बकरी पालन में उत्पादन बढ़ाने के लिए कृत्रिम गर्भाधान एक प्रभावी तरीका बन चुका है. यह प्रक्रिया पारंपरिक प्राकृतिक गर्भाधान की तुलना में अधिक नियंत्रित और सफल होती है. इसमें बकरियों को विशेष तकनीक से सीमन दिया जाता है ताकि गर्भधारण की संभावना बढ़े और बेहतर नस्ल की बकरियां पाली जा सकें. क्या है पूरी प्रकिया चलिए समझते हैं?
कृत्रिम गर्भाधान की प्रक्रिया
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के मुताबिक कृत्रिम गर्भाधान के लिए सबसे पहले तनुकृत या हिमीकृत सीमन को तरल नाइट्रोजन के भंडारण से निकाला जाता है. इसे लगभग 40 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले पानी में 40 सेकंड के लिए रखा जाता है ताकि वह सही तरीके से पिघल जाए. इसके बाद इसे भरे स्ट्रा (प्लास्टिक ट्यूब) को वीर्यसेचन पिचकारी की नली में डालकर सील काट दी जाती है. फिर स्ट्रा के ऊपर शीथ लगाकर इसे गर्भाशय की ग्रीवा पर लगाया जाता है. सीमन को इस तरह से ग्रीवा के अंदर तक पहुंचाने की कोशिश की जाती है ताकि गर्भधारण अधिक प्रभावी हो. खास तौर पर गहरी ग्रीवा वीर्यसेचन पिचकारी का उपयोग किया जाता है जिससे परिणाम बेहतर मिलते हैं.
यहां से खरीदे सीमन
कृत्रिम गर्भाधान के लिए उपयोग होने वाला हिमीकृत सीमन केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मखदूम (फरह) से प्राप्त किया जा सकता है. यहां पर उच्च गुणवत्ता वाले बकरों का वीर्य संग्रहित किया जाता है और किसानों को पुस्तक मूल्य पर उपलब्ध कराया जाता है. इच्छुक किसान इस सीमन को खरीद कर अपने बकरियों में कृत्रिम गर्भाधान कर सकते हैं, जिससे नस्ल सुधार और उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलती है.
कृत्रिम गर्भाधान किससे कराएं
कृत्रिम गर्भाधान हमेशा पशु चिकित्सक या कृत्रिम गर्भाधान में प्रशिक्षित व्यक्ति की देखरेख में ही कराएं. इससे प्रक्रिया सही तरीके से पूरी होती है और बकरियों को किसी भी तरह की चोट या संक्रमण से बचाया जा सकता है. केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मखदूम में इस संबंध में समय-समय पर प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए जाते हैं, जहां किसान इस तकनीक को सीख सकते हैं.
क्यों है कृत्रिम गर्भाधान जरूरी
कृत्रिम गर्भाधान की मदद से बेहतर नस्ल वाली बकरियां पाली जा सकती हैं, जिससे दूध उत्पादन और बकरियों की संतान की गुणवत्ता में सुधार होता है. इसके अलावा यह तरीका जल्दी और अधिक संख्या में बकरियों को गर्भवती करने में मदद करता है, जो किसान की आय बढ़ाने में सहायक होता है. इस प्रक्रिया से पारंपरिक प्राकृतिक गर्भाधान की तुलना में बीमारियों का खतरा भी कम रहता है.