Hoof Disease: पशु इस कारण खुरपका रोग से हो जाते हैं संक्रमित, ऐसे करें बचाव
खुरपका रोग, जिसे लोग Hoof Disease के नाम से जानते हैं. यह बीमारी तेज़ी से फैलती है और कई बार पूरे झुंड को बीमार कर देती है. अगर इलाज समय पर न मिले, तो यह बीमारी न सिर्फ बढ़ जाती है बल्कि कभी-कभी पशु की जान भी ले लेती है.
Hoof Disease : गांवों में पशु सिर्फ जानवर नहीं होते, बल्कि पूरे परिवार की कमाई के साथी होते हैं. दूध, खेती और रोज़मर्रा के काम-सब कुछ इन्हीं पर टिका होता है. ऐसे में अगर पशु किसी बीमारी की चपेट में आ जाए, तो किसान की चिंता बढ़ जाती है. इन बीमारियों में सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है खुरपका रोग, जिसे लोग Hoof Disease के नाम से जानते हैं. यह बीमारी तेज़ी से फैलती है और कई बार पूरे झुंड को बीमार कर देती है. इसलिए जरूरी है कि किसान पहले से इसके बारे में पूरी जानकारी रखें और सावधानी बरतें.
खुरपका रोग क्या होता है?
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, खुरपका रोग एक बहुत तेजी से फैलने वाला वायरस जनित रोग है. यह बीमारी खासकर खुर वाले जानवरों में पाई जाती है जैसे-गाय, भैंस, बकरी, भेड़, सूअर और कई जंगली पशु. इस बीमारी का कारण FMD वायरस होता है, जो हवा, संपर्क या संक्रमित चीजों के ज़रिए तुरंत फैल जाता है. इस रोग में पशु के मुंह, जीभ और खुरों में छोटे-छोटे घाव और फफोले बन जाते हैं. इन घावों की वजह से पशु को खाना-पीना मुश्किल हो जाता है. वह चलने से भी डरता है क्योंकि पैरों में दर्द बहुत होता है. अगर इलाज समय पर न मिले, तो यह बीमारी न सिर्फ बढ़ जाती है बल्कि कभी-कभी पशु की जान भी ले लेती है.
किन कारणों से फैलता है यह रोग?
खुरपका रोग का सबसे बड़ा कारण है संक्रमित पशु के संपर्क में आना. यह वायरस इतना तेज होता है कि एक बीमार पशु के आसपास रहने वाले दूसरे पशु भी जल्द ही इसकी चपेट में आ सकते हैं. यह बीमारी इन कारणों से फैल सकती है-
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- संक्रमित पशु के शरीर के तरल पदार्थ, दूध, लार या खून के संपर्क से.
- दूषित चारे, पानी या बाड़े के इस्तेमाल से.
- हवा के जरिए भी वायरस कई किलोमीटर तक फैल सकता है.
- बीमार पशु के बर्तन, खिलाने की जगह या रस्सी के संपर्क में आने से भी खतरा बढ़ जाता है.
अगर पशु कमजोर हो या पहले से किसी बीमारी से जूझ रहा हो, तो उसमें इस वायरस के लगने का खतरा और बढ़ जाता है.
खुरपका रोग से कैसे करें बचाव?
खुरपका रोग से बचने के लिए साफ-सफाई सबसे जरूरी कदम है. पशु जहां रहते हैं उस जगह को हमेशा सूखा और स्वच्छ रखना चाहिए. बारिश के मौसम में खास ध्यान देना पड़ता है क्योंकि गीली और गंदी जगह पर इस वायरस का असर जल्दी होता है. अगर किसी पशु में लक्षण दिखें, तो उसे तुरंत अलग कर दें ताकि बाकी पशुओं तक संक्रमण न फैले . पशुओं का समय-समय पर चेकअप कराते रहें. खुरपका रोग से बचाव का सबसे असरदार तरीका है-वैक्सीनेशन. वैक्सीन हर 6 महीने में लगवानी चाहिए ताकि उनका शरीर इस वायरस से लड़ सके. यदि गांव में यह बीमारी फैल रही हो, तो पशुओं को बाहर खुले झुंडों में ज्यादा न छोड़ें.
बीमारी में उपयोग होने वाली दवाएं
खुरपका रोग में कई तरह की दवाएं दी जाती हैं लेकिन ये दवाएं बिना डॉक्टर की सलाह के कभी नहीं देनी चाहिए. कुछ प्रमुख दवाएं-
- आइवरमेक्टिन- यह दवा पशु के शरीर में मौजूद कीड़े और संक्रमण को कम करने में मदद करती है.
- सुल्फोनामाइड दवाएं- यह संक्रमित भाग में बैक्टीरिया को बढ़ने से रोकती हैं.
- एंटीबायोटिक्स- यह दवाएं दर्द और घाव में होने वाले संक्रमण को कम करती हैं.
- वैक्सीनेशन- बीमारी रोकने का सबसे सुरक्षित तरीका.
- यह दवाएं तभी दें जब डॉक्टर पशु का परीक्षण कर ले और सही मात्रा बता दे.
खुरपका रोग दिखे तो क्या करें?
अगर आपके पशु में मुंह से लार टपकना, पैरों में दर्द, चलने में दिक्कत, मुंह के अंदर छाले या बुखार जैसे लक्षण दिखें, तो तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करें. बीमार पशु को नरम चारा दें और साफ पानी उपलब्ध रखें. घावों को गुनगुने पानी से साफ करें और पशु को आराम करने दें. इस बीमारी में डरने की जरूरत नहीं है, बस समय पर इलाज जरूरी है. साथ ही गांव के बाकी पशुपालकों को भी सावधान कर दें ताकि वह अपने पशुओं की सुरक्षा कर सकें.