोबर की जांच करवाना अच्छा रहता है ताकि सही उपचार किया जा सके. इसके अलावा, पशु का वैक्सीनेशन कराने से पहले हमेशा आंतों के कीड़ों की दवा देना चाहिए. इससे दवाओं का असर और ज्यादा प्रभावी होता है.

साफ-सफाई और पोषण पर रखें ध्यान

पशु के रहने की जगह हमेशा सूखी और साफ रखें. गंदगी या नमी से कीड़ों के अंडे आसानी से पनपते हैं. चारा और दाने में किसी भी तरह की सड़न न हो. स्वच्छ पानी पिलाएं और दिन में कम से कम दो बार बाड़े की सफाई करें. साथ ही, हरा चारा और दाने में प्रोटीन की पर्याप्त  मात्रा रखें ताकि पशु की प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे.

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Published: 9 Nov, 2025 | 09:00 AM

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