पपीता एक ऐसा फल है, जो अपने स्वाद, पोषण और दवाईयां बनाने के काम के चलते पूरी दुनिया में काफी मशहूर है. इसकी खेती की शुरुआत दक्षिणी मैक्सिको और कोस्टा रिका से हुई थी, लेकिन आज भारत इस मीठे और सेहतमंद फल का सबसे बड़ा उत्पादक बन चुका है. भारत में पपीता लगभग पूरे साल उगाया जाता है, लेकिन इसका मुख्य सीजन अगस्त से नवंबर तक रहता है. आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और गुजरात जैसे राज्यों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. इसके अलावा, मैक्सिको, ब्राजील, नाइजीरिया, चीन और पेरू जैसे देश भी बड़े पैमाने पर पपीते का उत्पादन करते हैं.
भारत में पपीते की लोकप्रिय किस्में
भारत में पपीते की कई किस्में उगाई जाती हैं, जिनमें से ‘रेड लेडी’ सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. इसका गूदा लाल-नारंगी रंग का होता है और यह किस्म प्रोसेसिंग यानी फूड प्रोडक्ट्स बनाने के लिए इस्तेमाल होती है. तीन महीने के भीतर पौधे में फूल आने लगते हैं और चार से पांच महीने में फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाता है.
वॉशिंगटन किस्म
वॉशिंगटन किस्म टेबल वेराइटी के तौर पर जानी जाती है, यानी इसे सीधे खाने के लिए उगाया जाता है. इसका फल मध्यम से बड़ा और 1.5 से 2 किलो वजन का होता है. पूरी तरह पकने पर इसका रंग चमकदार पीला हो जाता है.
पूसा डिलिशियस
पुसा डिलिशियस एक और शानदार किस्म है जो 8 महीने में फल देने लगती है. इसका स्वाद बेहद मीठा होता है और इसे भी खाने के लिए उगाया जाता है. इसके अलावा पपीते की कूर्ग हनीड्यू, Co-1, Co-2, और Co-3 जैसी किस्में भी भारत के अलग-अलग राज्यों में खूब उगाई जाती हैं. इनमें से कुछ किस्में प्रोसेसिंग के लिए और कुछ सीधे खाने के लिए उपयुक्त हैं.
किन राज्यों में कौन-कौन सी किस्में उगाई जाती हैं?
कर्नाटक और केरल में कूर्ग हनीड्यू, पूसा डिलिशियस लोकप्रिय हैं. आंध्र प्रदेश में हनीड्यू, सनराइज सोलो, Co-1, Co-2, Co-3 और वॉशिंगटन किस्में उगाई जाती हैं. झारखंड और उड़ीसा में ‘पुसा नन्हा’ और ‘रांची सिलेक्शन’ खूब चलते हैं. पश्चिम बंगाल में ‘हनीड्यू’, ‘वॉशिंगटन’ और ‘कूर्ग ग्रीन’ किस्में पाई जाती हैं. भारत में पपीते की खेती ने पिछले कुछ दशकों में जबरदस्त रफ्तार पकड़ी है.
पपीते की खेती के लिए जलवायु
पपीते की खेती ट्रॉपिकल इलाकों में सबसे अच्छी होती है. समुद्र तल से 1000 मीटर की ऊंचाई तक इसकी खेती संभव है. 12-14 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान इस फसल के लिए नुकसानदायक होता है, खासकर अगर कई घंटे तक ठंड बनी रहे. पपीता ज्यादा पानी रुकने, तेज हवाओं और पाले के प्रति भी संवेदनशील होता है, इसलिए इसकी देखभाल में विशेष सावधानी बरतनी पड़ती है.