भेड़ों का झुंड खत्म कर देते हैं ये रोग, पशुपालकों के बड़े काम आएंगे बचाव के ये देसी तरीके

भेड़ पालन में रोग तेजी से फैल सकते हैं. जानिए खुरपका, ब्रूसीलोसिस, चर्म रोग, कीड़े और गलघोंटू जैसी बीमारियों से बचाव के आसान उपाय. पालन सही हो तो झुंड स्वस्थ, उत्पादन बढ़े और आर्थिक लाभ मिलेगा.

Kisan India
नोएडा | Published: 24 Oct, 2025 | 09:00 AM

Sheep Health : भारत में भेड़ पालन किसानों के लिए एक लाभदायक व्यवसाय बन चुका है. इससे ऊन, दूध और मांस जैसे उत्पादों से अच्छी कमाई होती है. लेकिन भेड़ पालन करने वाले पशुपालकों को यह समझना जरूरी है कि जितनी तेजी से यह व्यवसाय बढ़ रहा है, उतनी ही तेजी से बीमारियों का खतरा भी बढ़ रहा है. अगर इन बीमारियों की पहचान समय पर न की जाए, तो पूरा झुंड प्रभावित हो सकता है. कई बार स्थिति इतनी गंभीर हो जाती है कि पशु की मृत्यु तक हो जाती है. इससे न केवल आर्थिक नुकसान होता है बल्कि मेहनत और समय दोनों पर पानी फिर जाता है. आइए जानते हैं भेड़ों में होने वाली कुछ खतरनाक बीमारियों और उनके आसान बचाव के तरीके.

खुरपका-मुंहपका रोग- सबसे तेजी से फैलने वाला संक्रमण

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, खुरपका-मुंहपका  एक विषाणु जनित रोग है, जो बहुत तेजी से एक भेड़ से दूसरी में फैलता है. इस बीमारी में भेड़ों के मुंह, जीभ, होंठ और खुरों के बीच फफोले पड़ जाते हैं, जिससे वे न तो ठीक से खा पाती हैं और न ही चल पाती हैं. कुछ ही दिनों में उनकी हालत कमजोर हो जाती है. यह रोग अगर समय पर रोका न जाए तो पूरा झुंड प्रभावित हो सकता है. इससे बचाव के लिए संक्रमित भेड़ को अलग रखें, हर छह महीने में एफएमडी का टीका लगवाएं और बाड़े की पूरी सफाई व स्वच्छ पानी की व्यवस्था करें

ब्रूसीलोसिस- गर्भपात कराने वाला खतरनाक रोग

यह रोग जीवाणु (बैक्टीरिया) से फैलता है और विशेष रूप से गर्भवती भेड़ों  को प्रभावित करता है. संक्रमित भेड़ें गर्भ के लगभग चार से साढ़े चार महीने के बीच गर्भपात कर देती हैं. कई बार जेर (नाल) नहीं गिरने से संक्रमण और बढ़ जाता है. नर भेड़ों में यह बीमारी अंडकोष में सूजन, दर्द और प्रजनन क्षमता में कमी का कारण बनती है. यह रोग तेजी से पूरे झुंड में फैल सकता है, इसलिए बचाव बहुत जरूरी है. गर्भपात हुई भेड़ को तुरंत अलग करें, मृत मेमनों या जेर को गहरे गड्ढे में दबाएं, और संक्रमण फैलने पर नए स्वस्थ पशुओं को पालें.

चर्म रोग- खुजली और परजीवियों से फैलने वाली समस्या

भेड़ों की चमड़ी पर अक्सर जूएं, पिस्सू और माइट्स जैसे परजीवी लग जाते हैं, जो उनकी त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं. इससे त्वचा पर खुजली , लाल दाने और फफोले बन जाते हैं. संक्रमित भेड़ें लगातार अपने शरीर को पेड़, दीवार या पत्थर से रगड़ती रहती हैं, जिससे घाव हो जाते हैं और संक्रमण बढ़ता जाता है. अगर समय पर इलाज न किया जाए, तो यह बीमारी पूरे झुंड में फैल सकती है. बचाव के लिए भेड़ों की त्वचा की नियमित जांच करवाएं, संक्रमित भेड़ों को बाकी झुंड से अलग रखें और साल में कम से कम दो बार कीटनाशक स्नान जरूर कराएं

गोल कीड़े- आंतों में पनपने वाला खामोश दुश्मन

भेड़ों की आंतों में गोल कीड़े लंबे सफेद धागों जैसे दिखाई देते हैं. ये कीड़े धीरे-धीरे भेड़ के खून और पोषक तत्व चूसते हैं, जिससे पशु कमजोर  होने लगता है. प्रभावित भेड़ का खाना कम खाया जाता है, दस्त लग जाते हैं और ऊन का उत्पादन भी घट जाता है. ऐसे कीड़ों से बचाव के लिए हर चार महीने में कृमिनाशक दवा (deworming medicine) देना जरूरी है. इसके अलावा चराई वाले स्थानों की नियमित सफाई रखें और संक्रमित पशुओं के मल को खुले में न छोड़ें. यह उपाय भेड़ों को स्वस्थ रखने और उत्पादन बनाए रखने में मदद करता है.

गलघोंटू- जानलेवा जीवाणु संक्रमण

गलघोंटू भेड़ों  में सबसे घातक रोग माना जाता है और यह आमतौर पर तब फैलता है जब झुंड को एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता है. संक्रमित भेड़ में गले में सूजन, सांस लेने में कठिनाई, तेज बुखार और नाक से लार गिरने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. अगर समय पर इलाज न किया जाए, तो यह रोग कुछ ही दिनों में जानलेवा साबित हो सकता है. बचाव के लिए हर साल वर्षा ऋतु से पहले टीका लगवाना जरूरी है. साथ ही बीमार भेड़ को झुंड से तुरंत अलग करें और बाड़े में नमी व गंदगी न होने दें

रोकथाम ही सबसे बड़ी सुरक्षा

  • सभी भेड़ों का समय-समय पर टीकाकरण  और स्वास्थ्य परीक्षण करवाएं.
  • झुंड को हमेशा सूखी और साफ जगह पर रखें.
  • खाने और पानी के बर्तन रोज साफ करें.
  • बीमार पशु को कभी भी स्वस्थ पशु के साथ न रखें.
  • जरूरत पड़ने पर पशु चिकित्सक से तुरंत संपर्क करें.

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Published: 24 Oct, 2025 | 09:00 AM

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